एक विस्तृत फैसले में, जो संपत्ति कानून के महत्वपूर्ण सिद्धांतों से जुड़ा था, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को तमिलनाडु के एक भूमि विवाद में अपील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने माना कि स्पेसिफिक परफॉर्मेंस की डिक्री का असाइनमेंट रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1908 के तहत पंजीकरण की मांग नहीं करता। यह फैसला उस लंबे समय से चली आ रही कानूनी उलझन को दूर करता है: क्या किसी अचल संपत्ति से जुड़े डिक्री को ट्रांसफर करते समय पंजीकरण आवश्यक है?
Background (पृष्ठभूमि)
विवाद तीन दशक से अधिक पुराना है। 1993 में, इरोड की एक अदालत ने एक एक्स-पार्टी डिक्री पास की, जिसमें प्रतिवादी को वादी के पक्ष में बिक्री विलेख (सेल डीड) निष्पादित करने का आदेश दिया गया था। दो वर्ष बाद, मूल वादी ने यह डिक्री शन्मुगम नामक व्यक्ति को ₹20,000 में असाइन कर दी।
कई वर्षों बाद, जजमेंट-डेब्टर के कानूनी वारिसों ने इसे चुनौती दी। उनका तर्क था कि क्योंकि असाइनमेंट डीड अनरजिस्टर्ड है, इसलिए यह अवैध है। निष्पादन अदालत ने उनकी बात मान ली और सेल डीड का निष्पादन रोक दिया। बाद में हाई कोर्ट ने इस आदेश को पलट दिया और कहा कि रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि डिक्री स्वयं स्वामित्व (ओनरशिप) नहीं देती।
यह मामला अंततः सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
Court’s Observations (कोर्ट की टिप्पणियाँ)
सुनवाई के दौरान जस्टिस के.वी. विश्वनाथन ने वकीलों से कई गहरे और व्यावहारिक सवाल पूछे, खासकर स्पेसिफिक परफॉर्मेंस डिक्री की प्रकृति को लेकर। कोर्ट बार-बार इसी मूल सिद्धांत पर लौटा: स्पेसिफिक परफॉर्मेंस की डिक्री स्वामित्व हस्तांतरित नहीं करती।
सरल शब्दों में समझाते हुए, पीठ ने कहा:
“डिक्री-होल्डर को केवल इतना अधिकार मिलता है कि वह कोर्ट से बिक्री करवाने का आग्रह करे। स्वामित्व तो तभी मिलेगा जब पंजीकृत बिक्री विलेख बने।”
कोर्ट ने पुराने और प्रसिद्ध फैसलों का उल्लेख करते हुए कहा कि न तो सेल एग्रीमेंट और न ही उस पर आधारित डिक्री किसी प्रकार का स्वामित्व अधिकार पैदा करती है। जजों ने स्पष्ट किया कि जब तक असली बिक्री विलेख-विक्रेता या अदालत द्वारा-निष्पादित नहीं हो जाता, तब तक डिक्री-होल्डर सिर्फ डिक्री-होल्डर है, मालिक नहीं।
यही फर्क इस मामले का निर्णायक हिस्सा बना। रजिस्ट्रेशन एक्ट की धारा 17(1)(e) के तहत पंजीकरण तभी अनिवार्य है जब डिक्री “किसी भी अधिकार, शीर्षक या हित को पैदा, घोषित या समाप्त” करती हो। लेकिन यहाँ तो डिक्री स्वयं ही कोई स्वामित्व अधिकार पैदा नहीं करती।
एक मौके पर पीठ ने टिप्पणी की:
“यदि डिक्री स्वामित्व नहीं देती, तो उस डिक्री का असाइनमेंट रजिस्ट्रेशन कैसे मांग सकता है? रजिस्टर करने लायक कुछ है ही नहीं।”
कोर्ट ने इस दलील को भी खारिज कर दिया कि बिना रजिस्ट्रेशन के राज्य का राजस्व नुकसान होगा। जजों ने कहा कि जब तक सेल डीड पंजीकृत नहीं होती, तब तक किसी को जमीन में कोई अधिकार मिलता ही नहीं। इसलिए कई असाइनमेंट होने पर भी स्टांप ड्यूटी से बचने का कोई सवाल नहीं उठता।
Decision (फैसला)
हाई कोर्ट के निर्णय को बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष दिया कि 1995 में किया गया असाइनमेंट रजिस्ट्रेशन के बिना भी पूरी तरह वैध था, और निष्पादन अदालत ने “स्पष्ट रूप से गलती” की थी।
फैसले की अंतिम पंक्ति में कोर्ट ने कहा:
“इस मामले में डिक्री का असाइनमेंट रजिस्ट्रेशन की मांग नहीं करता। अपील खारिज की जाती है।”
इसके साथ ही गाँव की जमीन को लेकर तीन दशक से लंबा चला विवाद आखिरकार समाप्त हो गया।
Case Title: Rajeswari & Ors. vs. Shanmugam – Supreme Court on Registration Requirement for Assignment of Specific Performance Decree
Court: Supreme Court of India
Bench: Justices J.B. Pardiwala & K.V. Viswanathan
Date of Judgment: 19 November 2025










