9 सितंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने ओबीसी उम्मीदवारों को, जिन्होंने आयु सीमा में छूट ली थी, सामान्य श्रेणी की सीटों पर दावा करने की अनुमति दी थी। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने साफ किया कि एक बार उम्मीदवार आयु में छूट का लाभ लेता है, तो वह सामान्य श्रेणी में नहीं गिना जा सकता।
पृष्ठभूमि
यह विवाद कर्मचारी चयन आयोग (SSC) की कांस्टेबल (GD) भर्ती से जुड़ा था, जिसमें बीएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी, एसएसबी, एनआईए, एसएसएफ और असम राइफल्स में भर्तियां होनी थीं। आयु सीमा 18 से 23 वर्ष तय थी, जबकि ओबीसी उम्मीदवारों को 3 साल की छूट दी गई थी।
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कई उम्मीदवार, जिनमें सजीब रॉय भी शामिल थे, ने इस छूट का लाभ उठाकर आवेदन किया। वे ओबीसी कोटे में चयनित नहीं हुए, लेकिन उनके अंक सामान्य श्रेणी के अंतिम चयनित उम्मीदवारों से अधिक थे। उन्होंने दलील दी कि योग्यता को प्राथमिकता मिलनी चाहिए और इस आधार पर हाईकोर्ट गए। हाईकोर्ट ने 2010 के जितेंद्र कुमार सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले का हवाला देकर उनके पक्ष में फैसला दिया।
केंद्र सरकार ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और 1 जुलाई 1998 के ऑफिस मेमोरेंडम का हवाला दिया, जिसमें साफ लिखा है कि आयु या अन्य छूट लेने वाले उम्मीदवार सामान्य श्रेणी की सीटों पर दावा नहीं कर सकते।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने जितेंद्र कुमार मामले को “यांत्रिक ढंग” से लागू किया और 1998 के ऑफिस मेमोरेंडम पर ध्यान नहीं दिया। न्यायमूर्ति बागची ने टिप्पणी की, “आयु छूट लेने वाला आरक्षित उम्मीदवार सामान्य श्रेणी में जा सकता है या नहीं, यह भर्ती नियमों पर निर्भर करेगा। अगर कोई रोक है, तो माइग्रेशन संभव नहीं है।”
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पीठ ने दीपा ई.वी. बनाम भारत संघ (2017) और गौरव प्रधान बनाम राजस्थान राज्य (2018) जैसे मामलों का भी हवाला दिया, जिनमें ऐसे ही प्रतिबंधों को सही ठहराया गया था। अदालत ने दोहराया कि किसी फैसले को उसके तथ्यों के संदर्भ में ही पढ़ा जाना चाहिए और सामान्य सिद्धांत स्पष्ट सरकारी नियमों से ऊपर नहीं हो सकते।
निर्णय
मामले का निपटारा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चूंकि उम्मीदवारों ने आयु में छूट का लाभ लिया था, इसलिए वे सामान्य श्रेणी में चयनित नहीं हो सकते। कलकत्ता हाईकोर्ट के 12 अक्टूबर 2018 और 26 फरवरी 2019 के आदेश रद्द कर दिए गए। केंद्र सरकार की अपीलें स्वीकार कर ली गईं और इस तरह लंबे समय से चली आ रही अस्पष्टता पर स्पष्टता आ गई।
मामले का नाम: भारत संघ एवं अन्य बनाम साजिब रॉय एवं अन्य
निर्णय की तिथि: 9 सितंबर 2025