सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक जनहित याचिका (PIL) को सुनने से इनकार कर दिया, जिसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा उठाए गए मतदाता सूची में कथित हेराफेरी की जांच के लिए विशेष जांच दल (SIT) गठित करने की मांग की गई थी।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाला बागची की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई की और साफ़ कहा कि शीर्ष अदालत इस मामले में हस्तक्षेप करने के पक्ष में नहीं है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा, “जहां चाहो, वहां अपना उपाय करो,” यह संकेत देते हुए कि इस स्तर पर PIL का अंत यहीं होता है।
याचिकाकर्ता अधिवक्ता रोहित पांडेय का दावा था कि मतदाता सूचियों में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां सामने आई हैं- जिनमें डुप्लिकेट नामों से लेकर फर्जी मतदाताओं तक शामिल हैं- जिससे ‘वन पर्सन, वन वोट’ के सिद्धांत पर आघात हुआ है। उनका कहना था कि ये गड़बड़ियां न केवल संविधान के समानता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (अनुच्छेद 14 और 21) के अधिकारों का उल्लंघन करती हैं, बल्कि अनुच्छेद 324 से 326 तक के तहत सुनिश्चित लोकतांत्रिक ईमानदारी की जड़ पर भी चोट करती हैं।
याचिका के अनुसार, बेंगलुरु सेंट्रल संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत महादेवपुरा विधानसभा में फर्जी नामों की चौंकाने वाली संख्या पाई गई। इसमें बताया गया कि 40,000 से अधिक अमान्य नाम, हजारों डुप्लिकेट रिकॉर्ड और कई मतदाताओं के एक जैसे घर नंबर या पिता के नाम दर्ज थे। इसी तरह की गड़बड़ियां महाराष्ट्र में भी बताई गईं, जिसमें चंद्रपुर का मामला प्रमुख था, जहां 80 से अधिक मतदाता एक ही खाली पते पर दर्ज थे।
याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि निर्वाचन आयोग (ECI) को इस संबंध में कई बार प्रतिवेदन दिया गया, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। उन्होंने चुनाव प्रक्रिया में जनता का भरोसा बहाल करने के लिए एक स्वतंत्र जांच की मांग की।
लेकिन पीठ आश्वस्त नहीं हुई। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि ऐसी याचिकाएं- भले ही जनहित में प्रस्तुत की गई हों- सुप्रीम कोर्ट में सीधे नहीं सुनी जा सकतीं। उन्होंने टिप्पणी की, “यदि आपका प्रतिवेदन नहीं सुना गया, तो आप विधिक रूप से उपलब्ध अन्य रास्तों से न्याय पा सकते हैं। परंतु हम हर राजनीतिक चिंता को PIL में नहीं बदल सकते।”
अदालत का यह रुख हाल के उन फैसलों की निरंतरता है, जिसमें उसने PIL के अत्यधिक उपयोग को लेकर सावधानी बरतने की बात कही थी- खासतौर पर जब वैधानिक उपाय पहले से मौजूद हों।
याचिका में निर्वाचन आयोग पर यह आरोप भी लगाया गया था कि उसने मतदाता सूचियों को ऐसे प्रारूप में प्रकाशित किया है, जिन्हें आम जनता के लिए जांचना बेहद कठिन है। याचिकाकर्ता का कहना था कि इससे पारदर्शिता पर असर पड़ा है। हालांकि, अदालत ने इस तर्क में नहीं पड़ी और याचिकाकर्ता को अन्य कानूनी रास्तों की याद दिलाई।
आख़िर में सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर आगे कोई कार्रवाई करने से इनकार कर दिया। अपने संक्षिप्त आदेश में पीठ ने कहा:
“जनहित के नाम पर दायर यह रिट याचिका स्वीकार नहीं की जाएगी। याचिकाकर्ता को कानूनन उपलब्ध वैकल्पिक उपाय अपनाने की स्वतंत्रता है।”
इस प्रकार यह याचिका खारिज कर दी गई - और याचिकाकर्ता अब चाहे तो निर्वाचन आयोग या किसी उच्च न्यायालय के समक्ष अपनी लड़ाई आगे बढ़ा सकते हैं।
Case Title: Rohit Pandey v. Union of India
Date of Order: October 13, 2025