लखनऊ, 18 सितम्बर - इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ पीठ) ने एक सख्त लेकिन संतुलित आदेश में बहराइच पारिवारिक अदालत के प्रधान न्यायाधीश को निर्देश दिया कि "स्मिता सबा सिद्दीकी बनाम शोदुल हसन" के भरण-पोषण मामले की सुनवाई शीघ्र पूरी की जाए। यह मामला दंड प्रक्रिया संहिता (Cr.P.C.) की धारा 125 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (B.N.S.S.) की धारा 144 के तहत दायर किया गया था। न्यायमूर्ति सुभाष विद्यावर्ती के अवलोकन सिर्फ इस मामले तक सीमित नहीं रहे - बल्कि उन्होंने अदालतों पर बढ़ते बोझ, देरी और अधिवक्ताओं की अपर्याप्त तैयारी पर एक गहरी टिप्पणी की।
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पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता स्मिता सबा सिद्दीकी ने अपने भरण-पोषण मामले के शीघ्र निस्तारण के लिए हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था। यह मामला जून 2023 से पारिवारिक अदालत में लंबित था। पारिवारिक अदालत ने मार्च 2025 में उन्हें अंतरिम भरण-पोषण देने का आदेश दिया था, लेकिन इसके बाद भी मामला लंबा खिंचता चला गया और अगली तारीख मई 2025 के लिए तय की गई।
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति विद्यावर्ती ने यह टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने निचली अदालत के आदेशों की प्रतियां "उचित क्रम में और व्यवस्थित तरीके से" प्रस्तुत नहीं की थीं। न्यायाधीश ने कहा,
"आदेशों की प्रतियां इतनी अव्यवस्थित रूप से संलग्न की गईं कि न्यायालय को उन्हें देखने में अत्यधिक समय लगाना पड़ा।"
अदालत ने यह भी याद दिलाया कि पिछली सुनवाई 16 सितम्बर को इसी उद्देश्य से स्थगित की गई थी ताकि अधिवक्ता रिकॉर्ड को सही क्रम में प्रस्तुत कर सकें। फिर भी, जब मामला दोबारा सुना गया, तो अधिवक्ता ने "फिर से दलीलें शुरू कर दीं, बिना यह बताए कि अदालत ने पहले मामले को सुधार के लिए पास ओवर किया था।"
अदालत के अवलोकन
न्यायमूर्ति विद्यावर्ती ने न्यायपालिका पर बढ़ते कार्यभार और अधिवक्ताओं की अपर्याप्त तैयारी पर स्पष्ट टिप्पणी की। उन्होंने बताया कि जिस दिन यह मामला सुना गया, उस दिन उनके समक्ष 91 नए मामले और 182 अन्य मामले सूचीबद्ध थे, साथ ही छह विविध आवेदन भी थे - और यह सब केवल 300 मिनट की सीमित कार्यावधि में।
“अदालतें कार्य के बोझ से दबी हुई हैं,” न्यायमूर्ति ने कहा, “और कई अधिवक्ता अदालत की मदद निष्पक्ष रूप से और अपनी पूरी क्षमता के साथ नहीं करते।”
उन्होंने बार (वकीलों) को याद दिलाया कि अधिवक्ता अपने मुवक्किलों के प्रतिनिधि होने के साथ-साथ "अदालत के अधिकारी" भी होते हैं, और उन्हें समय पर न्याय सुनिश्चित करने में सहयोग करना चाहिए। उन्होंने पूर्व निर्णयों - बनवारी लाल कंचल बनाम डॉ. भारतेंदु अग्रवाल (2023) और विपिन तिवारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2025) - का हवाला देते हुए फिर से आग्रह किया कि अधिवक्ता अपनी दलीलों में संक्षिप्त और सटीक रहें।
न्यायालय ने टिप्पणी की,
“जब इतनी बड़ी संख्या में मामले इस अदालत में दाखिल हो रहे हैं और अदालत को दो महीने के भीतर सभी जमानत याचिकाओं का निस्तारण करना अपेक्षित है, ऐसे में अधिवक्ताओं की कमजोर सहायता न्याय के शीघ्र वितरण में बाधा बन रही है।”
न्यायमूर्ति विद्यावर्ती ने खेद जताया कि बार द्वारा बार-बार किए गए न्यायिक अनुरोधों के बावजूद
"अधिवक्ताओं ने अदालत की अपीलों पर ध्यान नहीं दिया है।" फिर भी, उन्होंने कहा कि अदालत, अपने शपथबद्ध कर्तव्य के तहत, "रिकॉर्ड का अवलोकन करने और याचिकाकर्ता को न्याय दिलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं रखती।"
अदालत का निर्णय
मामले के रिकॉर्ड की जांच के बाद अदालत ने पाया कि प्रतिवादी शोदुल हसन लगातार पारिवारिक अदालत में अनुपस्थित रहे, जिसके कारण अदालत को मामले की एक्स-पार्टी (एकतरफा) सुनवाई करनी पड़ी।
न्यायालय ने माना कि भरण-पोषण से संबंधित याचिकाओं का शीघ्र निपटारा अत्यंत आवश्यक है क्योंकि यह सीधे निर्भर व्यक्तियों के जीवनयापन और गरिमा से जुड़ा होता है।
न्यायमूर्ति विद्यावर्ती ने बहराइच पारिवारिक अदालत को आदेश दिया कि मामला शीघ्रता से और विधि के अनुसार निपटाया जाए।
अदालत ने निर्देश दिया,
“पारिवारिक अदालत किसी भी पक्ष को अनावश्यक स्थगन न दे और तिथियाँ कम अंतराल पर तय करे।”
इस निर्देश के साथ, हाईकोर्ट ने याचिका का निपटारा कर दिया। आदेश पर कोर्ट अधिकारी प्रीति गौतम के डिजिटल हस्ताक्षर हैं। इस आदेश ने एक बार फिर यह रेखांकित किया कि न्यायिक दक्षता केवल तेजी से मामलों के निपटारे में नहीं, बल्कि सहयोग और अनुशासन में भी निहित है - चाहे वह बेंच हो या बार।
Case Title: Smt. Saba @ Saba Siddiqui vs. Shodul Hasan
Case Number: MATTERS UNDER ARTICLE 227 No. – 5554 of 2025
Date of Order: September 18, 2025