केरल हाईकोर्ट ने बस में उत्पीड़न के आरोपी पालक्काड निवासी को जमानत देने से इनकार किया, कहा- नए BNSS कानून में गंभीर आरोप असाधारण राहत में बाधा

By Shivam Y. • December 17, 2025

पी.एस. कृष्णदास बनाम केरल राज्य एवं अन्य, केरल हाईकोर्ट ने बस में उत्पीड़न के आरोपी पालक्काड निवासी को जमानत देने से इनकार किया, BNSS के तहत गंभीर आरोपों को आधार बनाया।

केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार को पालक्काड में एक निजी बस के भीतर एक महिला अधिवक्ता से कथित उत्पीड़न के आरोपी 52 वर्षीय व्यक्ति को जमानत देने से इनकार कर दिया। अदालत कक्ष भले ही अधिक भरा नहीं था, लेकिन जैसे ही न्यायमूर्ति के. बाबू ने यह दलील सुनी कि आरोपी ने सत्र न्यायालय के बजाय सीधे हाईकोर्ट का रुख क्यों किया, माहौल सतर्क हो गया। सुनवाई के अंत तक न्यायाधीश ने स्पष्ट कर दिया कि इस स्तर पर आरोप इतने गंभीर हैं कि अदालत इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती।

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पृष्ठभूमि

यह जमानत आवेदन पालक्काड निवासी पी.एस. कृष्णदास द्वारा दायर किया गया था, जो पालक्काड टाउन नॉर्थ पुलिस स्टेशन में दर्ज अपराध संख्या 1061/2025 का आरोपी है। अभियोजन पक्ष के अनुसार, यह घटना 9 सितंबर 2025 को शाम करीब 6.50 बजे हुई, जब शिकायतकर्ता स्टेडियम बस स्टैंड से “कंदाथ मोटर्स” नामक निजी बस में सवार हुई थीं।

पुलिस का कहना है कि आरोपी भी उसी बस में चढ़ा, पीछे की सीट पर बैठा और कथित तौर पर शिकायतकर्ता की तस्वीरें लेने की कोशिश की। जब महिला ने इसका विरोध किया, तो आरोपी ने उसके प्रति यौन रंग वाले शब्दों का इस्तेमाल किया और उससे यौन संबंध की मांग की। इस मामले में भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 78 और 79 तथा केरल पुलिस अधिनियम की धारा 119(ए) और 119(बी) के तहत अपराध दर्ज किए गए हैं।

इस मामले का एक असामान्य पहलू यह था कि आरोपी ने जमानत के लिए सत्र न्यायालय जाने के बजाय सीधे भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। आरोपी के वकील ने दलील दी कि चूंकि शिकायतकर्ता पालक्काड बार एसोसिएशन की एक प्रैक्टिसिंग वकील हैं, इसलिए वहां कोई भी स्थानीय वकील उसकी वकालतनामा लेने को तैयार नहीं था। इसे “विशेष परिस्थिति” बताते हुए सीधे हाईकोर्ट आने का कारण बताया गया।

अदालत की टिप्पणियां

न्यायमूर्ति के. बाबू इस दलील से सहमत नहीं दिखे कि इस स्थिति में नियमित प्रक्रिया को दरकिनार किया जा सकता है। आरोपी के वकील, शिकायतकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता और लोक अभियोजक की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने अभियोजन द्वारा पेश केस डायरी का अवलोकन किया।

पीठ ने नोट किया कि रिकॉर्ड से प्रथम दृष्टया यह सामने आता है कि आरोपी ने यौन संबंध की मांग की और यौन रंग वाले शब्दों का प्रयोग किया। न्यायाधीश ने कहा, “मैंने केस डायरी देखी है,” और जोड़ा कि उसमें ऐसा आचरण दिखता है जिसे जमानत के स्तर पर हल्के में नहीं लिया जा सकता।

अदालत ने यह तर्क भी खारिज कर दिया कि आरोपित धाराओं के आवश्यक तत्व इस मामले में लागू नहीं होते। हाईकोर्ट की अंतर्निहित शक्तियों के इस्तेमाल पर टिप्पणी करते हुए पीठ ने कहा कि ऐसी शक्तियां दुर्लभ परिस्थितियों के लिए होती हैं, न कि एक आसान रास्ते के रूप में। साधारण शब्दों में, अदालत ने संकेत दिया कि आरोपों की गंभीरता मायने रखती है और असाधारण राहत को सामान्य नहीं बनाया जा सकता।

निर्णय

अदालत ने यह कहते हुए कि आरोप गंभीर प्रकृति के हैं और आरोपी हाईकोर्ट की असाधारण अधिकारिता का लाभ लेने का हकदार नहीं है, जमानत आवेदन खारिज कर दिया। आदेश के अंत में न्यायमूर्ति के. बाबू ने साफ शब्दों में कहा कि जमानत आवेदन खारिज किया जाता है, और आरोपी को अब कानून के तहत उपलब्ध सामान्य उपायों का ही सहारा लेना होगा।

Case Title: P.S. Krishnadas v. State of Kerala & Others

Case No.: Bail Application No. 12074 of 2025

Case Type: Bail Application (under Section 482, Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023)

Decision Date: 04 November 2025

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