दिल्ली हाई कोर्ट ने पॉक्सो एफआईआर रद्द करने से किया इंकार, पीड़िता पर कलंक की दलील को बताया "घृणित"

By Shivam Y. • August 30, 2025

अल्ताफ बनाम दिल्ली सरकार एवं अन्य - दिल्ली उच्च न्यायालय ने पोक्सो मामले में एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया, कलंक संबंधी तर्क को "घृणित" बताया और घोषित अपराधी को 10,000 रुपये का जुर्माना भरने का निर्देश दिया।

दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को अल्ताफ नामक व्यक्ति द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें सरिता विहार थाने में दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई थी। यह मामला, एफआईआर संख्या 391/2024, भारतीय न्याय संहिता और पॉक्सो कानून के तहत दर्ज है, जिसमें एक नाबालिग लड़की के यौन शोषण के गंभीर आरोप शामिल हैं।

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न्यायमूर्ति गिरीश काठपालिया ने मौखिक निर्णय सुनाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को घोषित अपराधी घोषित किया जा चुका है और वह अभी भी कानून से बच रहा है। अभियोजन पक्ष ने याचिका का कड़ा विरोध करते हुए बताया कि पीड़िता अब भी नाबालिग है। अदालत ने इस तथ्य पर भी गौर किया कि आरोपी ने लड़की का वीडियो बनाकर उसे धमकाते हुए शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर किया था।

बचाव पक्ष के वकील ने तर्क दिया कि मामला रद्द कर दिया जाए ताकि लड़की को सामाजिक कलंक से बचाया जा सके।

इस दलील को कड़े शब्दों में ठुकराते हुए न्यायमूर्ति काठपालिया ने कहा,

"कलंक तो उस व्यक्ति पर होना चाहिए जिसने अपराध किया है, न कि उस पीड़िता पर जिसने पीड़ा सही है।"

अदालत ने जोर देकर कहा कि समाज में मानसिकता बदलने की ज़रूरत है ताकि शर्म अपराधी पर डाली जाए, पीड़िता पर नहीं।

याचिकाकर्ता के वकील ने आगे कहा कि पीड़िता के माता-पिता ने आरोपी से समझौता कर लिया है। अदालत ने इस तर्क को भी पूरी तरह निराधार बताते हुए खारिज कर दिया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अपराध से पीड़िता प्रभावित हुई है, न कि उसके माता-पिता। और चूंकि पीड़िता नाबालिग है, इसलिए उसके द्वारा आरोपी को माफ करने का प्रश्न ही नहीं उठता।

अदालत ने कहा कि हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है और याचिका को ₹10,000 के खर्च के साथ खारिज कर दिया। यह राशि एक सप्ताह के भीतर दिल्ली हाई कोर्ट विधिक सेवा समिति में जमा करनी होगी। साथ ही निचली अदालत को आदेश दिया गया कि खर्च की राशि जमा कराई जाए।

केस शीर्षक:- अल्ताफ बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य सरकार एवं अन्य।

केस संख्या: CRL.M.C. 2363/2025 & CRL.M.A. 10629/2025

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