दिल्ली हाईकोर्ट ने दक्षिण दिल्ली स्थित एक परिवार की याचिका खारिज कर दी है, जिसमें आयकर विभाग द्वारा उनके लॉकरों पर की गई तलाशी को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने माना कि जांच कानूनी रूप से की गई थी। यह मामला राज कृष्ण गुप्ता व अन्य बनाम प्रिंसिपल डायरेक्टर ऑफ इनकम टैक्स (इन्वेस्टिगेशन)-1, नई दिल्ली [W.P.(C) 11005/2024] था, जिस पर न्यायमूर्ति वी. कामेश्वर राव और न्यायमूर्ति सौरभ बनर्जी की खंडपीठ ने 9 सितंबर 2025 को फैसला सुनाया।
पृष्ठभूमि
विवाद तब शुरू हुआ जब कर अधिकारियों ने 11 मई 2024 को जीके-2 स्थित साउथ दिल्ली वॉल्ट्स में परिवार के तीन निजी लॉकर - नंबर 179, 163 और 175 - की तलाशी ली और लगभग ₹4.6 करोड़ मूल्य के सोना, हीरे और बुलियन जब्त किए। याचिकाकर्ता, जिनमें राज कृष्ण गुप्ता, उनकी पत्नी, बेटा और बहू शामिल हैं, ने दावा किया कि ये कीमती सामान या तो घोषित आय से खरीदे गए हैं या पुश्तैनी संपत्ति हैं, और इनमें उनकी नाबालिग पोती के गहने भी शामिल हैं।
Read also:- रियल एस्टेट दिवालियापन विवाद में सट्टा निवेश पर सुप्रीम कोर्ट की सख़्त टिप्पणी
उनके वकील अधिवक्ता अरविंद कुमार का कहना था कि यह तलाशी अवैध थी क्योंकि विभाग के पास “विश्वास करने का कारण” नहीं था - जो कि आयकर अधिनियम की धारा 132 के तहत इतनी कठोर कार्रवाई का अनिवार्य पूर्वशर्त है। उन्होंने कहा कि कोई पूर्व समन नहीं भेजे गए और सीबीडीटी की उस गाइडलाइन की भी अनदेखी की गई जिसमें तलाशी के दौरान एक निश्चित मात्रा तक के गहनों को जब्त न करने का प्रावधान है।
कोर्ट की टिप्पणियां
हालांकि, अदालत को विभाग का पक्ष अधिक विश्वसनीय लगा। न्यायाधीशों ने कहा कि विभाग द्वारा पेश की गई आंतरिक संतुष्टि रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि गुप्ता परिवार की ज्ञात आय प्रोफाइल के मुकाबले उनके पास रखे लॉकर संदिग्ध रूप से महंगे थे। इन लॉकरों का किराया ₹50,000 से ₹3,00,000 प्रति माह तक था, जो उनकी घोषित आय से मेल नहीं खाता।
पीठ ने कहा,
"रिकॉर्ड से पता चलता है कि समन भेजने पर भी दस्तावेज़ नहीं मिलते। विभाग के पास यह विश्वास करने का ठोस आधार था कि याचिकाकर्ता के पास अघोषित संपत्ति हो सकती है।"
न्यायमूर्ति राव ने कहा कि धारा 132 के तहत तलाशी की शक्ति भले ही कठोर हो,
"लेकिन जब अधिकारी ठोस सामग्री के आधार पर ईमानदारी से राय बनाता है, तब यह न्यायालय उसकी पर्याप्तता पर नहीं बैठ सकता।"
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 132(1) की तीन शर्तें - दस्तावेज़ न देने, देने से बचने की संभावना और अघोषित संपत्ति रखने - एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं, और विभाग इनमें से किसी एक के आधार पर तलाशी कर सकता है।
निर्णय
अंतिम आदेश में पीठ ने कहा कि तलाशी और जब्ती से पहले आयकर विभाग के पास “विश्वास करने के कारण” मौजूद थे। अदालत ने ‘फिशिंग एक्सपेडिशन’ यानी बिना ठोस कारण के तलाशी का आरोप भी खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि बाद में समन भी भेजे गए थे लेकिन याचिकाकर्ता कोई बिल या दस्तावेज़ नहीं दे पाए।
आदेश में कहा गया,
“विश्वास का निर्माण एक प्रशासनिक प्रक्रिया है, न कि न्यायिक। जब तक दुर्भावना साबित न हो, यह न्यायालय सामग्री की पर्याप्तता की समीक्षा नहीं करेगा - जो यहां नहीं हुआ।”
इस प्रकार, अदालत ने माना कि तलाशी और जब्ती वैध थी और याचिका खारिज कर दी, जिससे जब्त की गई संपत्तियों की तत्काल वापसी की परिवार की मांग समाप्त हो गई।
केस का शीर्षक: राज कृष्ण गुप्ता एवं अन्य बनाम प्रधान आयकर निदेशक (जांच)-1, नई दिल्ली
केस संख्या: W.P.(C) 11005/2024