बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में गुजरात के एक चूना-पत्थर खनन प्रोजेक्ट को दी गई पर्यावरणीय मंजूरी को चुनौती देने वाली टल्ली ग्राम पंचायत की अपील को खारिज कर दिया। अदालत ने साफ कर दिया कि अपील की कानूनी समयसीमा उस दिन से शुरू होती है जब पर्यावरणीय अनुमति (EC) पहली बार सार्वजनिक रूप से घोषित हो जाती है-न कि उस दिन से जब कोई व्यक्ति बाद में इसकी जानकारी प्राप्त करे। यह फैसला पंचायत की देरी से दायर अपील को पूरी तरह बंद कर देता है।
पृष्ठभूमि
विवाद तब शुरू हुआ जब पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने 5 जनवरी 2017 को गुजरात के टल्ली और बंबोर गांवों में 193 हेक्टेयर क्षेत्र में चूना-पत्थर खनन के लिए पर्यावरणीय मंजूरी जारी की। फैसले के रिकॉर्ड के अनुसार, मंजूरी उसी दिन मंत्रालय की वेबसाइट पर अपलोड कर दी गई थी, और प्रोजेक्ट प्रोपोनेंट ने 9 जनवरी 2017 तक इसकी प्रतियां संबंधित पंचायतों को सौंप दी थीं। इसके अलावा, 11 जनवरी को दो स्थानीय समाचार पत्रों में भी विज्ञापन प्रकाशित किए गए।
इन सभी कदमों के बावजूद, टल्ली ग्राम पंचायत ने 19 अप्रैल 2017 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) से संपर्क किया-जो 90 दिनों की अधिकतम कानूनी सीमा से काफी बाद की तारीख थी। पंचायत का तर्क था कि उसे पहली बार EC के बारे में जानकारी 14 फरवरी 2017 को एक RTI जवाब के माध्यम से मिली।
NGT ने इस तर्क को खारिज कर दिया और RTI वाले दावे को “बहाना” बताते हुए अपील को समयसीमा से बाहर माना। जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, तो मुकदमे की जड़ सिर्फ एक सवाल पर आकर टिक गई: EC की “सूचना” कानूनी रूप से कब मानी जाएगी?
अदालत की टिप्पणियाँ
सुनवाई के दौरान पीठ ने कानूनी दायित्वों और पिछले फैसलों दोनों का विश्लेषण किया। न्यायाधीशों ने स्पष्ट किया कि कई प्राधिकारी-MoEF&CC, प्रोजेक्ट प्रोपोनेंट, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड-EC को सार्वजनिक करने के लिए बाध्य हैं। स्वाभाविक रूप से इन सभी के द्वारा सूचना देने की तारीखें एक जैसी नहीं होतीं।
एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में पीठ ने कहा, “समयसीमा उस सबसे प्रारंभिक तारीख से शुरू होगी जब किसी भी दायित्व-धारी द्वारा सूचना दी जाती है।”
अदालत ने NGT द्वारा दर्ज विस्तृत तालिका का उल्लेख किया, जिसमें यह पाया गया कि EC 5 जनवरी 2017 को ही MoEF वेबसाइट पर अपलोड कर दी गई थी और उसकी पुष्टि के लिए पर्याप्त रिकॉर्ड उपलब्ध थे। ग्राम पंचायतों ने 9 जनवरी तक प्राप्ति की पुष्टि कर दी थी और 11 जनवरी को समाचार पत्रों में सूचना प्रकाशित हुई-यानि EC पूरी तरह “सार्वजनिक डोमेन” में आ चुकी थी।
एक और महत्वपूर्ण टिप्पणी में अदालत ने यह भ्रम भी दूर किया कि क्या पूरे EC दस्तावेज़-शर्तों और सुरक्षा उपायों सहित-को अखबारों में प्रकाशित करना आवश्यक है। अदालत ने इसे “तकनीकी और अव्यावहारिक” मानते हुए कहा कि “विज्ञापन का आकार मायने नहीं रखता; उसमें दी गई सूचना मायने रखती है।”
अदालत ने यह भी कहा कि यदि अपील की समयसीमा तब शुरू मानी जाए जब आखिरी प्राधिकारी अपना कार्य पूरा करे, तो इससे कानून में निर्धारित समयसीमा का उद्देश्य पूरी तरह समाप्त हो जाएगा और परियोजनाएँ वर्षों तक मुकदमेबाज़ी के खुला जोखिम में रहेंगी।
निर्णय
यह मानते हुए कि EC की सार्वजनिक जानकारी 5 जनवरी 2017 को ही उपलब्ध हो चुकी थी, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपील अधिकतम शुरुआती अप्रैल 2017 तक दाखिल की जा सकती थी, भले ही 60 दिन की अतिरिक्त छूट मान ली जाए। 19 अप्रैल को दायर अपील स्पष्ट रूप से समयसीमा से बाहर थी।
इसी के साथ, अदालत ने NGT के आदेश को बरकरार रखते हुए ग्राम पंचायत की सिविल अपील को खारिज कर दिया। पीठ ने कहा, “ट्रिब्यूनल द्वारा निकाला गया निष्कर्ष बिल्कुल सही है।”
Case Title: Talli Gram Panchayat vs. Union of India & Others
Appeal Type: Civil Appeal No. 731 of 2023
Court: Supreme Court of India
Citation: 2025 INSC 1331
Date of Judgment: 19 November 2025










