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मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 30 साल की देरी पर जताई हैरानी, कथित अतिक्रमण हटाने से पहले दोबारा सुनवाई का निर्देश

Vivek G.

अब्दुल मजीद बनाम भारत संघ और अन्य, एमपी हाई कोर्ट ने 30 साल पुराने नोटिस पर सवाल उठाए, अब्दुल मजीद को सुनवाई का नया मौका और तत्काल कार्रवाई पर रोक। इंडौर से बड़ी कानूनी खबर।

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 30 साल की देरी पर जताई हैरानी, कथित अतिक्रमण हटाने से पहले दोबारा सुनवाई का निर्देश

20 नवंबर 2025 को इंडौर खंडपीठ के न्यायालय कक्ष में एक संक्षिप्त लेकिन महत्वपूर्ण आदेश ने अचानक माहौल बदल दिया। अदालत ने सरकार द्वारा लगभग तीन दशक बाद अतिक्रमण हटाने की जल्दबाज़ी पर सवाल उठाए। मामला - अब्दुल मजीद बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य - इसलिए खास बना क्योंकि 1996–97 में जारी पुराने नोटिसों के बाद अब 2025 में अचानक कार्रवाई शुरू की गई।

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पृष्ठभूमि (Background)

अब्दुल मजीद ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत याचिका दायर कर 19 नवंबर 2025 के नए नोटिस को चुनौती दी, जिसमें उन्हें “अवैध अतिक्रमण” हटाने का सीधा निर्देश दिया गया था।

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याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अजय बगाड़िया और अधिवक्ता रिज़वान खान ने अदालत को बताया कि यह कार्रवाई बिल्कुल अनुचित है। उन्होंने कहा, “बिना सुनवाई का मौका दिए सीधे हटाने का आदेश… यह सही प्रक्रिया नहीं है।”

सरकार की ओर से अधिवक्ता अशुतोष निमगांवकर ने तर्क दिया कि पहले भी नोटिस दिए गए थे, जिनका याचिकाकर्ता ने कोई जवाब नहीं दिया। इसलिए अब समय देने की कोई ज़रूरत नहीं है। अदालत इस तर्क से खास प्रभावित नहीं दिखी।

अदालत के अवलोकन (Court’s Observations)

न्यायमूर्ति प्रणय वर्मा ने दस्तावेज़ देखने के बाद ऐसा टिप्पणी की, जिसने courtroom में हलचल पैदा कर दी। पीठ ने कहा, “पहले के नोटिस 1996–97 में जारी हुए थे, लगभग 30 साल पहले, और अब नया नोटिस दिया गया है।”

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अदालत ने स्पष्ट किया कि इतने लंबे अंतराल को हल्के में नहीं लिया जा सकता। यदि अधिकारी तीन दशक तक निष्क्रिय रहे, तो वे अचानक कार्रवाई नहीं कर सकते - वह भी तब, जब प्रभावित व्यक्ति को अपनी बात रखने का अवसर न दिया जाए।

जज ने कहा कि इतने वर्षों बाद की कार्रवाई से पहले “सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए था।” अदालत के रुख से साफ था कि वह इस बात को महत्व दे रही है कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत सिर्फ समय बीत जाने से समाप्त नहीं होते।

निर्णय (Decision)

हाई कोर्ट ने अंततः एक संतुलित आदेश पारित किया। अब्दुल मजीद को 15 दिनों के भीतर सक्षम प्राधिकरण के समक्ष अपना जवाब और संबंधित दस्तावेज़ पेश करने होंगे। इसके बाद प्राधिकरण उन्हें उचित सुनवाई देगा और एक “कारणयुक्त एवं बोलता हुआ आदेश” पारित करेगा।

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न्यायालय ने यह भी सुनिश्चित किया कि जब तक यह पूरी प्रक्रिया पूरी नहीं होती, कोई भी दमनात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। और यदि अंतिम आदेश उनके खिलाफ जाता है, तब भी 10 दिनों तक कोई कदम नहीं उठाया जाएगा।

अंत में, अदालत ने स्पष्ट किया कि वह मामले के गुण-दोष पर कोई राय नहीं दे रही - आदेश सिर्फ निष्पक्ष प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए है।

Case Title: Abdul Majid vs Union of India & Others

Case Number: Writ Petition No. 45707 of 2025

Case Type: Writ Petition under Article 226 (challenging encroachment removal notice)

Decision Date: 20 November 2025

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