झारखंड हाईकोर्ट में गुरुवार को हुई सुनवाई में न्यायमूर्ति संजय कुमार द्विवेदी ने बोकारो के एक बुजुर्ग से ज़मीन हथियाने के आरोप में फंसे तीन आरोपियों की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी। मामला जहां एक साधारण संपत्ति विवाद से शुरू हुआ था, वहीं अचानक मोड़ तब आया जब बचाव पक्ष के वकील ने कथित रूप से न्यायाधीश पर ऊँची आवाज़ में बोलते हुए सुप्रीम कोर्ट जाने की धमकी दे दी।
पृष्ठभूमि
याचिकाएँ अनिल कुमार उर्फ़ अनिल वर्मा, मनीष कुमार उर्फ़ सोनू और अखिलेश कुमार सिंह ने दायर की थीं। वे चिराचास थाना कांड संख्या 72/2025 में गिरफ्तारी से सुरक्षा चाहते थे, जिसमें भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की गंभीर धाराएँ लगाई गई थीं - जिनमें हमला, चोट पहुँचाना और यहाँ तक कि गैर-इरादतन हत्या से संबंधित प्रावधान शामिल थे।
बचाव पक्ष के वकील राकेश कुमार ने अदालत में दलील दी कि उनके मुवक्किलों को झूठा फँसाया गया है। उन्होंने कहा, "यह ज़मीन को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है।" उनका दावा था कि मोबाइल टॉवर लोकेशन से भी आरोपियों की मौजूदगी घटना स्थल पर साबित नहीं होती और सरकारी रिपोर्ट में भी ज़मीन उनके नाम दर्ज है।
वहीं दूसरी ओर, राज्य की ओर से पेश अधिवक्ता और सूचक पक्ष के वकील ने आरोप लगाया कि आरोपी महीनों से 80 वर्षीय बुजुर्ग सूचक को परेशान कर रहे थे और यहाँ तक कि बंदूक की नोक पर ज़मीन खाली करने और हस्तांतरण करने की धमकी दी। उन्होंने यह भी बताया कि आरोपियों के खिलाफ पहले से आपराधिक मामले दर्ज हैं और इसी साल मार्च में भी उन्हें जमानत मिली थी।
अदालत की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति द्विवेदी ने आरोपों को गंभीर माना। उन्होंने टिप्पणी की कि वरिष्ठ नागरिकों को निशाना बनाकर ज़मीन कब्जाने के मामले झारखंड में “बेहद आम” हैं। अदालत ने यह भी नोट किया कि आरोपी पहले भी ऐसे मामलों में शामिल रह चुके हैं।
अदालत ने कहा -
"सूचक की उम्र लगभग 80 वर्ष है और आरोप है कि याचिकाकर्ताओं ने उनकी ज़मीन कब्जाने की कोशिश की… इस तरह के अपराध झारखंड राज्य में बहुत ही व्यापक रूप से फैले हैं।"
इन्हीं आधारों पर अदालत ने अग्रिम जमानत याचिकाएँ खारिज कर दीं।
अदालत में गरमा-गरमी
लेकिन सबसे बड़ा घटनाक्रम आदेश सुनाए जाने के बाद हुआ। आदेश रिकॉर्ड में दर्ज है कि बचाव पक्ष के वकील राकेश कुमार ने भीड़भाड़ भरी अदालत में ऊँची आवाज़ में बहस शुरू कर दी और खुलेआम चुनौती दी कि वे सुप्रीम कोर्ट चले जाएँगे। यह दृश्य देखकर वरिष्ठ वकील, राज्य के अधिवक्ता और अधिवक्ता संघ के सदस्य दंग रह गए।
न्यायाधीश ने रिकॉर्ड में लिखा कि वकील का आचरण न्याय की प्रक्रिया को बाधित करने का प्रयास था। न्यायमूर्ति द्विवेदी ने कहा—
"यह न्यायाधीश पर हमला था, जिसमें अनावश्यक और मानहानिकारक टिप्पणी की गई। ऐसा आचरण अवमानना के रूप में दंडनीय है।"
निर्णय
सामान्य परिस्थितियों में इस तरह का व्यवहार अदालत की अवमानना का मामला बनता। आदेश में साफ़ कहा गया कि एकल न्यायाधीश के पास अवमानना का पूरा अधिकार होता है। लेकिन इस बार कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं—जिनमें अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष और सचिव भी शामिल थे—ने अदालत से नरमी बरतने का अनुरोध किया। उन्होंने आश्वासन दिया कि वकील भविष्य में ऐसा नहीं करेंगे।
न्यायालय ने इस अनुरोध को स्वीकार किया और आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू नहीं की। इसके बजाय, मामले को झारखंड राज्य बार काउंसिल को अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए भेज दिया। उल्लेखनीय है कि बार काउंसिल के अध्यक्ष स्वयं उस समय अदालत में मौजूद थे।
इसके साथ ही हाईकोर्ट ने अग्रिम जमानत याचिकाएँ निस्तारित करते हुए राहत देने से इनकार कर दिया और वकील के आचरण की जिम्मेदारी बार काउंसिल पर छोड़ दी।
Case Title: Anil Kumar @ Anil Kumar Verma v. The State of Jharkhand and another