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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने FIR में जाति उल्लेख पर लगाई फटकार, कहा जाति महिमा मंडन ‘राष्ट्रविरोधी’, दिए बड़े निर्देश

Vivek G.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने FIR में जाति उल्लेख पर लगाई फटकार, कहा जाति महिमा मंडन ‘राष्ट्रविरोधी’, दिए बड़े निर्देश

लखनऊ, 19 सितम्बर- गुरुवार को खचाखच भरी अदालत में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने ऐसा सख़्त फैसला सुनाया कि कई वकील चुपचाप सिर हिलाते दिखे। उन्होंने कहा, “वंश पर नहीं, संविधान पर आस्था ही सच्ची देशभक्ति है।” शराब तस्करी की एफआईआर रद्द करने की याचिका से शुरू हुआ यह मामला अचानक उत्तर प्रदेश में जाति के सार्वजनिक दखल पर गहरी पड़ताल में बदल गया।

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पृष्ठभूमि

मामला दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत आया था, जो आम तौर पर आपराधिक कार्रवाई रोकने का एक नियमित अनुरोध होता है। लेकिन न्यायाधीश की नज़र उस एफआईआर और जब्ती मेमो पर बार-बार लिखी गई आरोपी की जाति पर गई। पुलिस अधिकारियों ने इसे पहचान में भ्रम से बचने का बहाना बताया। न्यायमूर्ति दिवाकर संतुष्ट नहीं हुए। उन्होंने कहा, “आधार, फिंगरप्रिंट और मोबाइल नंबर के युग में यह बहाना अब पुराना हो चुका है।”

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अदालत की टिप्पणियां

सुनवाई के दौरान पीठ ने “पहचान आधारित भेदभाव” पर गहरी चिंता जताई। न्यायमूर्ति दिवाकर ने डॉ. भीमराव अंबेडकर की चेतावनी का हवाला दिया कि जाति “ईर्ष्या और विरोध” को जन्म देती है और आगे कहा, “जाति का महिमा मंडन वस्तुतः राष्ट्रविरोधी है।” उन्होंने पुलिस प्रारूपों में अब भी जाति का कॉलम होने की आलोचना करते हुए डीजीपी के बचाव को “कानूनी भ्रांति” कहा।

आदेश ने सामाजिक रुझानों पर भी चोट की। अदालत ने नोट किया कि इंस्टाग्राम रील्स और यूट्यूब शॉर्ट्स अकसर “जातिगत आक्रामकता और ग्रामीण मर्दानगी का रोमानीकरण” करते हैं, जिससे सदियों पुराने भेद वायरल मनोरंजन में बदल रहे हैं। पीठ ने कहा, “ऐसे डिजिटल प्रदर्शन परंपरा को उत्तर आधुनिक तरीके से हथियार बना देते हैं,” और जोड़ा कि सोशल मीडिया “अत्यधिक मर्दाना जातिगत पहचान का प्रतिध्वनि कक्ष” बन चुका है।

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निर्णय

व्यापक निर्देश देते हुए अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि एफआईआर, जब्ती मेमो, गिरफ्तारी और सरेंडर दस्तावेज़ों तथा थानों के बोर्ड से जाति कॉलम हटाया जाए। निजी और सार्वजनिक वाहनों से जाति संबंधी नारे मिटाने के लिए मोटर वाहन नियमों में संशोधन करने और आईटी नियम 2021 के तहत सोशल मीडिया पर जाति-आधारित सामग्री पर कार्रवाई करने को कहा। मुख्य सचिव को यह आदेश मुख्यमंत्री के सामने रखने का निर्देश दिया गया और इसकी प्रति केंद्रीय गृह मंत्रालय, सड़क परिवहन मंत्रालय, आईटी मंत्रालय और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को भेजने का आदेश दिया गया।

शराब तस्करी मामले की कार्रवाई रोकने की याचिका को खारिज करते हुए-क्योंकि अदालत को प्रथम दृष्टया अपराध का मामला मिला-न्यायालय ने साफ किया कि इसका बड़ा मकसद “संवैधानिक नैतिकता को जगाना और न्याय की भावना को प्रोत्साहित करना” है। न्यायमूर्ति दिवाकर ने अंत में कहा, “वंश पर गर्व संविधान में निहित समानता और बंधुत्व के मूल्यों का विकल्प नहीं हो सकता।” इसके साथ ही गेवेल की दस्तक हुई और राज्य को सुधारों की सूची तथा यह सख़्त याद दिलाई गई कि राष्ट्र की गरिमा जाति से ऊपर है।

केस का शीर्षक: XXX – धारा 482 सीआरपीसी के तहत शराब तस्करी की एफआईआर रद्द करने की मांग वाली याचिका

फैसले की तारीख: 19 सितंबर 2025

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