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Rohingya बच्चों के स्कूल में दाखिले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला: पहले आवेदन करें, फिर हाई कोर्ट जाएं

Shivam Y.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि योग्य Rohingya बच्चों को पहले स्कूल में आवेदन करना चाहिए और अगर प्रवेश से इनकार किया जाए, तो वे दिल्ली हाई कोर्ट जा सकते हैं।

Rohingya बच्चों के स्कूल में दाखिले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला: पहले आवेदन करें, फिर हाई कोर्ट जाएं

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के स्कूलों में Rohingya शरणार्थी बच्चों के दाखिले से जुड़ी याचिका को निपटाते हुए कहा कि पहले बच्चों को संबंधित सरकारी स्कूलों में आवेदन करना होगा। यदि वे योग्य होने के बावजूद प्रवेश से वंचित किए जाते हैं, तो उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट जाने का अधिकार होगा।

न्यायमूर्ति सूर्य कांत और एन. कोटिस्वर सिंह की पीठ ने कहा:

"इन बच्चों के लिए उचित रास्ता यही है कि वे उन सरकारी स्कूलों में आवेदन करें, जिनके लिए वे खुद को पात्र मानते हैं। यदि उन्हें प्रवेश से इनकार किया जाता है, तो वे दिल्ली हाई कोर्ट जा सकते हैं।"

इस निर्देश के साथ सुप्रीम कोर्ट ने विशेष अनुमति याचिका (SLP) का निपटारा कर दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

सामाजिक संगठन Social Jurist – A Civil Rights Group ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर कर दिल्ली सरकार और नगर निगम को निर्देश देने की मांग की थी कि वे Rohingya शरणार्थी बच्चों को उनके निवास स्थान के निकट स्थित स्कूलों में दाखिला दें।

याचिका में कहा गया कि दिल्ली सरकार और नगर निगम आधार कार्ड की अनुपस्थिति के कारण इन बच्चों को स्कूल में प्रवेश नहीं दे रहे थे।

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दिल्ली हाई कोर्ट ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा था:

"Rohingya विदेशी नागरिक हैं, जिन्हें आधिकारिक रूप से भारत में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई है। यह एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा है, जिसमें सुरक्षा और नागरिकता से संबंधित जटिलताएँ शामिल हैं। सरकार को इस पर निर्णय लेना होगा।"

इसके बाद हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता को केंद्रीय गृह मंत्रालय में आवेदन करने का निर्देश दिया, ताकि सरकार इस मामले पर शीघ्र निर्णय ले सके।

सुप्रीम कोर्ट में अपील और आदेश

दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश से असंतुष्ट होकर याचिकाकर्ता Social Jurist ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता से Rohingya परिवारों की वास्तविक स्थिति का विवरण माँगा था। इसके जवाब में दाखिल हलफनामे में 18 बच्चों की जानकारी दी गई, जो स्कूल में प्रवेश के पात्र थे। इसमें यह भी बताया गया कि इनमें से कुछ बच्चों के भाई-बहन पहले से ही दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे हैं।

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सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने टिप्पणी की:

"इस मामले में ऐसा कोई सरकारी सर्कुलर नहीं है, जो Rohingya बच्चों के स्कूल प्रवेश पर प्रतिबंध लगाता हो। कोई व्यक्ति स्कूल में आवेदन कर सकता है, अपने निवास स्थान का प्रमाण दे सकता है, और फिर कानून अपना काम करेगा।"

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पहले Rohingya बच्चों को स्कूलों में आवेदन करना चाहिए और यदि वे प्रवेश पाने के पात्र होने के बावजूद अस्वीकृत किए जाते हैं, तो वे दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट का अंतिम आदेश:

  1. Rohingya बच्चों को पहले सरकारी स्कूलों में आवेदन करना होगा।
  2. यदि योग्य होने के बावजूद दाखिला न मिले, तो वे दिल्ली हाई कोर्ट जा सकते हैं।
  3. याचिकाकर्ता संगठन Social Jurist ने कोर्ट को आश्वस्त किया कि जरूरत पड़ने पर वे इन बच्चों को निःशुल्क कानूनी सहायता (Pro Bono Legal Assistance) देंगे।
  4. सुप्रीम कोर्ट ने विशेष अनुमति याचिका (SLP) को निपटाते हुए सभी लंबित आवेदनों को भी समाप्त कर दिया।