कर्नाटक जेल विभाग में लंबे समय से चल रहे सेवा विवाद पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया। अदालत ने कर्नाटक राज्य प्रशासनिक अधिकरण (KSAT) और कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेशों को रद्द करते हुए राज्य सरकार को वरिष्ठता तय करने की प्रक्रिया दोबारा करने का निर्देश दिया। जस्टिस जे.के. महेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई की पीठ ने यह फैसला सुनाया, जिसकी सुनवाई के दौरान कई बार बेंच और राज्य के वकीलों के बीच तीखी चर्चाएँ भी हुईं।
पृष्ठभूमि
यह विवाद लगभग दो दशक पुराना है। 2004–05 की भर्ती अधिसूचना के तहत कर्नाटक लोक सेवा आयोग (KPSC) ने असिस्टेंट सुपरिंटेंडेंट ऑफ प्रिज़न्स के पदों पर चयन किया था। इन्हीं में सुुरेश के. और आर. लता का चयन हुआ और वर्ष 2006 में उनकी नियुक्ति भी हो गई। लेकिन महेश कुमार जिगानी का नाम चयन सूची में नहीं आया, जिसके बाद उन्होंने 2007 में सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर की।
यह याचिका कई आदेशों और संशोधनों की श्रृंखला की शुरुआत बनी। 2010 में कोर्ट ने उनकी याचिका को क्षैतिज आरक्षण की गलतियों से संबंधित एक अन्य मामले के साथ जोड़ दिया। बाद में, संशोधन याचिका पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि जिगानी के मामले पर राजेश कुमार धारिया बनाम राजस्थान पब्लिक सर्विस कमीशन वाले फैसले के सिद्धांत लागू होंगे। यह फैसला महिलाओं के क्षैतिज आरक्षण की गणना कैसे हो, इस पर महत्वपूर्ण मार्गदर्शन देता है।
इसके बाद 2011 में राज्य ने एक परिशिष्ट अधिसूचना जारी कर जिगानी की नियुक्ति कर दी। लेकिन 2016 में जब राज्य ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के आधार पर संशोधित वरिष्ठता सूची जारी की, तो जिगानी ने इसे KSAT में चुनौती दी। KSAT ने उनके पक्ष में निर्णय दिया, जिसे हाई कोर्ट ने भी बरकरार रखा। इसके बाद सुरेश के. और आर. लता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।
अदालत के अवलोकन
सुनवाई के दौरान बेंच, KSAT और हाई कोर्ट द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण से संतुष्ट नहीं दिखी। जस्टिस महेश्वरी ने एक समय टिप्पणी की, “हमने पहले ही स्पष्ट किया था कि धारिया फैसला कैसे लागू होना चाहिए। निचली अदालतों ने इसे जरूरत से ज़्यादा खींच दिया।”
अदालत ने यह भी इंगित किया कि जिगानी द्वारा 2007 में दायर मूल रिट याचिका और बाद में दाखिल संशोधन आवेदन, न तो ट्रिब्यूनल और न ही हाई कोर्ट के समक्ष रिकॉर्ड पर थे। बेंच के अनुसार, इस महत्वपूर्ण संदर्भ की अनुपस्थिति ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेशों की गलत व्याख्या में योगदान दिया।
पीठ ने कहा, “निर्देश बिल्कुल स्पष्ट थे। एक बार यह कह दिया गया कि धारिया का निर्णय लागू होगा, तो उसका अनुपालन सख्ती से होना चाहिए था।”
अदालत ने पैराग्राफ 13.2 पर खास जोर दिया, जिसमें कहा गया है कि अगर कोई उम्मीदवार बाद में समायोजित किया जाता है, तो उसे पिछली वरिष्ठता तो मिल सकती है, लेकिन वेतन-भत्तों का कोई पिछला लाभ नहीं मिलेगा-सिर्फ पदोन्नति और पेंशन जैसे मामलों में इसका प्रभाव पड़ेगा।
फैसला
मामले का निपटारा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने KSAT और हाई कोर्ट-दोनों के आदेश रद्द कर दिए। सुरेश के. और आर. लता की अपीलें पूरी तरह स्वीकार कर ली गईं।
अदालत ने कर्नाटक सरकार को निर्देश दिया कि धारिया निर्णय के पैराग्राफ 13.2 को “सख्ती से” लागू करते हुए, अपीलकर्ताओं और जिगानी के बीच वरिष्ठता तय की जाए। यह प्रक्रिया तीन महीने के भीतर पूरी की जानी होगी। इसके साथ ही सभी लंबित आवेदनों को निपटाया गया, जिससे कर्नाटक की इस पुरानी भर्ती प्रक्रिया में अब एक स्पष्ट समाधान की दिशा खुल गई है।
Case Title: Suresh K. & Another vs. State of Karnataka & Others
Case No.: Civil Appeal (Arising out of SLP (C) Nos. 6350–6351 of 2022)
Case Type: Civil Appeal – Service/Seniority Dispute
Court: Supreme Court of India
Bench: Justice J.K. Maheshwari & Justice Vijay Bishnoi
Decision Date: 28 October 2025