गुरुवार को भरे हुए कोर्टरूम में सुप्रीम कोर्ट ने हाल के वर्षों की सबसे कठोर पर्यावरणीय टिप्पणियों में से एक की, यह कहते हुए कि राजस्थान की जोजरी–बांड़ी–लूणी नदी प्रणाली का जारी प्रदूषण “गंभीर संवैधानिक चोट” है। एक वायरल डॉक्यूमेंट्री से शुरू हुए सुओ मोटो मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि लगभग दो मिलियन लोगों को “दशकों की प्रशासनिक उदासीनता” के कारण जहरीले पानी के हवाले छोड़ दिया गया है।
पृष्ठभूमि
कार्रवाई तब शुरू हुई जब कोर्ट ने “2 मिलियन लाइव्स एट रिस्क | इंडिया’स डेडलिएस्ट रिवर” नामक डॉक्यूमेंट्री पर संज्ञान लिया, जिसमें बिना उपचार वाले औद्योगिक अपशिष्टों को सीधे नालों और नदी तल में बहते दिखाया गया था। यह समस्या नई नहीं है। लगभग बीस वर्षों से, जोधपुर, पाली और बालोतरा के टेक्सटाइल क्लस्टरों से निकलने वाले रंग, रसायन और सीवेज नदी धाराओं, खेतों और भूमिगत जल में जा रहे हैं।
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हाई कोर्ट और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) में पहले भी कई मामले चल चुके हैं, लेकिन जमीनी हालात नहीं बदले। NGT के 2022 के आदेश के खिलाफ कई अपीलें सुप्रीम कोर्ट में लंबित थीं, जिन्हें बाद में इस सुओ मोटो मामले के साथ जोड़ दिया गया।
कोर्ट की टिप्पणियाँ
कोर्टरूम नंबर 4 में माहौल तब गंभीर हो गया जब पीठ ने रिकॉर्ड के हिस्सों को जोर से पढ़ा। जजों ने बताया कि नदी किनारे बसे गांवों ने खराब फसल, मवेशियों की मौत और पीने योग्य पानी के अभाव की शिकायतें की हैं।
सुनवाई के दौरान एक जज ने कहा, “जब प्रदूषण इस स्तर पर पहुंच जाता है, यह सिर्फ पारिस्थितिकी का मुद्दा नहीं रहता-यह सीधा संवैधानिक उल्लंघन बन जाता है।”
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पीठ ने बताया कि हाल में राज्य द्वारा उठाए गए कई कदम-अवैध इकाइयों का बंद होना, बाईपास लाइनों को हटाना, नोटिस जारी करना-अधिकतर सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद ही शुरू हुए। कोर्ट ने कहा, “ये कदम स्वागत योग्य हैं, लेकिन इनका समय बहुत कुछ कहता है।”
कई तथ्य बेहद चिंताजनक थे। कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (CETP) आधी क्षमता पर चल रहे थे। नगर निकाय बिना उपचार का सीवेज नदियों में डाल रहे थे। अवैध उद्योग कृषि भूमि पर उग आए थे। और SCADA मॉनिटरिंग सिस्टम या तो मौजूद नहीं थे या सही काम नहीं कर रहे थे।
एक मौके पर पीठ ने टिप्पणी की, “यहां देरी केवल अनुचित नहीं है; यह विनाशकारी है।” जजों ने कहा कि प्रदूषण “स्थानीय समुदायों पर कैंसर जैसा असर” डाल रहा है।
निर्णय
एक महत्वपूर्ण आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने NGT के 2022 पर्यावरणीय निर्देशों पर लगी अंतरिम रोक हटा दी, जिससे सभी सुधारात्मक कदम तुरंत शुरू हो सकते हैं। हालांकि दो मुद्दों पर रोक बरकरार रखी गई:
- RIICO और नगर निकायों पर NGT की की गई कठोर टिप्पणियाँ
- प्रत्येक पर लगाए गए ₹2 करोड़ पर्यावरण मुआवज़े का निर्देश
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पीठ ने “वैज्ञानिक निगरानी वाले पुनर्स्थापना अभियान” की जरूरत बताते हुए हाई-लेवल इकोसिस्टम ओवरसाइट कमेटी बनाई, जिसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति संगीतम लोढ़ा (सेवानिवृत्त) करेंगे। यह समिति प्रत्येक डिस्चार्ज पॉइंट की मैपिंग करेगी, CETP और STP का ऑडिट करेगी, SCADA डेटा की निगरानी करेगी, उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई सुझाएगी और पूरी नदी-पुनर्जीवन योजना तैयार करेगी।
राज्य को समिति के लिए स्टाफ, कार्यालय, सुरक्षा और मासिक मानदेय उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए हैं। पहली स्थिति रिपोर्ट आठ सप्ताह में कोर्ट में दाखिल करनी होगी।
इस प्रकार सुनवाई समाप्त करते हुए पीठ ने साफ कहा कि स्वच्छ पानी और स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार वैकल्पिक नहीं बल्कि संवैधानिक कर्तव्य है। अब इस मामले की निगरानी लगातार की जाएगी।
Case Title: In Re: 2 Million Lives at Risk, Contamination in Jojari River, Rajasthan
Case No.: Suo Moto Writ Petition (Civil) No. 8 of 2025
Tagged Appeals:
- Civil Appeal Nos. 5517–5519 of 2022
- Civil Appeal No. 8748 of 2022
- Civil Appeal Nos. 9057–9058 of 2022
- Civil Appeal Nos. 9010–9011 of 2022
Case Type:
- Suo Moto Public Interest / Environmental Matter
- Civil Appellate Jurisdiction
Decision Date: 21 November 2025










