Logo
Court Book - India Code App - Play Store

advertisement

मद्रास उच्च न्यायालय ने 2024 के लोकसभा चुनावों में मतदाता सूची में हेरफेर का आरोप लगाने वाली जनहित याचिका खारिज कर दी

Shivam Y.

अधिवक्ता (सी.ए.)। वी. वेंकट शिवकुमार बनाम भारत निर्वाचन आयोग और अन्य - मद्रास उच्च न्यायालय ने 2024 के चुनावों में मतदाता सूची में हेरफेर का आरोप लगाने वाली जनहित याचिका खारिज कर दी; याचिकाकर्ता पर ₹1 लाख का जुर्माना लगाया।

मद्रास उच्च न्यायालय ने 2024 के लोकसभा चुनावों में मतदाता सूची में हेरफेर का आरोप लगाने वाली जनहित याचिका खारिज कर दी

मद्रास हाईकोर्ट ने मंगलवार (9 सितम्बर 2025) को अधिवक्ता सी.ए. वेंकटा शिवकुमार द्वारा दायर जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया, जिसमें 2024 लोकसभा चुनावों के दौरान कथित मतदाता सूची हेरफेर के खिलाफ चुनाव आयोग (ECI) पर कड़े निर्देश देने की मांग की गई थी। अदालत ने न केवल याचिका खारिज की बल्कि याचिकाकर्ता पर 1 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया, जिसे तमिलनाडु राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को एक माह के भीतर जमा करना होगा।

Read in English

पृष्ठभूमि

स्वयं उपस्थित होकर दलील देते हुए याचिकाकर्ता ने अदालत से आग्रह किया कि चुनाव आयोग को आदेश दिया जाए कि वह 7 अगस्त 2025 को विपक्ष के नेता द्वारा प्रस्तुत पावरपॉइंट प्रस्तुति और 13 अगस्त को केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर की प्रेस वार्ता में लगाए गए आरोपों पर अपनी स्थिति स्पष्ट करे।

Read also:- सुप्रीम कोर्ट ने गुरुग्राम कृषि भूमि पर उत्तराधिकारियों का अधिकार बरकरार रखा, 1973 की बिक्री विलेख को सबूतों के अभाव में अमान्य ठहराया

सिवकुमार ने यह भी मांग की कि सभी संसदीय क्षेत्रों की मतदाता सूची मशीन-पठनीय (machine-readable) प्रारूप में सार्वजनिक की जाए, और आयोग द्वारा अब तक की गई जांच, ऑडिट व अन्य उपायों का पूरा विवरण भी उपलब्ध कराया जाए। उनका कहना था कि इस तरह की पारदर्शिता ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया में जनता का विश्वास बहाल कर सकती है।

अदालत की टिप्पणियाँ

मुख्य न्यायाधीश मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति जी. अरुल मुरुगन की पीठ ने याचिका पर कड़ा रुख अपनाया।

Read also:- सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाउसिंग बोर्ड की 11 साल की देरी पर लगाई फटकार, ज़मीन मुआवज़ा आदेश बहाल

मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की

"याचिका में ठोस सामग्री का अभाव है और केवल कुछ मंचों पर लगाए गए आरोपों व प्रति-आरोपों का हवाला दिया गया है। अदालत के सामने जो रखा गया है, वह केवल राजनीतिक दावों की पुनरावृत्ति है, इसमें स्वतंत्र शोध या तथ्यात्मक आधार नहीं है।"

न्यायाधीशों ने यह भी कहा कि इस तरह की राहत "पूर्णत: गलतफहमी" है क्योंकि अदालत चुनाव आयोग को राजनीतिक विवादों पर बयान देने के लिए बाध्य नहीं कर सकती।

Read also:- गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने सिया देवी बनाम भारत संघ मामले को राष्ट्रीय मध्यस्थता अभियान के तहत मध्यस्थता केंद्र में भेजा

फैसला

याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि अस्पष्ट दावों पर “व्यापक जांच” करना संभव नहीं है। आदेश में लिखा गया:

"चुनाव आयोग को ‘अपनी स्थिति स्पष्ट करने’ का कोई ऐसा निर्देश, जैसा कि इस याचिका में मांगा गया है, नहीं दिया जा सकता। याचिका भ्रांतिपूर्ण है और इसे ₹1,00,000/- (एक लाख रुपये) लागत के साथ खारिज किया जाता है, जिसे एक माह के भीतर जमा करना होगा।"

पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि अदालत ने आरोपों के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त नहीं की है और चुनाव आयोग चाहे तो इन मुद्दों पर अपने स्तर पर निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है।

इसके साथ ही मामला समाप्त हुआ, जिसे अदालत ने “सामग्री विवरण और ठोस तथ्यों से रहित याचिका” करार दिया।

केस का शीर्षक: अधिवक्ता (C. A).। V. वेंकट शिवकुमार बनाम भारत निर्वाचन आयोग और अन्य

केस नंबर: W.P. No. 34108 of 2025

Advertisment

Recommended Posts