सोमवार को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की कोर्टरूम नंबर 3 में माहौल थोड़ा गर्म हो गया, जब 120 बहादुर फिल्म के खिलाफ दायर जनहित याचिका (PIL) पहली विस्तृत सुनवाई के लिए आई। याचिकाकर्ताओं, जो संयुक्त अहीर रेजिमेंट मोर्चा का प्रतिनिधित्व करते हैं, ने जोर देकर कहा कि यह फिल्म 1962 के रेज़ांग ला युद्ध की “सामूहिक वीरता को तोड़-मरोड़ कर पेश करती है”, जो हरियाणा के अहीर समुदाय की भावनाओं से बहुत गहराई से जुड़ा हुआ है।
गैलरी में फुसफुसाहटें सुनाई दे रही थीं-ज़्यादातर पूर्व सैनिक और समर्थक जो रेवाड़ी और आसपास के कस्बों से आए थे, उम्मीद में कि उनकी इतिहास की समझ अदालत तक पहुँचेगी।
पृष्ठभूमि (Background)
विवाद 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान चुशूल सेक्टर में लड़ने वाली 13 कुमाऊँ रेजिमेंट की सी कंपनी को लेकर है। याचिका के अनुसार, यह यूनिट मुख्य रूप से रेवाड़ी और आस-पास के गांवों के 113 अहीर (यादव) सैनिकों से बनी थी। 120 सैनिकों में से 114 शहीद हुए थे। स्थानीय समुदाय दशकों से इस लड़ाई को “सामूहिक वीरता का अनुपम प्रतीक” मानता आया है।
याचिकाकर्ताओं ने अदालत को बताया कि फिल्म इस संयुक्त बहादुरी को दिखाने के बजाय पूरा ध्यान मेजर शैतान सिंह, पीवीसी की व्यक्तिगत भूमिका पर डालती है, वह भी “भाटी” नाम से, जो कि एक काल्पनिक चरित्र है। याचिका के अनुसार, यह “नायक-केंद्रित कहानी फिल्माकर पूरी यूनिट और समुदाय के योगदान को मिटा देती है।”
वकील ने कहा, “यह लड़ाई किसी एक व्यक्ति की नहीं थी। यह फिल्म उन सभी सैनिकों की पहचान को धीरे-धीरे गायब कर देती है जिन्होंने कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ी।”
याचिका में सिनेमैटोग्राफ एक्ट की धारा 5B का भी हवाला दिया गया है, जिसमें इतिहास को तोड़-मरोड़कर दिखाने पर रोक है, और भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 356 का ज़िक्र है, जो दिवंगत व्यक्तियों के खिलाफ अपमानजनक कथनों से संबंधित है।
अदालत की टिप्पणियाँ (Court’s Observations)
सुनवाई के दौरान खंडपीठ संयमित लेकिन पूरी तरह सतर्क नज़र आई। जजों ने कहा कि सिनेमा को रचनात्मक स्वतंत्रता जरूर है, लेकिन जब कोई फिल्म वास्तविक घटनाओं को दर्शाने का दावा करती है, वह स्वतंत्रता पूरी तरह असीमित नहीं हो जाती।
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एक समय पर पीठ ने टिप्पणी की, “यदि कोई फिल्म खुद को तथ्यात्मक बताकर इतिहास से बहुत दूर चली जाती है, तो यह देखना अदालत का कर्तव्य है कि कहीं सार्वजनिक स्मृति के साथ अनुचित छेड़छाड़ तो नहीं हो रही।”
याचिकाकर्ताओं ने दोहराया कि फिल्म का नाम बदलकर 120 वीर अहीर किया जाए या फिर साफ-साफ घोषित किया जाए कि यह कहानी पूरी तरह कल्पना है। वकील का तर्क था कि वर्तमान शीर्षक और काल्पनिक तत्व “दर्शकों को यह विश्वास दिलाते हैं कि यह सत्य घटना पर आधारित है।”
पीठ ने यह भी पूछा कि क्या सेंसर बोर्ड (CBFC) ने उन ऐतिहासिक आपत्तियों की जांच की थी जो समुदाय द्वारा उठाई गई थीं। कुछ पल की चुप्पी से लगा कि शायद इस प्रक्रिया की जानकारी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है।
“पीठ ने कहा, ‘हमें यह जानना होगा कि प्रमाणन प्रक्रिया कैसे हुई और क्या आपत्तियों पर विचार किया गया या नहीं।’”
अदालत ने आगे जोड़ा कि ऐतिहासिक घटनाओं, खासकर युद्ध नायकों को लेकर, निर्माताओं को सामान्य कहानी कहने जैसा रवैया नहीं अपनाना चाहिए। एक जज ने कहा, “शहीदों के परिवारों का भावनात्मक जुड़ाव होता है। इस संवेदनशीलता को अनदेखा नहीं किया जा सकता।”
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निर्णय (Decision)
करीब एक घंटे तक दोनों पक्षों को सुनने के बाद हाई कोर्ट ने फिलहाल फिल्म पर कोई रोक लगाने से इनकार किया। इसके बजाय, अदालत ने केंद्र सरकार, सेंसर बोर्ड और फिल्म निर्माताओं को नोटिस जारी कर उनकी प्रतिक्रियाएँ मांगी हैं। पीठ ने स्पष्ट किया कि यह मामला सांस्कृतिक संवेदनशीलता और कानूनी दायित्व-दोनों से जुड़ा है, इसलिए इसे गंभीरता से परखा जाना ज़रूरी है।
इसके साथ ही सुनवाई समाप्त हुई और अदालत ने मामले को अगली तारीख तक के लिए स्थगित कर दिया।
Case Title: PIL Against Release of Film “120 Bahadur” for Alleged Distortion of Rezang La Battle History
Court: Punjab and Haryana High Court, Chandigarh
Case Type: Public Interest Litigation (PIL)
Petitioners: Sanyukt Ahir Regiment Morcha and others
Respondents: Union Government, CBFC, and film producers of 120 Bahadur










