Logo
Court Book - India Code App - Play Store

advertisement

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुग्राम कृषि भूमि पर उत्तराधिकारियों का अधिकार बरकरार रखा, 1973 की बिक्री विलेख को सबूतों के अभाव में अमान्य ठहराया

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने शांति देवी के उत्तराधिकारियों की अपील खारिज की, गुरुग्राम कृषि भूमि पर रसाली का दावा मानते हुए 1973 का बिक्री विलेख अमान्य घोषित किया।

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुग्राम कृषि भूमि पर उत्तराधिकारियों का अधिकार बरकरार रखा, 1973 की बिक्री विलेख को सबूतों के अभाव में अमान्य ठहराया

नई दिल्ली, 12 सितम्बर – सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को शांति देवी के उत्तराधिकारियों की अपील खारिज करते हुए हरियाणा के नूंह जिले की कृषि भूमि पर चार दशक पुराने विवाद को समाप्त कर दिया। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि 1973 का बिक्री विलेख, जिसके तहत कथित तौर पर भूमि का एक-तिहाई हिस्सा शांति देवी को स्थानांतरित किया गया था, कभी असली साबित नहीं हुआ। अदालत ने टिप्पणी की, “वादी द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य ने बिना किसी संदेह के साबित किया कि रसाली ने विवादित बिक्री विलेख कभी निष्पादित नहीं किया था।”

Read in English

पृष्ठभूमि

यह विवाद 1984 में शुरू हुआ जब 31 कनाल 4 मरला कृषि भूमि की सह-मालिक रसाली ने दावा किया कि उसने अपना हिस्सा शांति देवी को कभी नहीं बेचा। रसाली का आरोप था कि उसके हस्ताक्षर जाली थे और कोई बिक्री धनराशि नहीं दी गई। शांति देवी ने इसका विरोध करते हुए कहा कि उसने ₹15,000 में भूमि खरीदी थी और पंजीकृत विलेख प्रस्तुत किया।

Read also: सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाउसिंग बोर्ड की 11 साल की देरी पर लगाई फटकार, ज़मीन मुआवज़ा आदेश बहाल

ट्रायल कोर्ट ने समय-सीमा पार होने का हवाला देते हुए रसाली का दावा खारिज कर दिया। लेकिन प्रथम अपीलीय अदालत ने निर्णय पलटते हुए विलेख को अमान्य माना और रसाली को संयुक्त कब्जे का अधिकार दिया। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने भी यह फैसला बरकरार रखा, जिसके बाद शांति देवी के कानूनी उत्तराधिकारी सुप्रीम कोर्ट पहुँचे।

अदालत की टिप्पणियाँ

सर्वोच्च पीठ ने गहराई से जांच की कि क्या मामला समय-सीमा से बाहर था। बचाव पक्ष का तर्क था कि रसाली को 1973 के सौदे के तीन साल के भीतर ही मुकदमा करना चाहिए था। परन्तु अदालत ने सीमांकन अधिनियम की धारा 65 का हवाला दिया, जो प्रतिकूल कब्जे की स्थिति में अचल संपत्ति की वसूली के लिए 12 वर्ष की अवधि देता है।

फैसले का मुख्य आधार यह रहा कि बिक्री विलेख शुरू से ही शून्य था। अदालत ने पाया कि विलेख पर लगे अंगूठे के निशान रसाली से मेल नहीं खाते और महत्वपूर्ण गवाह- जिनमें शांति देवी के पति भी शामिल थे, जिन्होंने कथित तौर पर शेष रकम दी थी- ने कभी गवाही नहीं दी।

Read also: वनेता पटनायक यौन उत्पीड़न मामले में समय सीमा पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर, कुलपति के बायोडाटा में टिप्पणी का

पीठ ने कहा, “जब कोई दस्तावेज़ प्रारंभ से ही शून्य हो, तो उसे रद्द करने का आदेश आवश्यक नहीं होता क्योंकि वह कानून की नजर में अस्तित्वहीन है।”

निर्णय

हाई कोर्ट के निष्कर्ष को बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना कि 1984 में दायर रसाली का मुकदमा 12 साल की सीमा अवधि के भीतर था और बिक्री विलेख का कोई कानूनी महत्व नहीं है। निर्णय में कहा गया, “वादी वास्तव में 12 वर्षों की अवधि के भीतर संपत्ति के कब्जे की मांग कर सकती थी, भले ही बिक्री विलेख के निष्पादन की तिथि से गिना जाए।”

इस प्रकार, शांति देवी के उत्तराधिकारियों की अपील खारिज कर दी गई और गुरुग्राम की कृषि भूमि में रसाली के एक-तिहाई हिस्से पर उसका कानूनी अधिकार सुरक्षित हो गया।

मामला: शांति देवी (अब दिवंगत) कानूनी सलाहकार गोरान बनाम जगन देवी एवं अन्य के माध्यम से

अपील संख्या: सिविल अपील संख्या 11795/2025 (@ विशेष अनुमति याचिका (सी) संख्या 24821/2018)

निर्णय की तिथि: 12 सितंबर 2025

Advertisment

Recommended Posts