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मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य बार काउंसिल को बिना स्थानांतरण शुल्क लिए अधिवक्ताओं का पंजीकरण करने का निर्देश दिया

Shivam Y.

रोहित पाठक बनाम बार काउंसिल ऑफ इंडिया एवं अन्य - मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने बार काउंसिल को बिना स्थानांतरण शुल्क लिए अधिवक्ता का नाम पंजीकृत करने का आदेश दिया; अक्टूबर की सुनवाई तक अंतरिम राहत दी गई।

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य बार काउंसिल को बिना स्थानांतरण शुल्क लिए अधिवक्ताओं का पंजीकरण करने का निर्देश दिया

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर ने 11 सितम्बर 2025 को एक अधिवक्ता को अवांछित ट्रांसफर शुल्क से बचाते हुए अंतरिम राहत दी। मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति विनय साराफ की पीठ ने राज्य बार काउंसिल को निर्देश दिया कि फिलहाल बिना किसी अतिरिक्त राशि लिए याचिकाकर्ता का नाम रजिस्टर करें।

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पृष्ठभूमि

यह मामला अधिवक्ता रोहित पाठक द्वारा दायर किया गया था, जिन्होंने शुरुआत में दिल्ली बार काउंसिल में नामांकन कराया था। व्यक्तिगत कारणों से उन्होंने दिल्ली से जबलपुर प्रैक्टिस शिफ्ट करने का निर्णय लिया और इसके लिए अपने नाम का ट्रांसफर दिल्ली से मध्यप्रदेश रोल पर कराने की प्रक्रिया शुरू की।

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नियमों के अनुसार उन्होंने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) में आवेदन किया, निर्धारित शुल्क जमा किया और 5 जुलाई 2025 को ट्रांसफर आदेश प्राप्त किया। दिल्ली बार काउंसिल ने उनके सर्टिफिकेट पर आवश्यक प्रविष्टि कर दी और उसे मध्यप्रदेश बार काउंसिल को भेज दिया।

लेकिन, नामांकन दर्ज करने की बजाय मध्यप्रदेश काउंसिल ने ₹15,000 का ट्रांसफर शुल्क मांगा। पाठक ने इसका विरोध करते हुए कहा कि अधिवक्ता अधिनियम, 1961 स्पष्ट रूप से ऐसा शुल्क लेने से रोकता है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

पीठ ने ध्यान से अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 18 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा आवेदन स्वीकार होने पर नाम का ट्रांसफर “बिना किसी शुल्क के” किया जाना चाहिए। न्यायाधीशों ने जोर देकर कहा कि इस बिंदु पर कानून में कोई अस्पष्टता नहीं है।

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पीठ ने टिप्पणी की - "प्रावधान स्पष्ट है," और बताया कि अधिवक्ता की वरिष्ठता भी ऐसे ट्रांसफर में बरकरार रहती है। चूँकि बीसीआई पहले ही ट्रांसफर आदेश दे चुका था और दिल्ली बार काउंसिल आवश्यक प्रविष्टि कर चुका था, अब सिर्फ नाम दर्ज करना बाकी था।

न्यायालय ने इशारा किया कि - "₹15,000 की मांग prima facie धारा 18 के विपरीत है," और राज्य बार काउंसिल को याद दिलाया कि वैधानिक निकाय कानून से परे नहीं जा सकते।

निर्णय

दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद, हाईकोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया और मध्यप्रदेश बार काउंसिल को नोटिस जारी किया। वहीं, दिल्ली बार काउंसिल को इस स्तर पर शामिल नहीं किया गया क्योंकि उसकी भूमिका पहले ही पूरी हो चुकी थी।

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मध्यप्रदेश बार काउंसिल के वकील ने निर्देश लेने के लिए समय मांगा, जिसे स्वीकार करते हुए अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 7 अक्टूबर 2025 तय की।

लेकिन तब तक के लिए अदालत ने साफ अंतरिम आदेश दिया,

"मध्यप्रदेश राज्य बार काउंसिल याचिकाकर्ता का नाम अपने रोल में दर्ज करे, आगे के आदेशों के अधीन, और इस स्तर पर कोई शुल्क न ले।"

इस अंतरिम राहत से रोहित पाठक का नाम अब मध्यप्रदेश रोल में दर्ज होगा, कम से कम तब तक जब तक मामला अक्टूबर में दोबारा न सुना जाए। अंतिम निर्णय अभी बाकी है।

केस का शीर्षक: रोहित पाठक बनाम बार काउंसिल ऑफ इंडिया एवं अन्य

केस संख्या: रिट याचिका संख्या 35160/2025

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