सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई है जिसमें ओटीटी प्लेटफॉर्म्स जैसे नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम, अल्ट बालाजी और अन्य पर ऑनलाइन अश्लील कंटेंट के वितरण को लेकर रेगुलेशन की मांग की गई है।
यह मामला न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध था। कोर्ट ने इस याचिका पर विचार करने में अनिच्छा जताई और कहा कि यह विषय नीति निर्माण से जुड़ा है, और इसमें न्यायालय का हस्तक्षेप उपयुक्त नहीं है।
"हम कैसे...? यह नीति का विषय है। यह केंद्र सरकार का कार्यक्षेत्र है कि वह नियम बनाए... वैसे भी हम पर आरोप लगते हैं कि हम कार्यपालिका और विधायिका के कामों में हस्तक्षेप करते हैं..." — न्यायमूर्ति बीआर गवई
हालांकि कोर्ट की अनिच्छा के बावजूद, याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा कि यह एक गंभीर मुद्दा है और वे कोर्ट को संतुष्ट कर सकते हैं। इसके बाद पीठ ने उन्हें याचिका की एक प्रति केंद्र सरकार को देने को कहा और मुस्कराते हुए कहा:
"हम इसे अगली तारीख पर सुनकर खारिज कर देंगे।" — न्यायमूर्ति बीआर गवई (मुस्कराते हुए)
यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ओटीटी कंटेंट रेगुलेशन की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा है।
अप्रैल 2024 में, न्यायमूर्ति बीआर गवई और संदीप मेहता की पीठ के समक्ष एक और पीआईएल दायर हुई थी, जिसमें ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर अनुपयुक्त कंटेंट के प्रकाशन पर आपत्ति जताई गई थी। याचिका में कहा गया था कि कुछ फिल्मों में नग्नता दिखाई जाती है, और कोई भी व्यक्ति उन्हें आसानी से देख सकता है। इस पर पीठ ने सुझाव दिया था कि पहले सरकार को एक अभ्यावेदन (representation) दिया जाए। इसके बाद याचिका को यह स्वतंत्रता देते हुए वापस ले लिया गया कि याचिकाकर्ता कानून के अनुसार सरकार से संपर्क कर सकते हैं।
इसके बाद अक्टूबर 2024 में, तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेपी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने एक और याचिका खारिज कर दी जिसमें ओटीटी कंटेंट और फिल्मों की रिलीज को रेगुलेट करने के लिए एक बोर्ड गठित करने की मांग की गई थी। पीठ ने यह स्पष्ट किया कि यह एक नीति विषय है।
"अब समस्या यह है कि हमें जिस तरह की पीआईएल्स मिल रही हैं, उनके कारण हमारे पास वास्तविक जनहित याचिकाओं के लिए समय ही नहीं है। ये नीतिगत विषय हैं — इंटरनेट को कैसे रेगुलेट करें, ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को कैसे नियंत्रित करें — यह ऐसा कुछ नहीं है जिसे हम अपने अधिकार क्षेत्र में करते हुए तय कर सकें।" — सुप्रीम कोर्ट की पीठ
केस का शीर्षक: उदय माहुरकर एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य, डब्ल्यू.पी.(सी) संख्या 313/2025