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लाइफस्टाइल इक्विटीज बनाम अमेज़न केस में ₹336 करोड़ हर्जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट की रोक को बरकरार रखा

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने अमेज़न के खिलाफ ₹336 करोड़ हर्जाने पर दिल्ली हाईकोर्ट की बिना शर्त रोक को बरकरार रखा।

लाइफस्टाइल इक्विटीज बनाम अमेज़न केस में ₹336 करोड़ हर्जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट की रोक को बरकरार रखा

कॉरपोरेट जिम्मेदारी और प्रक्रिया की निष्पक्षता पर एक अहम फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अमेज़न टेक्नोलॉजीज इंक. के खिलाफ ₹336 करोड़ हर्जाने के आदेश पर दिल्ली हाईकोर्ट की बिना शर्त रोक को बरकरार रखा। यह मामला “बेवरली हिल्स पोलो क्लब” (BHPC) ब्रांड के मालिक लाइफस्टाइल इक्विटीज C.V. द्वारा दायर किया गया था, जिसमें अमेज़न के “Symbol” ब्रांड से जुड़े ट्रेडमार्क उल्लंघन का आरोप लगाया गया था।

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न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप का कोई औचित्य नहीं है। अदालत ने कहा, “हमारे सामने ऐसा कोई कारण नहीं है जिससे हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप किया जाए।” इसी के साथ लाइफस्टाइल इक्विटीज की विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी गई।

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पृष्ठभूमि

यह विवाद तब शुरू हुआ जब लाइफस्टाइल इक्विटीज ने अमेज़न पर अपने “Symbol” लाइन के तहत नकली लोगो वाले परिधान बेचने का आरोप लगाया। फरवरी 2025 में दिल्ली हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश ने अमेज़न की अनुपस्थिति में एकतरफा आदेश (ex parte) जारी करते हुए लाइफस्टाइल के पक्ष में ₹336 करोड़ हर्जाने का आदेश दिया और साथ ही स्थायी निषेधाज्ञा (injunction) भी दी।

हालांकि, अमेज़न ने डिवीजन बेंच के समक्ष यह दलील दी कि उसे मुकदमे में उचित रूप से समन (summons) नहीं मिला और पूरा ट्रायल उसकी जानकारी के बिना चला। हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड की जांच के बाद इस दावे को सही पाया और डिक्री (decree) के अमल पर बिना शर्त रोक लगा दी।

वादी पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, यह कहते हुए कि हाईकोर्ट ने सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के ऑर्डर XLI रूल 5 के प्रावधानों की अनदेखी की है, जिसके तहत सामान्यतः धन संबंधी डिक्री पर रोक लगाने से पहले राशि जमा कराना या सुरक्षा देना आवश्यक होता है।

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अदालत के अवलोकन

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के तर्कों की विस्तार से समीक्षा की और पाया कि उनमें कोई त्रुटि नहीं थी। अदालत ने ध्यान दिलाया कि अमेज़न को बिना वैध समन सेवा के एकतरफा रूप से कार्यवाही में शामिल किया गया, जो प्रक्रिया की गंभीर त्रुटि थी और मुकदमे की निष्पक्षता पर सीधा असर डालती है।

अदालत ने कहा, “कानून किसी भी पक्ष को बिना वैध समन दिए एकतरफा कार्यवाही चलाने की अनुमति नहीं देता।” सुप्रीम कोर्ट ने इस बात की पुष्टि की कि एकल न्यायाधीश द्वारा पारित डिक्री गंभीर अनियमितताओं से ग्रस्त थी।

पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि बिना शर्त स्थगन (unconditional stay) का उपयोग “बहुत ही सीमित परिस्थितियों” में किया जाना चाहिए, लेकिन यह मामला उन्हीं अपवादों में आता है। अदालत ने कहा कि यदि किसी डिक्री में “स्पष्ट अन्याय या कानूनी त्रुटियां” हों तो न्यायालय बिना किसी जमा राशि के भी स्थगन आदेश जारी कर सकता है।

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सुप्रीम कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि एकल न्यायाधीश ने “कथित उल्लंघन या सहभागिता के ठोस साक्ष्य के बिना ही भारी हर्जाना लगाया।” अदालत ने जोर दिया कि “Symbol” ट्रेडमार्क का स्वामित्व मात्र, अमेज़न को उसके लाइसेंसधारी क्लाउडटेल के कार्यों के लिए जिम्मेदार नहीं बनाता।

निर्णय

अंततः, सुप्रीम कोर्ट ने ₹336 करोड़ की डिक्री पर दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा लगाई गई रोक को बरकरार रखा और यह कहते हुए हस्तक्षेप से इनकार किया कि हाईकोर्ट का आदेश विधिसम्मत था। अदालत ने निर्देश दिया कि अपील की सुनवाई स्वतंत्र रूप से जारी रहेगी और दोनों पक्ष अपने तर्क अंतिम सुनवाई में रख सकेंगे।

इस निर्णय के साथ सुप्रीम कोर्ट ने लाइफस्टाइल इक्विटीज की याचिका निपटाते हुए यह स्पष्ट किया कि यह फैसला एक मिसाल बनेगा कि व्यावसायिक विवादों में एकतरफा डिक्री और शर्तीय स्थगन को अदालतें कैसे संभालें।

Case Title: Lifestyle Equities C.V. & Anr. vs Amazon Technologies Inc.

Case Type: Special Leave Petition (Civil) No. 19767 of 2025

Date of Judgment: September 24, 2025

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