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हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने विद्याशा फ़ार्मास्यूटिकल्स की अंतरिम बंदी से इनकार किया, तिमाही हिसाब-किताब देने का आदेश

Shivam Yadav

नितिन गुप्ता बनाम अर्पित अग्रवाल - हिमाचल हाईकोर्ट ने विद्याशा फ़ार्मास्यूटिकल्स की बंदी की मांग ठुकराई, साझेदारों को संपत्ति सुरक्षित रखने और तिमाही हिसाब पेश करने का आदेश।

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने विद्याशा फ़ार्मास्यूटिकल्स की अंतरिम बंदी से इनकार किया, तिमाही हिसाब-किताब देने का आदेश

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट, शिमला ने नितिन गुप्ता की उस अर्जी को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने अपने कज़िन अर्पित अग्रवाल के साथ चल रही फर्म विद्याशा फ़ार्मास्यूटिकल्स को तुरंत बंद करने और बैंक खाते फ्रीज़ करने की मांग की थी। न्यायमूर्ति ज्योत्स्ना रेवाल दूआ ने 21 अगस्त 2025 को फैसला सुनाते हुए कहा कि सौ से अधिक कर्मचारियों और 1100 से अधिक दवा लाइसेंस वाली चलती-फिरती दवा इकाई को बंद करना विवाद की जड़ को ही खत्म करने जैसा होगा।

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पृष्ठभूमि

यह विवाद तब शुरू हुआ जब गुप्ता ने 26 मई, 2025 को एक विघटन नोटिस जारी किया, जिसमें दावा किया गया कि भारतीय भागीदारी अधिनियम के तहत साझेदारी "स्वेच्छा से" थी। उन्होंने जून में समाचार पत्रों के माध्यम से विघटन का और प्रचार किया। मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 9 के तहत उनकी याचिका में उत्पादन पूरी तरह से रोकने, बैंक खातों को फ्रीज करने और एक रिसीवर की नियुक्ति की मांग की गई थी। गुप्ता ने आरोप लगाया कि अग्रवाल निजी लाभ के लिए व्यवसाय को दूसरी जगह भेज रहे थे और कंपनी की संपत्ति का दुरुपयोग कर रहे थे।

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वहीं अग्रवाल ने जवाब में कहा कि फर्म ''एट विल'' यानी कभी भी समाप्त की जा सकने वाली साझेदारी नहीं थी। साझेदारी डीड की धारा 8 के अनुसार किसी भी साझेदार को दूसरे की लिखित सहमति के बिना हिस्सेदारी छोड़ने या फर्म खत्म करने का अधिकार नहीं था। अग्रवाल की ओर से यह भी दलील दी गई कि अचानक बंदी से सौ से अधिक कर्मचारी बेरोज़गार हो जाएंगे और वर्षों से ली गई दवा की हज़ारों मंज़ूरियाँ बेकार हो जाएंगी।

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न्यायालय की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति दूआ ने दोनों पक्षों के आरोप- प्रत्यारोप को दरकिनार कर मुख्य सवाल पर ध्यान केंद्रित किया कि क्या अंतरिम राहत दी जा सकती है। अदालत ने कहा,

''याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई अंतरिम राहत फर्म के रोज़मर्रा के कामकाज को लगभग ठप कर देगी। ''

अदालत ने स्पष्ट किया कि धारा 9 के तहत अंतरिम संरक्षण का मकसद विवादित विषय को बचाना है, न कि उसे नष्ट करना।

अदालत ने यह भी माना कि साझेदारी डीड की धारा 10 में ''एट विल'' लिखा जरूर है, लेकिन धारा 8 में बिना सहमति हिस्सेदारी छोड़ने पर रोक भी साफ़ लिखी है। इस टकराव को आर्बिट्रेटर ही तय करेगा।

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संतुलन की कसौटी पर अदालत ने पाया कि चलती हुई लाभकारी इकाई को रोकना असंतुलित नुकसान पहुँचाएगा। न्यायमूर्ति दूआ ने टिप्पणी की कि वेतन, सप्लायरों का भुगतान और टैक्स जैसी वैध देनदारियाँ भी रुक जाएंगी।

फैसला

अदालत ने गुप्ता की बंदी और रिसीवर नियुक्ति की मांग नामंज़ूर कर दी। लेकिन साथ ही यह आदेश दिया कि जब तक मामला आर्बिट्रेशन में तय नहीं होता, तब तक कोई भी साझेदार फर्म की संपत्ति बेच या गिरवी नहीं रखेगा। अग्रवाल, जो फिलहाल कारोबार संभाल रहे हैं, को हर तिमाही का सही हिसाब- किताब पेश करना होगा। पहला विवरण सितंबर 2025 की तिमाही का होगा, जो अक्टूबर के अंत तक अदालत में जमा करना होगा।

याचिका इसी निर्देश के साथ निपटा दी गई। अदालत ने साफ किया कि मुख्य विवाद-साझेदारी का वास्तव में विघटन हुआ या नहीं- अब आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल तय करेगा।

मामला शीर्षक: नितिन गुप्ता बनाम अर्पित अग्रवाल

केस नंबर : आर्बिट्रेशन केस संख्या 116 वर्ष 2025

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