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ओडिशा हाई कोर्ट ने दशकों की देरी पर नाराज़गी जताते हुए भगवानबटीपुर गोचर भूमि से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया

Vivek G.

ओडिशा हाई कोर्ट ने भगवानबटीपुर गोचर भूमि से अतिक्रमण हटाने का आदेश देते हुए अधिकारियों की लंबे समय की ढिलाई पर नाराज़गी जताई।

ओडिशा हाई कोर्ट ने दशकों की देरी पर नाराज़गी जताते हुए भगवानबटीपुर गोचर भूमि से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया

बुधवार को ओडिशा हाई कोर्ट में भीड़भरी कार्यवाही के दौरान, अदालत ने आखिरकार उस मुद्दे पर सख़्त रुख अपनाया जिस पर गाँव वाले तीन दशक से लड़ते आ रहे थे-भगवानबटीपुर, खोरधा की “गोचर” (ग्राम चरागाह) जमीन पर कथित अतिक्रमण। माहौल ऐसा था मानो अदालत अधिकारियों की लंबी चुप्पी और निष्क्रियता से बेहद नाराज़ हो।

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मुख्य न्यायाधीश हरीश टंडन और न्यायमूर्ति मुराहारी श्री रमन की खंडपीठ ने बेहद स्पष्ट संदेश दिया: सरकारी भूमि पर अवैध कब्ज़ा किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं है।

पृष्ठभूमि (Background)

वर्षों से भगवानबटीपुर के ग्रामीण शिकायत कर रहे थे कि 30 से अधिक लोगों ने प्लॉट नंबर 1793 (वर्तमान में प्लॉट 2115) पर पक्के मकान बना लिए हैं, जबकि यह जमीन रिकॉर्ड में आरक्षित गोचर भूमि के रूप में दर्ज है।

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याचिकाकर्ताओं ने लगभग हर संभव अधिकारी-तहसीलदार, उप-कलेक्टर, यहाँ तक कि मुख्यमंत्री शिकायत कक्ष-से कई बार संपर्क किया, लेकिन जमीन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

अदालत के सामने रखे दस्तावेज़ बताते हैं कि 2010 में ही बेदखली नोटिस जारी किए गए थे, दो बार दंड भी वसूला गया, और लोकपाल ने भी कार्यवाही यह मानकर बंद कर दी कि शीघ्र ही कार्रवाई होगी-लेकिन कब्ज़ा जस का तस बना रहा।

सुनवाई के दौरान एक न्यायाधीश ने टिप्पणी की-“ग्राम के उपयोग के लिए आरक्षित गोचर भूमि को इस तरह कैसे गायब होने दिया जा सकता है?”-जैसा कि उपस्थित अधिवक्ताओं ने बताया।

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अदालत की टिप्पणियाँ (Court’s Observations)

बहस के दौरान यह साफ हुआ कि भूमि “गोचर, रक्षित” के रूप में दर्ज है, और ऐसे भूखंड को किसी भी व्यक्ति के नाम पर सेटल नहीं किया जा सकता-even अगर कोई स्वयं को भूमिहीन बताए।

अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि अतिक्रमणकारियों ने परोक्ष रूप से अपनी अवैध स्थिति स्वीकार की क्योंकि वे ज़िद कर रहे थे कि यदि उन पर कार्रवाई हो, तो याचिकाकर्ताओं पर भी होनी चाहिए।

सरकारी निष्क्रियता पर अदालत विशेष रूप से कठोर थी। न्यायाधीशों ने कहा, “जब सार्वजनिक भूमि पर कब्ज़ा हो रहा है, तो अधिकारी ढीला रवैया नहीं अपना सकते।”

अदालत ने 2024 की राजस्व विभाग की उस परिपत्र (zero tolerance policy) का भी हवाला दिया जिसमें अतिक्रमण हटाने के लिए स्पष्ट निर्देश थे।

अदालत ने यह भी कहा कि अतिक्रमणकारियों को किसी भी तरह की दया दिखाना “अवैधता को इनाम देने जैसा” होगा। सार्वजनिक भूमि पर निजी कब्ज़ा, अदालत के अनुसार, पूरे गांव के अधिकारों का उल्लंघन है।

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निर्णय (Decision)

लंबे विवाद को समाप्त करते हुए अदालत ने स्पष्ट और समयबद्ध निर्देश दिए:

  • खोरधा के पुलिस अधीक्षक को उन तिथियों पर पर्याप्त सुरक्षा बल तैनात करना होगा जिन्हें तहसीलदार बेदखली के लिए तय करेगा।
  • यदि राज्य पुलिस पर्याप्त न हो, तो CRPF की तैनाती की जा सकती है।
  • अधिकारियों को गोचर भूमि पर बने सभी अवैध ढांचों को हटाना होगा और 2024 की नीति का पालन करना होगा।
  • पूरी बेदखली और भूमि पुनर्स्थापन की प्रक्रिया तीन महीनों के भीतर पूरी की जानी चाहिए।

इन निर्देशों के साथ, अदालत ने याचिका निपटा दी और कहा कि “अब इसे लंबित रखने की आवश्यकता नहीं है।” अदालत का संदेश साफ था-सार्वजनिक भूमि किसी की निजी ज़मीन नहीं बन सकती।

Case Title: Tahasildar, Chilika vs State of Odisha & Others

Case Number: W.P.(C) No. 7824 of 2014

Case Type: Public Interest Litigation (PIL) under Articles 226 & 227

Decision Date: 20 November 2025

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