दिल्ली हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति की सजा को पलट दिया, जिसे एक नाबालिग लड़की से कथित रूप से दुष्कर्म के आरोप में तीन साल कैद की सजा सुनाई गई थी। अदालत ने कहा कि अभियोजन यह साबित करने में विफल रहा कि लड़की नाबालिग थी। न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी ने 16 सितम्बर 2025 को फैसला सुनाते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट ने पीड़िता की उम्र तय करने के लिए जाली जन्म प्रमाणपत्र पर भरोसा करके गलती की।
पृष्ठभूमि
जनवरी 2018 में अर्जुन को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार) के तहत दोषी ठहराया गया था। मामला मार्च 2013 का है, जब लड़की की मां ने उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। कुछ दिनों बाद लड़की सामने आई और बयान दिया कि वह अपने दोस्त पवन पाल के साथ घर से निकली थी। शुरूआती बयान में अर्जुन का नाम नहीं आया। बाद में धारा 164 सीआरपीसी के तहत दिए गए बयान में उसने कहा कि अर्जुन, जो पवन का दोस्त था, ने 2011 में शादी का वादा करके उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए।
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ट्रायल कोर्ट ने पवन को बरी कर दिया, लेकिन अर्जुन को दोषी ठहराया। अदालत का मुख्य आधार यह था कि लड़की उस समय नाबालिग थी।
अदालत की टिप्पणियां
हाईकोर्ट ने गवाही में आए विरोधाभासों पर गंभीरता से गौर किया। न्यायमूर्ति ओहरी ने कहा कि लड़की ने खुद स्वीकार किया कि पहले पुलिस को दिए बयान में अर्जुन का नाम नहीं था। सिर्फ दो दिन बाद उसका नाम सामने आया।
''गवाही में ऐसे भौतिक सुधार गंभीर संदेह पैदा करते हैं,'' जज ने टिप्पणी की।
पीड़िता की उम्र को लेकर विवाद अहम साबित हुआ। अभियोजन ने स्कूल के दाखिला रिकॉर्ड और जन्म प्रमाणपत्र पर भरोसा किया। लेकिन ट्रायल के दौरान एमसीडी के अधिकारियों ने गवाही दी कि वह प्रमाणपत्र जाली था। अदालत ने कहा,
''अभियोजन का पूरा आधार- कि पीड़िता नाबालिग थी- जन्म प्रमाणपत्र के खारिज होते ही ढह जाता है।''
इसके अलावा लड़की ने गवाही में अलग-अलग जन्मतिथि बताई और स्कूल रिकॉर्ड की सटीकता को भी नकार दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि उसकी उम्र का वैज्ञानिक परीक्षण (हड्डी परीक्षण) नहीं कराया गया।
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निर्णय
विरोधाभासों और विश्वसनीय सबूत की कमी को देखते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि अगर पीड़िता की नाबालिग उम्र साबित नहीं होती तो सहमति से बने संबंधों को बलात्कार नहीं माना जा सकता।
''किसी भी समय prosecutrix ने जबरन शारीरिक संबंध का आरोप नहीं लगाया। उसने खुद कहा कि संबंध सहमति से बने थे,'' अदालत ने दर्ज किया।
इस आधार पर कोर्ट ने अर्जुन की सजा और दोषसिद्धि को रद्द कर दिया और उसे बरी कर दिया। उसकी जमानत बॉन्ड को निरस्त कर दिया गया और जमानती को मुक्त कर दिया गया।
इस आदेश के साथ एक ऐसा मामला, जो एक दशक से अधिक समय से अटका हुआ था, अंततः समाप्त हुआ।
केस शीर्षक : अर्जुन बनाम राज्य (दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र)
केस नंबर : फौजदारी अपील संख्या 1004/2018