कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला देते हुए 25 साल पुराने आपराधिक केस को रद्द कर दिया। यह केस आशीष कुमार सेन उर्फ बप्पी नाम के व्यक्ति के खिलाफ दर्ज किया गया था। कोर्ट ने कहा कि उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं था और केस को जारी रखना न्याय की प्रक्रिया का गलत इस्तेमाल होता।
"याचिकाकर्ता इतने सालों से केस झेल रहा है, ऐसे में अब उसे और परेशान नहीं किया जा सकता।"
यह मामला साल 1998 की एक घटना से जुड़ा है। शिकायतकर्ता ने दावा किया था कि वह एक दुकान में किराए पर था, लेकिन उसे जबरन बाहर कर दिया गया। उसने मकानमालिक पर आरोप लगाए और कहा कि कोर्ट के "यथास्थिति बनाए रखने" के आदेश के बावजूद उसे 20 जून 1998 को बेदखल किया गया।
आशीष सेन उस वक्त गंगनांचल शॉप एंड ऑफिस ओनर्स वेलफेयर एसोसिएशन के सचिव थे। उन्होंने बताया कि उनकी वहां कुछ दुकानें थीं लेकिन घटना में उनका कोई हाथ नहीं था। उनके खिलाफ सिर्फ यह कहा गया था कि वह मौके पर मौजूद थे और सामान उनके स्कूल में रखा गया।
जांच में यह साफ हो गया कि याचिकाकर्ता का कोई सीधा रोल नहीं था।
शिकायतकर्ता और मकानमालिकों के बीच लंबे समय से संपत्ति को लेकर विवाद चल रहा था। यह विवाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने मकानमालिक के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि शिकायतकर्ता का कब्जा गलत था।
इस केस में एफआईआर घटना के आठ महीने बाद दर्ज हुई और चार्जशीट भी दो साल बाद दाखिल हुई। इतने साल बीत जाने के बाद भी आरोप तय नहीं हुए और कई गवाह अब जिंदा नहीं हैं या बीमार हैं।
अगर कोई अपराध साबित ही नहीं होता, तो सिर्फ देरी के आधार पर केस चलाना सही नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे लगे कि याचिकाकर्ता ने कोई अपराध किया। उसे सिर्फ इसलिए फंसाया गया क्योंकि वह वेलफेयर एसोसिएशन का सचिव था और मौके पर मौजूद था।
"ऐसे मामलों में केस चलाना संविधान के तहत मिले त्वरित न्याय के अधिकार का उल्लंघन है।"
इसलिए कोर्ट ने यह कहते हुए केस खत्म कर दिया कि अगर कोई सबूत नहीं है तो किसी को सालों तक केस में उलझाए रखना गलत है। इसी के साथ कोर्ट ने साल 1999 का केस खत्म कर दिया।