मद्रास हाई कोर्ट ने डिजिटल भुगतान प्लेटफॉर्म फोनपे द्वारा बंडलपे इनोवेशन्स प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ दायर ट्रेडमार्क उल्लंघन के मामले को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति पी. वेल्मुरुगन ने फैसला सुनाते हुए कहा कि "पे" शब्द, जो फोनपे के ब्रांडिंग का प्रमुख हिस्सा है, भुगतान उद्योग में एक सामान्य शब्द है और किसी एक कंपनी का इस पर एकाधिकार नहीं हो सकता।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि "पे" हिंदी शब्द "पे" (भुगतान) का अंग्रेजी रूपांतरण है और यह गूगल पे, पेटीएम, एप्पल पे जैसी कंपनियों द्वारा व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है। न्यायालय ने कहा कि फोनपे का इस शब्द पर विशेष अधिकार का दावा कानूनी आधार से रहित है।
विवाद की पृष्ठभूमि
फोनपे ने दावा किया था कि बंडलपे और उसकी सहायक कंपनी लेटपे, "पे" शब्द का उपयोग करके उसके ट्रेडमार्क "फोनपे" की नकल कर रहे हैं। फोनपे के अनुसार, "बंडलपे" और "लेटपे" नाम उसके रजिस्टर्ड ट्रेडमार्क के साथ भ्रामक समानता रखते हैं, जिससे ग्राहकों में भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है।
फोनपे ने बताया कि वह 2015 से "फोनपे" ट्रेडमार्क का मालिक है और यह भारत के 48% यूपीआई लेनदेन को संभालता है। उसने मार्च 2023 में बंडलपे को रोकने और छोड़ने का नोटिस भेजा था, लेकिन कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया न मिलने पर मामला कोर्ट पहुंचा।
बंडलपे ने इन दावों का खंडन करते हुए कहा कि उनकी सेवाएं बिल भुगतान और रिचार्ज तक सीमित हैं, जबकि फोनपे यूपीआई आधारित समाधान प्रदान करता है। बंडलपे ने यह भी उजागर किया कि "पे" शब्द भुगतान से जुड़ा एक सामान्य शब्द है और इसे ट्रेडमार्क नहीं बनाया जा सकता।
न्यायमूर्ति वेल्मुरुगन ने कहा,
"'पे' शब्द न तो अद्वितीय है और न ही विशिष्ट। इसका उद्योग-व्यापी उपयोग फोनपे के दावों को खारिज करता है।"
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कोर्ट ने माना कि "बंडल" और "लेट" जैसे उपसर्गों ने बंडलपे के ब्रांड को अलग पहचान दी है। न्यायाधीश ने कहा,
"सैद्धांतिक भ्रम के दावे वास्तविक सबूतों से ऊपर नहीं हो सकते। फोनपे ग्राहकों में वास्तविक भ्रम साबित नहीं कर पाया।"
बंडलपे का ध्यान यूटिलिटी बिल भुगतान और पे-लेटर सुविधाओं पर है, जबकि फोनपे यूपीआई पर केंद्रित है। इस अंतर ने भ्रम की संभावना को कम किया।
फोनपे का "प्रसिद्ध ट्रेडमार्क" घोषित करने का अनुरोध खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि "पे" का प्रतिस्पर्धियों द्वारा उपयोग इसके विशिष्टता के दावे को कमजोर करता है।
फैसले के प्रभाव
यह निर्णय स्पष्ट करता है कि सामान्य शब्दों पर एकाधिकार नहीं बनाया जा सकता, भले ही कोई ब्रांड उन्हें लोकप्रिय बना दे। स्टार्टअप और फिनटेक कंपनियां "पे" जैसे शब्दों का उपयोग सुरक्षित रूप से कर सकती हैं, बशर्ते उनकी ब्रांडिंग में विशिष्ट तत्व शामिल हों।
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न्यायमूर्ति वेल्मुरुगन ने टिप्पणी की,
"प्रतिस्पर्धा नवाचार से बढ़ती है, सामान्य शब्दों पर रोक लगाने से नहीं।"
मद्रास हाई कोर्ट का यह फैसला भारतीय ट्रेडमार्क कानून में एक मिसाल बन गया है, जो ब्रांड सुरक्षा और उद्योग-व्यापी शब्दावली के बीच संतुलन को दर्शाता है। फोनपे के दावों को खारिज कर कोर्ट ने एक प्रतिस्पर्धी बाजार का मार्ग प्रशस्त किया है, जहां सभी खिलाड़ी सामान्य शब्दों का उपयोग कर सकते हैं।
मामला: फोनपे प्राइवेट लिमिटेड बनाम बंडलपे इनोवेशन्स प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य
फोनपे के वकील: श्री पी. गिरिधरन
बंडलपे के वकील: श्री आर. सतीश कुमार