नई दिल्ली, 12 सितम्बर: प्रवर्तन प्रक्रिया पर कड़ी टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक प्राधिकरण द्वारा आईटीसी लिमिटेड की 7,600 “क्लासमेट” एक्सरसाइज बुक कार्टन की ज़ब्ती को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों ने 2020 में बिना वारंट और दर्ज कारणों के गोदाम पर छापा मारकर 2009 के लीगल मेट्रोलॉजी एक्ट और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) के अनिवार्य प्रावधानों का उल्लंघन किया।
पृष्ठभूमि
क्लासमेट नोटबुक और स्टेशनरी बेचने वाली आईटीसी पर 2 जुलाई 2020 को बेंगलुरु के पास नेलामंगला स्थित गोदाम में अचानक निरीक्षण हुआ। अधिकारियों ने हज़ारों कार्टन जब्त कर लिए, यह आरोप लगाते हुए कि थोक पैकेजों पर आवश्यक छपी हुई घोषणाएं नहीं थीं। कर्नाटक हाईकोर्ट की एकल पीठ ने ज़ब्ती को रद्द किया था, लेकिन डिवीजन बेंच ने इसे बहाल कर दिया, जिसके बाद आईटीसी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।
कोर्ट की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति आर. महादेवन ने पीठ की ओर से लिखते हुए कहा कि लीगल मेट्रोलॉजी एक्ट की धारा 15 केवल उसी समय तलाशी की अनुमति देती है जब उल्लंघन का “विश्वास करने का कारण” लिखित रूप में दर्ज हो और CrPC की सुरक्षा प्रक्रियाओं का पालन हो।
पीठ ने कहा, “कोई भी अधिकारी तलाशी या निरीक्षण कर जब्ती करने का इरादा रखता है तो उसे अनिवार्य प्रक्रिया का पालन करना होगा और बिना वारंट या दर्ज कारणों के ज़बरदस्ती प्रवेश नहीं कर सकता।”
कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि तलाशी के दौरान केवल एक गवाह- जो प्रवर्तन अधिकारी का कर्मचारी था- मौजूद था, जबकि CrPC दो स्वतंत्र स्थानीय गवाहों की उपस्थिति अनिवार्य करता है। अदालत को यह भी कोई सबूत नहीं मिला कि ज़ब्त माल लेबल से भिन्न था और कथित नियम उल्लंघन को “अधिकतम तकनीकी” बताया।
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फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने “स्पष्ट प्रक्रिया उल्लंघन” पाते हुए ज़ब्ती नोटिस और कर्नाटक हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच का आदेश रद्द कर दिया और आईटीसी के पक्ष में पूर्व एकल-न्यायाधीश का आदेश बहाल किया।
पीठ ने निष्कर्ष में कहा, “क़ानूनी प्रक्रियाओं का पालन अधिकारियों के लिए अनिवार्य है; अनुपालन न होना कार्रवाई को निष्फल कर देता है,” और यहीं पर मामला अदालत के निर्णय के साथ समाप्त हुआ।
मामला: आईटीसी लिमिटेड बनाम कर्नाटक राज्य एवं अन्य
उद्धरण: 2025 आईएनएससी 1111
निर्णय तिथि: 12 सितंबर 2025