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दिल्ली हाईकोर्ट ने आज़ सप्लाई चेन की विलंबित लिखित बयान की अर्जी मंज़ूर की, देरी पर लागत लगाई

Shivam Yadav

आज़ सप्लाई चेन मैनेजमेंट प्रा. लि. (पूर्व में आज़ एंटरप्राइजेज प्रा. लि. के नाम से) बनाम स्काईलार्क एक्सप्रेस (दिल्ली) प्रा. लि. - दिल्ली हाईकोर्ट ने स्काईलार्क एक्सप्रेस वाद में आज़ सप्लाई चेन का विलंबित लिखित बयान स्वीकार किया, ₹25,000 लागत लगाई।

दिल्ली हाईकोर्ट ने आज़ सप्लाई चेन की विलंबित लिखित बयान की अर्जी मंज़ूर की, देरी पर लागत लगाई

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को ए.ए.जे. सप्लाई चेन मैनेजमेंट प्रा. लि. और स्काईलार्क एक्सप्रेस (दिल्ली) प्रा. लि. के बीच वाणिज्यिक विवाद में निष्पक्षता और प्रक्रिया के बीच संतुलन बनाने के लिए हस्तक्षेप किया। जस्टिस गिरीश काठपालिया ने निचली अदालत के उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें आज़ सप्लाई चेन की लिखित बयान रिकॉर्ड पर लेने की अर्जी ठुकरा दी गई थी। हालांकि, यह राहत एक शर्त पर मिली - कंपनी को विरोधी पक्ष को एक हफ्ते के भीतर 25,000 रुपये चुकाने होंगे।

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पृष्ठभूमि

यह मामला एक वाणिज्यिक वाद से जुड़ा है जिसमें आज़ सप्लाई चेन को पहली बार 19 जून 2024 को समन दिया गया था। अदालत के रिकॉर्ड के अनुसार, प्रतिवादी कंपनी ने जवाब देने की कोशिश की लेकिन कठिनाई का सामना करना पड़ा क्योंकि उन्हें जो वादपत्र और परिशिष्ट दिए गए, वे कथित तौर पर अपठनीय थे। उनके वकील का कहना था कि हालांकि स्काईलार्क की ओर से आश्वासन दिया गया था, लेकिन एक सही, पढ़ने योग्य प्रति केवल 5 अक्टूबर 2024 को ही मिली। इसके बाद लिखित बयान 5 नवंबर 2024 को दाखिल किया गया।

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लेकिन वाणिज्यिक अदालत संतुष्ट नहीं हुई। उसने सीपीसी (नागरिक प्रक्रिया संहिता) की आदेश VIII नियम 1 के तहत आज़ सप्लाई चेन की अर्जी खारिज कर दी और कहा कि कंपनी को सक्रिय रूप से पठनीय प्रति लेने के लिए कदम उठाने चाहिए थे, न कि चुपचाप इंतजार करना चाहिए था। इसी के बाद आज़ सप्लाई चेन हाईकोर्ट पहुँची।

अदालत की टिप्पणियाँ

जस्टिस काठपालिया ने दोनों पक्षों की दलीलों को सावधानी से सुना। आज़ की ओर से कहा गया कि वादी ने जानबूझकर कागज़ात देने में देरी की ताकि 120 दिन की समयसीमा निकल जाए और उनका बचाव का अधिकार खत्म हो जाए।

''अब जबकि लिखित बयान दाखिल हो चुका है, इसे रिकॉर्ड पर लिया जाना न्यायसंगत होगा,'' उनके वकील ने कहा।

दूसरी ओर, स्काईलार्क के वकील ने तर्क दिया कि आज़ सप्लाई चेन ने जून 2024 में समन मिलने के बावजूद कभी कोई पत्र नहीं लिखा और न ही पठनीय प्रति पाने के लिए औपचारिक आवेदन किया। फिर भी, व्यावहारिक रुख अपनाते हुए, स्काईलार्क की ओर से अदालत को कहा गया कि यदि भारी लागत लगाई जाए तो उन्हें अर्जी मंज़ूर करने पर कोई आपत्ति नहीं होगी।

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न्यायाधीश ने माना कि तकनीकी चूक के आधार पर न्याय को बलि नहीं चढ़ाया जा सकता। जस्टिस काठपालिया ने टिप्पणी की,

''विवादों का निपटारा यथासंभव गुण- दोष के आधार पर होना चाहिए, न कि डिफॉल्ट के आधार पर, खासकर तब जब डिफॉल्ट करने वाले पक्ष पर लागत डालकर दूसरे पक्ष की भरपाई की जा सकती है।''

फैसला

अंत में, हाईकोर्ट ने आज़ सप्लाई चेन की याचिका स्वीकार कर ली और निचली अदालत का आदेश रद्द कर दिया। लिखित बयान रिकॉर्ड पर रहेगा, लेकिन केवल तभी जब कंपनी एक हफ्ते के भीतर स्काईलार्क को 25,000 रुपये अदा करे। यदि समय पर राशि जमा नहीं की गई तो अदालत ने साफ कहा कि लिखित बयान रिकॉर्ड से हटा दिया जाएगा।

इसके साथ ही मामला अब गुण-दोष पर सुनवाई के लिए वाणिज्यिक अदालत में लौटेगा।

मामले का शीर्षक: आज़ सप्लाई चेन मैनेजमेंट प्रा. लि. (पूर्व में आज़ एंटरप्राइजेज प्रा. लि. के नाम से) बनाम स्काईलार्क एक्सप्रेस (दिल्ली) प्रा. लि.

मामला संख्या : सी.एम.(एम) 1827/2025, सी.एम. एपीएल. 58843/2025 एवं सी.एम. एपीएल. 58842/2025

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