कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में पूर्व मेदिनीपुर के ज़मीन मालिकों को इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड (IOCL) से पाइपलाइन परियोजना में देरी के लिए अतिरिक्त मुआवजा मांगने की इजाज़त दे दी है। मुख्य न्यायाधीश टी.एस. शिवगणनम और न्यायमूर्ति चैताली चटर्जी (दास) की खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश का वह आदेश रद्द कर दिया जिसने IOCL के पक्ष में फैसला दिया था।
पृष्ठभूमि
विवाद तब शुरू हुआ जब IOCL ने अपीलकर्ताओं की पट्टे पर ली गई ज़मीन के नीचे पाइपलाइन बिछाई। कंपनी ने ₹42,12,245 का मुआवजा तो दिया, लेकिन ज़मीन मालिकों का कहना था कि यह भुगतान केवल 60 दिनों की बाधा के लिए था, जबकि ज़मीन दो साल से भी अधिक समय तक इस्तेमाल के लायक नहीं रही।
उन्होंने हर 110 दिनों के लिए प्रति डिसिमल ₹1,250 की दर से मुआवजा मांगा और कहा कि IOCL ने इसी ज़िले के अन्य पट्टाधारकों को भी इसी तरह की स्थिति में ज़्यादा भुगतान किया था। जब सक्षम प्राधिकारी ने उन्हें अतिरिक्त मुआवजा दिया, तो IOCL ने इसे चुनौती दी और एकल न्यायाधीश ने कहा कि सक्षम प्राधिकारी को अपना निर्णय “पुनः समीक्षा” करने का अधिकार नहीं है।
अदालत की टिप्पणियाँ
खंडपीठ ने इस पर बिल्कुल अलग दृष्टिकोण अपनाया। अदालत ने नोट किया कि मुआवजा ₹450 प्रति डिसिमल तय करने को लेकर कोई औपचारिक समझौता कभी हुआ ही नहीं था और जब पहले रिट कोर्ट ने सक्षम प्राधिकारी को ज़मीन मालिकों का दावा तय करने का निर्देश दिया था, तब IOCL ने कोई आपत्ति नहीं की थी।
Read also:- सुप्रीम कोर्ट ने आईटीसी क्लासमेट नोटबुक ज़ब्ती रद्द की, कर्नाटक अधिकारियों की बड़ी प्रक्रिया त्रुटियां उजागर
मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की:
"अगर IOCL को सच में लगता था कि सक्षम प्राधिकारी को अधिकार नहीं है तो उन्हें शुरुआत में ही यह आपत्ति उठानी चाहिए थी। उनकी चुप्पी को अधिकार छोड़ने के रूप में माना जाएगा।"
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यह मामला पुराने निर्णय की 'समीक्षा' का नहीं बल्कि उस अवधि के लिए एक नए दावे का है जिसके लिए पहले कोई मुआवजा तय ही नहीं हुआ था। कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि पंचनामा (साइट निरीक्षण रिपोर्ट) में ज़मीन का उपयोग मत्स्य पालन के रूप में दर्ज है, इसलिए अब IOCL का यह तर्क देना उचित नहीं कि ऐसा उपयोग प्रतिबंधित था।
Read also:- रियल एस्टेट दिवालियापन विवाद में सट्टा निवेश पर सुप्रीम कोर्ट की सख़्त टिप्पणी
निर्णय
अपील को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने सक्षम प्राधिकारी का आदेश बहाल कर दिया और IOCL को निर्देश दिया कि वे 30 दिनों के भीतर अतिरिक्त मुआवजा दें। अदालत ने ज़मीन मालिकों को यह भी स्वतंत्रता दी कि वे 1962 के पेट्रोलियम एंड मिनरल्स पाइपलाइंस (भूमि में उपयोग अधिकार अधिग्रहण) अधिनियम की धारा 10(2) के तहत ज़िला न्यायाधीश के समक्ष अधिक मुआवजे की मांग कर सकते हैं।
अदालत ने स्पष्ट किया कि जब तक ज़मीन मालिकों ने पहले की दर पर साफ-साफ सहमति नहीं दी, IOCL यह नहीं कह सकता कि वे उसी पर बंधे हैं।
"किसी समझौते के अभाव में यह राशि केवल प्रथम चरण का मुआवजा मानी जा सकती है," पीठ ने कहा और ज़मीन मालिकों को इसकी पर्याप्तता को चुनौती देने का कानूनी रास्ता दे दिया।
इसके साथ ही, मुआवजे को लेकर यह लंबा विवाद अब ज़िला अदालत की ओर बढ़ेगा, जहां राशि का फिर से मूल्यांकन होने की संभावना है।
केस का शीर्षक: सुब्रत हेत बनाम इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड एवं अन्य
केस संख्या: MAT संख्या 1959/2023