कलकत्ता हाईकोर्ट ने सोमवार को सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (AFT) के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसमें एक पूर्व डिफेंस सर्विस कॉर्प्स (DSC) कर्मी को जीवनभर के लिए अवैध पेंशन देने का निर्देश दिया गया था। अदालत ने बाद में जारी सरकारी सर्कुलर के आधार पर उठाई गई आपत्तियों को सिरे से खारिज कर दिया। कोर्ट ने साफ कहा कि प्रशासनिक निर्देश पहले से मिले अधिकारों को खत्म नहीं कर सकते।
पृष्ठभूमि
यह मामला भारत संघ और अन्य द्वारा सशस्त्र बल न्यायाधिकरण, कोलकाता पीठ के 1 मार्च 2024 के आदेश को चुनौती देते हुए दायर रिट याचिका से जुड़ा था। प्रतिवादी गांदेती वासुदेव राव को अक्टूबर 1985 में भारतीय सेना में सिपाही के रूप में भर्ती किया गया था और सितंबर 2009 में कार्यकाल पूरा होने पर सेवानिवृत्त किया गया था। इसके बाद उन्हें नियमित पेंशन मिलने लगी।
बाद में राव को डिफेंस सर्विस कॉर्प्स में दस साल की अवधि के लिए पुनः भर्ती किया गया। सेवा के दौरान उन्हें पहले प्राइमरी हाइपरटेंशन और बाद में टॉरेट्स डिसऑर्डर तथा मध्यम अवसादग्रस्तता विकार का पता चला। इन चिकित्सीय कारणों के चलते दिसंबर 2019 में उन्हें मेडिकल आधार पर सेवा से मुक्त कर दिया गया, तब तक वे डीएससी में आठ साल से कुछ अधिक सेवा दे चुके थे।
विभागीय उपायों से राहत न मिलने पर राव ने न्यायाधिकरण का रुख किया और अवैध पेंशन की मांग की - यह वह पेंशन होती है जो चिकित्सा कारणों से सेवा छोड़ने वाले सैनिकों को दी जाती है। न्यायाधिकरण ने उनकी मांग स्वीकार करते हुए सेवा से मुक्त किए जाने के अगले दिन से पेंशन देने का निर्देश दिया।
अदालत की टिप्पणियाँ
हाईकोर्ट के समक्ष केंद्र सरकार की ओर से यह दलील दी गई कि राव को केवल सशस्त्र बलों की सेवा के लिए अयोग्य घोषित किया गया था, न कि नागरिक रोजगार के लिए, इसलिए वे अवैध पेंशन के हकदार नहीं हैं। इस तर्क के समर्थन में 16 जुलाई 2020 के मंत्रालयीय सर्कुलर पर खास जोर दिया गया।
हालांकि, पीठ इस दलील से सहमत नहीं हुई। न्यायाधिकरण के आदेश का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि एएफटी ने सुप्रीम कोर्ट के स्थापित फैसलों, जिनमें पी.ए. थॉमस और पूर्व-रिक्रूट मिथिलेश कुमार शामिल हैं, पर भरोसा किया था। इन फैसलों में साफ कहा गया है कि यदि सेवा से मुक्त किया जाना चिकित्सा कारणों से है, तो सेवा अवधि की लंबाई मायने नहीं रखती।
पीठ ने कहा, “न्यायाधिकरण ने स्पष्ट रूप से दर्ज किया है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित सिद्धांत इस मामले पर पूरी तरह लागू होते हैं।” अदालत ने यह भी जोड़ा कि केवल इस आधार पर अवैध पेंशन से इनकार नहीं किया जा सकता कि कर्मचारी ने दस साल की सेवा पूरी नहीं की।
अदालत ने यह भी अहम बात कही कि 2020 का सर्कुलर राव की सेवा समाप्ति के बाद जारी हुआ था। कोर्ट ने टिप्पणी की, “कोई भी प्रशासनिक निर्देश किसी भी हाल में पूर्व प्रभाव से लागू नहीं किया जा सकता।” इसके समर्थन में हालिया सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया गया, जिनमें कहा गया है कि जब तक कानून में स्पष्ट प्रावधान न हो, तब तक कार्यपालिका के आदेश पहले से प्राप्त अधिकारों को समाप्त नहीं कर सकते।
निर्णय
यह मानते हुए कि न्यायाधिकरण ने सुप्रीम कोर्ट के बाध्यकारी निर्णयों के आधार पर एक “उचित और संभावित दृष्टिकोण” अपनाया है, हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार की याचिका स्वीकार करने से इनकार कर दिया और मामले को खारिज कर दिया। इसके साथ ही डीएससी से 1 दिसंबर 2019 से जीवनभर के लिए अवैध पेंशन देने संबंधी एएफटी का आदेश बरकरार रहा और इस स्तर पर मुकदमेबाजी समाप्त हो गई।
Case Title: Union of India & Others vs. Gandeti Vasudeva Rao (Ex Sep No. 1396744-H)
Case No.: WPCT 152 of 2025
Case Type: Writ Petition (Service / Military Pension Matter)
Decision Date: 09 December 2025