बॉम्बे हाई कोर्ट की कोल्हापुर पीठ ने एक अहम फैसले में साफ कहा है कि किसानों के मुआवजा अधिकारों को सिर्फ तकनीकी कमियों के आधार पर नहीं छीना जा सकता। अदालत ने 96 वर्षीय किसान तुकाराम जनाबा पाटिल की याचिका स्वीकार करते हुए भूमि अधिग्रहण अधिकारी के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें मुआवजा बढ़ाने की मांग केवल “प्रमाणित प्रति” न लगाने के कारण खारिज कर दी गई थी।
यह फैसला 23 दिसंबर 2025 को न्यायमूर्ति एम. एस. कर्णिक और न्यायमूर्ति अजीत बी. कडेठांकर की पीठ ने सुनाया।
मामले की पृष्ठभूमि
तुकाराम पाटिल की जमीन कोल्हापुर जिले के चंदगड तालुका के कलकुंद्री गांव में स्थित है। यह भूमि किटवाड लघु सिंचाई परियोजना के लिए अधिग्रहित की गई थी। इसके बदले वर्ष 1999 में उन्हें ₹77,700 का मुआवजा दिया गया।
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इसी अधिग्रहण प्रक्रिया में पास की जमीन के एक अन्य मालिक ने अदालत का रुख किया था। उस भूमि अधिग्रहण संदर्भ में जिला न्यायालय ने अगस्त 2008 में मुआवजा बढ़ाने का आदेश दिया।
कानून के अनुसार, ऐसे मामलों में अन्य प्रभावित भूमि मालिक भी धारा 28A के तहत समान मुआवजा मांग सकते हैं। इसी अधिकार का इस्तेमाल करते हुए पाटिल ने नवंबर 2008 में आवेदन किया।
समस्या तब खड़ी हुई जब विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी ने पाटिल का आवेदन फरवरी 2019 में खारिज कर दिया। कारण बताया गया कि आवेदन के साथ संदर्भ अदालत के फैसले की प्रमाणित प्रति संलग्न नहीं थी।
अधिकारी का कहना था कि बिना प्रमाणित प्रति के यह तय नहीं किया जा सकता कि आवेदन समय-सीमा के भीतर है या नहीं।
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अदालत की अहम टिप्पणियां
हाई कोर्ट ने इस सोच पर सवाल उठाया। अदालत ने रिकॉर्ड देखकर साफ कहा कि पाटिल का आवेदन कानून में तय तीन महीने की अवधि के भीतर दायर किया गया था।
पीठ ने टिप्पणी की, “यह आवेदन समय-सीमा के भीतर था। सिर्फ तकनीकी आधार पर इसे खारिज करना न्यायसंगत नहीं है।”
अदालत ने यह भी याद दिलाया कि धारा 28A का उद्देश्य उन किसानों को राहत देना है, जो कानूनी प्रक्रिया से पूरी तरह परिचित नहीं होते।
न्यायालय ने कहा कि प्रक्रिया का उद्देश्य न्याय तक पहुंच आसान बनाना है, न कि उसे रोकना।
“प्रक्रिया न्याय को आगे बढ़ाने के लिए होती है, उसे कुचलने के लिए नहीं,” अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा।
पीठ ने यह भी माना कि पाटिल जैसे किसान अपनी जमीन खोने के साथ आजीविका भी खो देते हैं और ऐसे मामलों में राज्य को संवेदनशील रवैया अपनाना चाहिए।
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अदालत का फैसला
इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हाई कोर्ट ने 14 फरवरी 2019 का आदेश रद्द कर दिया। अदालत ने निर्देश दिया कि किसान का आवेदन फिर से सुना जाए और इस बार केवल उसके मूल अधिकार और मुआवजा पात्रता पर फैसला किया जाए।
अदालत ने साफ कहा कि आवेदन को न तो समय-सीमा के आधार पर और न ही प्रमाणित प्रति की कमी के कारण खारिज किया जाए। संबंधित अधिकारी को 16 सप्ताह के भीतर नया निर्णय देने का निर्देश दिया गया।
इसके साथ ही याचिका स्वीकार कर ली गई।
Case Title: Tukaram Janaba Patil vs The Collector, Kolhapur & Others
Case Number: Writ Petition No. 12769 of 2022
Case Type: Land Acquisition – Compensation Enhancement
Decision Date: December 23, 2025















