ग्वालियर स्थित मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने भूमि अधिग्रहण कार्यालय के पूर्व कंप्यूटर ऑपरेटर रूप सिंह परिहार की पांचवीं जमानत याचिका खारिज कर दी है। उन पर किसानों को दिए जाने वाले मुआवजे की रकम में से 5 करोड़ रुपये से अधिक गबन करने का आरोप है। न्यायमूर्ति राजेश कुमार गुप्ता ने कहा कि आरोपों की गंभीरता और चल रही जांच को देखते हुए इस चरण पर जमानत देना उचित नहीं होगा।
पृष्ठभूमि
परिहार को जुलाई 2024 में गिरफ्तार किया गया था, जब जांच एजेंसियों ने आरोप लगाया कि उन्होंने और उनके साथियों ने फर्जी दस्तावेज बनाकर तथा कलेक्टर के आदेशों में हेरफेर कर किसानों को दिए जाने वाले मुआवजे का पैसा अपने खातों में ट्रांसफर करवा लिया।
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केस डायरी के अनुसार, 6.55 लाख रुपये चार किसानों को दिए जाने थे, लेकिन इसके बजाय 25 लाख रुपये से अधिक आठ लोगों को भेजे गए। हैरानी की बात है कि करीब 36.7 लाख रुपये परिहार के खाते में, 37 लाख रुपये उनकी पत्नी के खाते में और कई लाख रुपये अन्य रिश्तेदारों के खातों में गए।
अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि यह करीब 5.10 करोड़ रुपये का बड़ा घोटाला है और परिहार ने सबूत नष्ट करने के लिए राजस्व रिकॉर्ड में आग भी लगाई थी।
अदालत की टिप्पणियां
सुनवाई के दौरान परिहार के वकीलों ने दलील दी कि उन्हें झूठा फंसाया गया है और हाल ही में सुप्रीम कोर्ट से जमानत पाने वाली सह-आरोपी सीमा परिहार के मामले का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि यह गबन नहीं बल्कि अधिकारियों की लापरवाही से हुई तकनीकी गलती है।
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लेकिन राज्य पक्ष ने कड़ा विरोध किया। पैनल वकील ने कहा,
"वह मुख्य आरोपी है। उसकी कोई जमीन अधिग्रहित नहीं हुई थी। उसने सरकारी आईडी का दुरुपयोग कर कलेक्टर के आदेशों को फर्जी बनाकर सरकारी धन को अपने परिवार के खातों में डाला।"
न्यायमूर्ति गुप्ता ने माना कि सीमा परिहार पर हल्के आरोप थे जबकि रूप सिंह परिहार पर आपराधिक विश्वासघात, जालसाजी और भ्रष्टाचार से जुड़े गंभीर आरोप हैं। न्यायाधीश ने कहा,
"यह समानता का मामला नहीं है। आवेदक सरकारी कर्मचारी था और उसे रिकॉर्ड्स तक आसानी से पहुंच थी, जिसका उसने कथित तौर पर दुरुपयोग कर फर्जी दस्तावेज बनाकर धन हड़प लिया।"
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अदालत ने यह भी कहा कि निचली अदालत ने पहले आरोपों को गलत तरीके से हल्का कर दिया था और इस पर संबंधित न्यायाधीश के खिलाफ आंतरिक सतर्कता जांच शुरू की जा सकती है।
फैसला
केस डायरी का अवलोकन करने के बाद न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा कि यह जमानत देने योग्य मामला नहीं है। आदेश में कहा गया,
"आरोपों की प्रकृति, फर्जी दस्तावेजों और गबन की बड़ी राशि को देखते हुए, इस चरण पर जमानत देने का कोई आधार नहीं है।"
इसके साथ ही अदालत ने जमानत याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने आदेश की प्रति हाईकोर्ट के प्रिंसिपल रजिस्ट्रार (विजिलेंस) को भेजने और मुख्य न्यायाधीश को निचली अदालत के उस न्यायाधीश के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही पर विचार करने के लिए कहा, जिन्होंने पहले आरोपों को गलत तरीके से हल्का कर दिया था।
केस का शीर्षक: रूप सिंह परिहार बनाम मध्य प्रदेश राज्य
केस संख्या: विविध आपराधिक मामला संख्या 27465/2025