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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य को अविवाहित बेटी की पारिवारिक पेंशन याचिका दो माह में तय करने का निर्देश दिया

Shivam Y.

कुमारी संतोष बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं 2 अन्य - इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के अधिकारियों को माता-पिता की मृत्यु के बाद अविवाहित बेटी के पारिवारिक पेंशन दावे पर दो महीने के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिया।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य को अविवाहित बेटी की पारिवारिक पेंशन याचिका दो माह में तय करने का निर्देश दिया

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य प्राधिकरणों को आदेश दिया है कि वे सरकारी कर्मचारी माता-पिता की मृत्यु के बाद पारिवारिक पेंशन पाने की कोशिश कर रही एक अविवाहित महिला की अर्जी पर तुरंत फैसला करें। बुधवार को न्यायमूर्ति अजीत कुमार की अदालत में इस याचिका की सुनवाई हुई, जिसमें अदालत ने समयसीमा तय करते हुए मामले का निपटारा कर दिया।

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पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता, कु. संतोष, ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट का रुख किया था। उनके पिता, जो सरकारी कर्मचारी थे, अक्टूबर 1998 में सेवा के दौरान ही निधन हो गया। पिता की मृत्यु के बाद याचिकाकर्ता की मां नवंबर 2021 तक पारिवारिक पेंशन लेती रहीं। मां की मृत्यु के बाद से ही संतोष यह दावा कर रही हैं कि उन्हें मृतक कर्मचारी की अविवाहित पुत्री होने के नाते यह पेंशन मिलनी चाहिए।

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उन्होंने फरवरी 2024 में संबंधित प्राधिकरण को प्रतिनिधित्व भी दिया था, लेकिन उस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया, जिसके बाद उन्होंने यह रिट याचिका दाखिल की।

अदालत की टिप्पणियां

सुनवाई के दौरान अदालत ने पात्रता को लेकर स्पष्ट सवाल पूछे। इस पर राज्य के स्थायी अधिवक्ता ने जवाब दिया कि 16 मई 2015 के सरकारी आदेश में स्पष्ट रूप से अविवाहित, तलाकशुदा और विधवा पुत्रियों को आश्रित की श्रेणी में शामिल किया गया है, जिन्हें पारिवारिक पेंशन का लाभ मिलेगा।

न्यायमूर्ति अजीत कुमार ने आदेश का महत्वपूर्ण अंश पढ़ा, जिसमें कहा गया है कि अविवाहित पुत्रियों को विवाह, पुनर्विवाह, जीविकोपार्जन या मृत्यु - जो भी पहले हो - तक पेंशन का हक प्राप्त होगा।

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स्थायी अधिवक्ता ने साफ शब्दों में कहा,

"कानून के अनुसार यदि सक्षम प्राधिकारी को विचार करने का निर्देश दिया जाए, तो इसमें कोई आपत्ति नहीं है।"

निर्णय

याचिका का निपटारा करते हुए पीठ ने नियुक्ति प्राधिकारी (प्रतिवादी संख्या-3) को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता के दावे की 2015 के सरकारी आदेश के तहत जांच करे। अदालत ने यह भी साफ किया कि अब इस मामले में और देरी नहीं होनी चाहिए।

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न्यायमूर्ति कुमार ने कहा,

"सक्षम प्राधिकारी इस आदेश की प्रमाणित प्रति मिलने के दो माह के भीतर इस मुद्दे का निर्णय करेगा।"

साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि यदि कोई तकनीकी बाधा नहीं है और दावा सही व वास्तविक पाया जाता है, तो छह सप्ताह के भीतर पारिवारिक पेंशन याचिकाकर्ता के पक्ष में जारी कर दी जानी चाहिए।

इन्हीं निर्देशों के साथ याचिका का औपचारिक निपटारा कर दिया गया।

केस का शीर्षक: कु. संतोष बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं 2 अन्य

केस संख्या: Writ - A No. 13012 of 2025

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता: अब्दुल आलम अंसारी, उपेन्द्र उपाध्याय

प्रतिवादी की ओर से अधिवक्ता : मुख्य स्थायी अधिवक्ता (C.S.C.)

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