भारत के सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाई कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया है जिसमें एक कैनरा बैंक कर्मचारी को वापस नौकरी पर बहाल करने का निर्देश दिया गया था। इस कर्मचारी पर खातों में हेरफेर और प्रबंधकों पर दबाव डालकर अनियमित ऋण मंजूरी कराने का आरोप था। सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सज़ा उचित है और बैंकिंग संस्थाओं में जनता का भरोसा किसी भी कीमत पर नहीं डगमगाना चाहिए।
पृष्ठभूमि
यह मामला गंगनरसिम्हैया से जुड़ा है, जिन्होंने 1990 में कैनरा बैंक में दैनिक मज़दूरी पर काम शुरू किया और बाद में स्थायी स्टाफ में शामिल हो गए। वी.जी. डोड्डी शाखा में तैनाती के दौरान अनियमितताएँ सामने आईं। जांच में पाया गया कि उनकी पत्नी और पिता के नाम पर बिना अनुमति ऋण जारी किए गए और ग्राहकों के खातों में अनाधिकृत प्रविष्टियाँ की गईं। उन्हें 2004 में निलंबित कर दिया गया और बाद में चार्जशीट दी गई।
अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने उन्हें दोषी पाया और 2006 में अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सज़ा दी। बैंक के अपीलीय प्राधिकारी ने भी उनकी अपील खारिज कर दी। लेकिन केंद्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण और उसके बाद कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा कि सज़ा बहुत कठोर है और पर्याप्त सबूत नहीं हैं कि धोखाधड़ी वाली प्रविष्टियाँ सीधे उन्हीं ने की थीं। इसी आधार पर उन्हें बिना वेतन बकाया दिए बहाल करने का आदेश दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ के लिए जस्टिस विजय बिश्नोई ने ट्रिब्यूनल और हाई कोर्ट से असहमति जताई। फैसले में कहा गया कि विभागीय जांच में आपराधिक मामलों जैसी सख्त साक्ष्य नियम लागू नहीं होते, बल्कि यहाँ “संभावनाओं के प्राबल्य” (preponderance of probabilities) का सिद्धांत लागू होता है।
“पीठ ने कहा, ‘जनता का बैंकिंग व्यवस्था पर भरोसा उसके कर्मचारियों की ईमानदारी पर टिका है। ईमानदारी में कोई भी समझौता ऐसी संस्थाओं की नींव को हिला देता है।’”
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न्यायालय ने पाया कि जांच रिपोर्ट और कर्मचारी के स्वीकारोक्ति बयान से यह सिद्ध होता है कि उन्होंने रिकॉर्ड में हेरफेर किया। ट्रिब्यूनल द्वारा साक्ष्यों का दोबारा मूल्यांकन करने की आलोचना की गई, खासकर तब जब उसने पहले ही जांच को निष्पक्ष माना था।
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सज़ा अत्यधिक नहीं है। अदालत ने अनुशासनात्मक प्राधिकारी के निर्णय को बहाल किया और कर्मचारी के दावों को खारिज कर दिया।
इस आदेश के साथ गंगन रसिम्हैया अब सेवा में वापस नहीं लौटेंगे और करीब दो दशक से चल रहा यह विवाद समाप्त हो गया।
मामले का शीर्षक: महाप्रबंधक (निजी), केनरा बैंक बनाम गंगान रसिंहैया
दिनांक: 2025 (न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई द्वारा निर्णय)