1 अक्टूबर 2025 को दिए गए एक फैसले में बॉम्बे हाईकोर्ट (औरंगाबाद पीठ) ने हरिओमदास गोविंददास बैणडे नामक 37 वर्षीय मजदूर की सजा को बरकरार रखा, जिसे 2017 में अपनी पत्नी कल्पना की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था। न्यायमूर्ति नितिन बी. सूर्यवंशी और न्यायमूर्ति संदीपकुमार सी. मोरे की खंडपीठ ने उसकी अपील खारिज करते हुए आजीवन कारावास की सजा को कायम रखा।
औरंगाबाद की शांत अदालत में सुनवाई के दौरान माहौल तनावपूर्ण था। बचाव पक्ष बार-बार यह दलील देता रहा कि मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित है और “आंखोंदेखे गवाह” ने भी अपने बयान से मुकर गई है। लेकिन अदालत ने इन दलीलों को अस्वीकार कर दिया।
पृष्ठभूमि
यह मामला अक्टूबर 2017 की एक भयावह रात से जुड़ा है। कल्पना, जो साई अस्पताल में सफाईकर्मी के रूप में काम करती थी, अपने पति हरिओमदास और तीन बच्चों के साथ मरुतिनगर, हरसूल के किराए के घर में रहती थी। अभियोजन के अनुसार, हरिओमदास को अक्सर अपनी पत्नी की वफादारी पर शक रहता था और वह उसे मारता-पीटता था।
हत्या की रात, उनकी बेटी नेटल ने अपनी नानी को घबराई हुई आवाज़ में फोन किया - बताया कि पिता ने हथौड़े से मां के सिर पर वार किया और फिर मार्बल काटने की मशीन से खुद का गला काटने की कोशिश की। जब पुलिस पहुँची, तो दोनों खून से लथपथ पाए गए। घाटी अस्पताल में कल्पना ने दम तोड़ दिया।
अदालत के अवलोकन
खंडपीठ ने गवाहों के बयान, मेडिकल रिपोर्ट और फोरेंसिक सबूतों का बारीकी से अध्ययन किया। न्यायाधीशों ने कहा कि भले ही मुख्य गवाह नेटल ने बाद में अपना बयान बदल दिया, लेकिन बाकी सबूत स्पष्ट रूप से आरोपी की ओर इशारा करते हैं।
“मृत्यु घर के अंदर हुई थी जहाँ केवल आरोपी और मृतका मौजूद थे। आरोपी यह नहीं बता सका कि यह कैसे हुआ,” अदालत ने कहा।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सिर पर हथौड़े जैसे भारी वस्तु से लगी गहरी चोट पाई गई। हथौड़े और मार्बल कटर पर खून के निशान, और आरोपी की खुद की गर्दन पर चोट, अभियोजन की कहानी को मजबूती देती है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि जब हत्या घर की चारदीवारी में हुई हो, तो आरोपी पर यह दायित्व होता है कि वह स्थिति स्पष्ट करे - लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। “उसकी चुप्पी और झूठा बचाव ही परिस्थितियों की कड़ी को पूरा करता है,” खंडपीठ ने टिप्पणी की।
निर्णय
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट का फैसला पूरी तरह उचित था। न्यायाधीशों ने कहा कि सबूतों की श्रृंखला - खून से सने सामान, मेडिकल रिपोर्ट और आरोपी की असंगत कहानी - यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि हरिओमदास ने शक के चलते अपनी पत्नी की हत्या की।
अदालत ने इस प्रकार अपील खारिज करते हुए निचली अदालत द्वारा दी गई सजा को बरकरार रखा - भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत आजीवन कारावास और धारा 309 के तहत आत्महत्या के प्रयास के लिए दो माह का कठोर कारावास।
लगभग छह साल लंबी कानूनी लड़ाई यहीं खत्म हुई। अदालत उठने के बाद वातावरण में सन्नाटा छा गया - घरेलू अविश्वास ने एक बार फिर जान ले ली, यह उस कड़वे सच की याद दिलाता है कि शक अक्सर चारदीवारी के भीतर ही सबसे घातक साबित होता है।
Case: Hariomdas Govinddas Bainade vs The State of Maharashtra
Case Type: Criminal Appeal No. 1253 of 2019
Judgment Reserved On: 14 August 2025
Pronounced On: 1 October 2025
Appellant: Hariomdas Govinddas Bainade (Age 37, Labourer)
Respondent: The State of Maharashtra
Trial Court Judgment Date: 6 November 2019 (Sessions Case No. 26 of 2018)