मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अपने हालिया फैसले में कहा कि यदि शादी के बाद कोई पति या पत्नी विपरीत लिंग के किसी व्यक्ति से अशोभनीय या अश्लील बातचीत करता है और यह आचरण जीवनसाथी के लिए असहनीय हो जाता है, तो इसे मानसिक क्रूरता माना जाएगा। हाईकोर्ट ने परिवार न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए विवाह को समाप्त करने का आदेश दिया।
इंदौर पीठ के न्यायमूर्ति विवेक रूसिया और न्यायमूर्ति गजेन्द्र सिंह की खंडपीठ ने कहा:
"कोई भी पति यह बर्दाश्त नहीं करेगा कि उसकी पत्नी मोबाइल के माध्यम से इस प्रकार की अश्लील बातचीत में लिप्त हो। शादी के बाद पति-पत्नी को अपने दोस्तों से बात करने की स्वतंत्रता होती है, लेकिन बातचीत का स्तर शालीन और गरिमामय होना चाहिए, विशेष रूप से जब वह किसी विपरीत लिंग के व्यक्ति से हो।"
Read Also:- सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया: तलाक समझौते में प्राप्त फ्लैट पर पत्नी को स्टाम्प ड्यूटी नहीं देनी होगी
अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि कोई पत्नी या पति साथी के आपत्ति जताने के बावजूद भी इस प्रकार की गतिविधियों में संलिप्त रहता है, तो इसे मानसिक क्रूरता के रूप में देखा जाएगा और यह तलाक का उचित आधार हो सकता है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला परिवार न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 19(1) के तहत पत्नी द्वारा दायर अपील से संबंधित था। पत्नी ने उज्जैन परिवार न्यायालय द्वारा दिए गए उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसके पति द्वारा दायर तलाक याचिका को स्वीकार कर विवाह को समाप्त कर दिया गया था।
पति ने अपने आरोपों में कहा:
शादी के तुरंत बाद पत्नी ने उसकी मां के साथ दुर्व्यवहार करना शुरू कर दिया। शादी के डेढ़ महीने बाद, पत्नी ने ससुराल छोड़ दिया और वापस आने से मना कर दिया। पति ने दावा किया कि उसकी पत्नी अपने दो पूर्व प्रेमियों के साथ व्हाट्सएप पर बातचीत करती थी, जिसमें वह अपने वैवाहिक संबंधों के निजी और अंतरंग पहलुओं पर चर्चा करती थी।
Read Also:- न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में शपथ ली
उसने यह भी आरोप लगाया कि पत्नी उसकी मां का अपमान करती थी और जब उसकी मां घायल हो गई थी, तब भी उसने कोई ध्यान नहीं दिया। जब उसने पत्नी को इस तरह की बातचीत रोकने के लिए कहा, तो पत्नी ने उसे झूठे मामले में फंसाने की धमकी दी।
पति ने पुलिस में लिखित शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके बाद एक समझौता हुआ, जिसमें पत्नी ने लिखित रूप में यह वचन दिया कि वह आगे से ऐसी कोई गतिविधि नहीं करेगी। लेकिन जब स्थिति में सुधार नहीं हुआ, तो पति ने मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक की अर्जी दाखिल की।
पत्नी की सफाई और आरोप:
पत्नी ने सभी आरोपों को गलत और झूठा बताया। उसने कहा कि उसके पति ने उसका मोबाइल हैक किया और चैटिंग के फर्जी सबूत तैयार किए।
उसने यह भी आरोप लगाया कि पति ने दहेज के रूप में 25 लाख रुपये मांगे और उस पर शारीरिक एवं मानसिक उत्पीड़न किया। हालांकि, अदालत में प्रस्तुत साक्ष्यों से यह साबित नहीं हो सका कि पत्नी के आरोप सही थे।
अदालत का अवलोकन और निर्णय
परिवार न्यायालय ने दोनों पक्षों की गवाही और प्रस्तुत साक्ष्यों का विश्लेषण किया, जिनमें निम्नलिखित शामिल थे:
- व्हाट्सएप चैटिंग के प्रिंटआउट
- पत्नी के पिता का बयान
- पति की मां की गवाही
अदालत ने पाया कि पत्नी के पिता, जो एक वरिष्ठ वकील हैं, ने स्वयं स्वीकार किया कि उनकी बेटी अन्य पुरुषों से आपत्तिजनक बातचीत करती थी, जिससे वह शर्मिंदा थे। यह बयान अदालत में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया गया था और पत्नी ने इसे पूरी तरह से नकारा भी नहीं।
न्यायालय ने कहा:
"यह अपेक्षा नहीं की जाती कि पति या पत्नी विवाह के बाद किसी विपरीत लिंग के व्यक्ति के साथ अशोभनीय या अनुचित बातचीत करें। यदि इस तरह की गतिविधियाँ आपत्ति के बावजूद जारी रहती हैं, तो यह मानसिक क्रूरता मानी जाएगी।"
कोर्ट ने यह भी देखा कि पत्नी द्वारा अपने पति के खिलाफ कोई एफआईआर या घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज नहीं कराई गई, जिससे यह साबित होता है कि पति द्वारा लगाए गए आरोप सही हैं।
Read Also:- सुप्रीम कोर्ट का फैसला: पावर ऑफ अटॉर्नी रद्द होने से पहले किए गए संपत्ति लेनदेन अमान्य नहीं होते
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने परिवार न्यायालय के फैसले को सही ठहराते हुए पत्नी की अपील को खारिज कर दिया।
"पति ने पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत किए हैं कि पत्नी ने उसके साथ मानसिक क्रूरता की। अपीलकर्ता के वकील परिवार न्यायालय के फैसले में कोई त्रुटि साबित करने में असफल रहे।"
इस प्रकार, हाईकोर्ट ने तलाक को वैध ठहराते हुए अपील को खारिज कर दिया।
मामला शीर्षक: R बनाम S, प्रथम अपील संख्या 1605/2023