राजस्थान हाई कोर्ट, जोधपुर में एक सुनवाई के दौरान भावनात्मक माहौल देखने को मिला, जब डिवीजन बेंच ने 22 साल से कैद महेंद्र कुमार की समयपूर्व रिहाई का आदेश दिया। केंद्रीय कारागार उदयपुर से भेजी गई पत्र याचिका में उन्होंने सवाल उठाया था कि आवश्यक दंडावधि पूरी होने के बावजूद उन्हें अब तक रिहाई क्यों नहीं दी गई।
पृष्ठभूमि
महेंद्र कुमार को 2008 में पिता की हत्या के मामले में आईपीसी की धारा 302 के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट बांसवाड़ा द्वारा दिए गए इस फैसले के बाद, उन्होंने लगभग 22 वर्ष, जिसमें अर्जित रिमिशन भी शामिल है, जेल में बिता दिए जो पात्रता मानक से कहीं अधिक है।
लेकिन राज्य की एडवाइजरी कमेटी ने इस वर्ष उनकी समयपूर्व रिहाई अर्जी खारिज कर दी थी, यह कहते हुए कि वह “मानसिक रूप से अस्थिर” हैं और परिजनों के लिए खतरा हो सकते हैं। कमेटी का यह भी दावा था कि परिवार उन्हें अपने साथ रखने का इच्छुक नहीं है।
दालत की टिप्पणियाँ
पीठ माननीय न्यायाधीश श्री विनीत कुमार माथुर एवं माननीय न्यायाधीश श्री आनंद शर्मा इस आधार से संतुष्ट नहीं हुई। अदालत ने विशेष रूप से सत्यापन के लिए निर्देश दिया। इसके बाद अमिकस क्यूरी श्री प्रवीण चौधरी और अधिवक्ता श्री कालूराम भाटी ने जेल जाकर मुलाकात की। उनके प्रतिवेदन में बिल्कुल अलग तस्वीर सामने आई:
- वह शारीरिक रूप से ठीक हैं और मानसिक स्वास्थ्य के लिए नियमित दवा लेते हैं
- जेल में शांत रहते हैं, निर्देशों का पालन करते हैं
- बी.ए. स्नातक हैं और बातचीत में स्पष्टता है
- सबसे महत्वपूर्ण उनके भाई मोहन ने उन्हें घर ले जाने की सहमति दी है
महेंद्र का निवेदन बहुत सीधा था-“एक बार मुझे घर भेज दो” जो किसी भी खतरे से अधिक उम्मीद और पुनर्वास की इच्छा दर्शाता है।
पीठ ने कहा,
“दोषी-पिटीशनर की मानसिक स्थिति स्थिर है और उसके भाई ने आवश्यक देखभाल की जिम्मेदारी ली है।”
कानूनी रूप से अदालत ने राजस्थान कारागार (दंड संक्षेपण) नियम, 2006 के नियम 8(2)(i) का उल्लेख करते हुए बताया कि 14 वर्ष की वास्तविक सजा और आवश्यक रिमिशन पूरी होने पर premature release मिल सकती है। महेंद्र के पास दोनों हैं 14 वर्ष वास्तविक + 3 वर्ष 9 महीने रिमिशन।
यहाँ तक कि राज्य की ओर से उपस्थित वकील भी यह नहीं नकार सके कि वह पात्रता सीमा में आते हैं।
निर्णय
अदालत ने साफ कहा कि एडवाइजरी कमेटी द्वारा इंकार का आधार “विश्वसनीय नहीं” है, विशेष रूप से जब जेल व परिवार दोनों की रिपोर्ट अनुकूल हो। इसलिए 08.04.2025 का आदेश रद्द किया गया।
महेंद्र कुमार की समयपूर्व रिहाई का आदेश पारित किया गया।
और इसी निर्देश के साथ कार्यवाही समाप्त हुई आख़िरकार उन वर्षों की प्रतीक्षा का अंत, जो उन्होंने एक शांत उम्मीद के साथ बिताए।
Case Title:- Mahendra Kumar v. State of Rajasthan
Case Type & No.: D.B. Criminal Writ Petition No. 2288/2025
Date of Order: 05/12/2025
Advocates Appearing
- For Petitioner:
• Mr. Pravin Choudhary (Amicus Curiae)
• Mr. Kalu Ram Bhati - For Respondents:
• Mr. Deepak Choudhary, Government Advocate–cum–AAG