सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए बुलंदशहर की एक ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह 2021 की फायरिंग घटना में तीन अतिरिक्त आरोपियों को समन करे, जिसमें एक युवा महिला की मौत हो गई थी। सुबह भर चली सुनवाई के दौरान पीठ ने कई बार सवाल उठाया कि निचली अदालतों ने पति के रिश्तेदारों की संलिप्तता की ओर इशारा करने वाले “स्पष्ट और प्रभावशाली” सबूतों को अनदेखा क्यों किया।
पृष्ठभूमि
यह मामला मार्च 2021 की उस घटना से जुड़ा है जिसमें निशी, जो तीन बेटियों की मां थी, को उसके ससुराल में गोली मारी गई थी। उसके पति राहुल के खिलाफ हत्या का आरोपपत्र दायर हुआ, लेकिन उसकी मां राजो, भाई सत्तन और बहनोई गब्बर को पुलिस ने आरोपमुक्त कर दिया।
पीड़िता के भाई, नीरज कुमार-जो बाद में सुप्रीम कोर्ट में अपीलकर्ता बने-का कहना था कि महिला ने इलाज के दौरान और पहले भी बार-बार इन तीनों के नाम लिए थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया। नौ साल की बेटी ने भी घर में हुए कथित उकसावे का विस्तृत विवरण दिया था। इसके बावजूद, ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट दोनों ने ही दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 319 के तहत उन्हें समन करने से इनकार कर दिया।
अदालत की टिप्पणियाँ
सुनवाई की शुरुआत में ही न्यायमूर्ति संजय करोल की अगुवाई वाली पीठ ने यह संकेत दिया कि धारा 319 अदालतों को “सिर्फ शक्ति ही नहीं, बल्कि जिम्मेदारी” भी देती है कि यदि कोई अन्य व्यक्ति अपराध में प्रारंभिक रूप से शामिल प्रतीत होता है, तो उसे बुलाया जाए।
पीठ ने टिप्पणी की, “सिर्फ इसलिए कि किसी का नाम चार्जशीट में नहीं है, कानून असली अपराधियों को बाहर निकलने नहीं दे सकता।”
जजों ने PW-1 (पीड़िता के भाई) और PW-2 (उसकी नाबालिग बेटी) के बयान ध्यान से पढ़े, जिनमें कथित रूप से महिला के साथ लगातार हो रहे उत्पीड़न की बात कही गई थी-क्योंकि परिवार में लड़कियों का जन्म होता था। PW-2 का बयान, जिसमें उसने बताया कि उसकी दादी, चाचा और फूफा ने राहुल को गोली चलाने के लिए कहा, अदालत के लिए विशेष रूप से चिंताजनक रहा।
हाई कोर्ट ने पहले कहा था कि बच्ची प्रत्यक्षदर्शी नहीं थी क्योंकि उसने कहा था कि उसने गोली चलने की आवाज सुनने के बाद कमरे में प्रवेश किया। सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को सख्ती से खारिज कर दिया और इसे “मिनी-ट्रायल” जैसा बताया।
पीठ ने स्पष्ट किया, “समनिंग के चरण में विश्वसनीयता का विश्लेषण नहीं किया जाता; केवल यह देखा जाता है कि सामग्री से संलिप्तता का संकेत मिलता है या नहीं।”
सुनवाई का अहम मोड़ तब आया जब अदालत ने पीड़िता के दो बयान-जो धारा 161 CrPC के तहत दर्ज हुए थे-पर चर्चा की। पहले बयान में केवल पति का नाम था, जबकि बाद वाले में तीनों रिश्तेदारों का भी उल्लेख था। प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि इन्हें मृत्यु-पूर्व बयान नहीं माना जा सकता क्योंकि महिला की मौत लगभग दो महीने बाद हुई।
पीठ इस दलील से असहमत रही। न्यायमूर्ति करोल ने स्पष्ट किया, “कानून यह नहीं कहता कि मृत्यु-पूर्व बयान देने वाला व्यक्ति तुरंत मृत्यु की आशंका में होना चाहिए। यदि बयान मृत्यु के कारण या उससे जुड़ी परिस्थितियों से संबंधित है, तो वह प्रासंगिक है।”
अदालत ने आगे कहा कि असंगतियाँ या डॉक्टर की प्रमाणिकता का अभाव विश्वसनीयता के आकलन का विषय है-जिसे सिर्फ ट्रायल के दौरान ही देखा जा सकता है, समनिंग के समय नहीं।
निर्णय
इन तीन रिश्तेदारों के विरुद्ध “मजबूत और ठोस” सामग्री पाकर सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह सत्र वाद संख्या 1151/2021 में उन्हें अतिरिक्त आरोपी के रूप में समन करे। पीठ ने 8 जनवरी 2026 की तारीख उनकी उपस्थिति हेतु तय की और सभी पक्षों को अनावश्यक स्थगन लेने से बचने की चेतावनी दी, यह कहते हुए कि अब मुकदमे की सुनवाई तेजी से आगे बढ़नी चाहिए।
इसके साथ ही अपील स्वीकार कर ली गई और लंबित सभी आवेदन निपटा दिए गए।
Case Title: Neeraj Kumar @ Neeraj Yadav vs. State of U.P. & Others
Case No.: Criminal Appeal (Arising out of SLP (Crl.) No. 7518 of 2025)
Case Type: Criminal Appeal – Summoning of Additional Accused under Section 319 CrPC
Decision Date: 04 December 2025