सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सिंगूर जमीन विवाद से जुड़े एक अहम फैसले में कलकत्ता हाईकोर्ट का वह आदेश रद्द कर दिया, जिसमें पश्चिम बंगाल सरकार को मि. सैंटी सिरेमिक्स प्रा. लि. को 28 बीघा जमीन लौटाने का निर्देश दिया गया था। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमल्या बागची की पीठ ने स्पष्ट किया कि केदार नाथ यादव बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2016) के तहत जो राहत दी गई थी, वह गरीब किसानों के लिए थी, न कि औद्योगिक संस्थाओं के लिए।
पृष्ठभूमि
यह विवाद 2006 का है, जब पश्चिम बंगाल सरकार ने टाटा मोटर्स की महत्वाकांक्षी नैनो कार परियोजना के लिए हुगली जिले के सिंगूर में 1000 एकड़ से अधिक जमीन अधिग्रहित की थी। प्रभावितों में सैंटी सिरेमिक्स नामक एक औद्योगिक इकाई भी थी, जिसने कुछ साल पहले ही जमीन खरीदकर उसे औद्योगिक उपयोग के लिए परिवर्तित कराया था।
कंपनी ने भूमि और संरचनाओं के बदले ₹14.54 करोड़ का मुआवजा स्वीकार किया था, लेकिन दस साल बाद-जब सुप्रीम कोर्ट ने केदार नाथ यादव (2016) में पूरे अधिग्रहण को रद्द कर दिया-उसने अपनी फैक्ट्री जमीन वापस मांगी। कलकत्ता हाईकोर्ट ने कंपनी के पक्ष में फैसला देते हुए कहा था कि “भूमि मालिकों” में किसान और व्यावसायिक इकाइयाँ दोनों शामिल हैं। इस आदेश को राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
न्यायालय के अवलोकन
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने हाईकोर्ट की व्याख्या से सख्त असहमति जताई। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि 2016 के केदार नाथ यादव के फैसले का मकसद “समाज के सबसे कमजोर वर्गों-गरीब कृषि श्रमिकों-की रक्षा करना था, जिनके पास राज्य की ताकत का मुकाबला करने के साधन नहीं थे।”
पीठ ने कहा, “यह राहत सामाजिक न्याय की भावना पर आधारित थी। इसे उन औद्योगिक कंपनियों तक नहीं बढ़ाया जा सकता जो संस्थागत पहुँच और वित्तीय क्षमता रखती हैं।”
कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि सैंटी सिरेमिक्स ने 2006 में बिना किसी आपत्ति के मुआवजा स्वीकार कर लिया था और दस वर्षों तक मौन रही। ऐसा करके उसने “अधिग्रहण प्रक्रिया को स्वीकार” कर लिया। न्यायाधीशों ने चेतावनी दी कि उद्योगों को ऐसी राहत देने से “बाढ़ के द्वार खुल जाएंगे” और कई वाणिज्यिक इकाइयाँ समान दावा करने लगेंगी, जिससे सिंगूर निर्णय की मूल भावना कमजोर होगी।
इसके अलावा, पीठ ने स्पष्ट किया कि केदार नाथ में दी गई राहत उन किसानों के लिए थी, जिन्हें जनहित याचिका के माध्यम से प्रतिनिधित्व दिया गया था-न कि उन पक्षों के लिए जो कभी अदालत नहीं गए या कानूनी उपायों का सहारा नहीं लिया। जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी की, “न्यायिक लाभ सक्रिय प्रयासों से मिलते हैं, न कि निष्क्रिय अवसरवाद से।”
निर्णय
राज्य की अपील स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2017 और 2018 में कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेशों को रद्द कर दिया। न्यायालय ने कहा कि सैंटी सिरेमिक्स जमीन वापसी की हकदार नहीं है, लेकिन उसे यह अनुमति दी गई कि वह तीन महीनों के भीतर अपनी शेष मशीनरी या संरचनाएँ जमीन से हटा सकती है। वैकल्पिक रूप से, वह राज्य सरकार से अपने परिसंपत्तियों की सार्वजनिक नीलामी कराने का अनुरोध कर सकती है और खर्च काटकर शेष आय प्राप्त कर सकती है।
कोर्ट ने हुगली के जिला मजिस्ट्रेट को पूरी प्रक्रिया की निगरानी का निर्देश दिया और कहा कि सभी औपचारिकताएँ चार महीनों के भीतर पूरी की जाएँ। पीठ ने कहा, “औद्योगिक इकाइयों को उन मुकदमों से लाभ लेने देना, जिनमें उन्होंने भाग ही नहीं लिया, एक अनुचित मिसाल स्थापित करेगा।”
इस प्रकार, सिंगूर में औद्योगिक और कृषि अधिकारों के बीच लम्बे समय से चली आ रही कानूनी जंग को एक बार फिर न्यायिक समापन मिला-इस बार राज्य सरकार के पक्ष में।
Case Title: The State of West Bengal & Others v. M/s Santi Ceramics Pvt. Ltd. & Another
Case Type: Civil Appeal (arising out of SLP (C) No. 33701/2018)
Date of Judgment: October 13, 2025