SC ने कहा—सबूत भरोसे योग्य नहीं; मध्यप्रदेश के दो युवकों को दुपट्टा-खींचने और SC/ST आरोपों वाले मामले में पूर्ण बरी

By Court Book • December 9, 2025

सुप्रीम कोर्ट ने 2015 के दुपट्टा-खींचने केस में गवाहों के विरोधाभास और जांच की खामियों के चलते MP के दो युवकों को बरी किया। पूरा निर्णय पढ़ें।

सुप्रीम कोर्ट में सोमवार की दोपहर माहौल थोड़ा गंभीर था। bench ने रिकॉर्ड बार-बार खंगाला और अंत में यह कहते हुए फैसला सुनाया कि अभियोजन का पूरा मामला “विश्वास योग्य नहीं लगता।” दो युवा—दादू @ अंकुश और अंकित—जो लगभग दस वर्षों से चल रहे एक केस में दोषी ठहराए गए थे, उन्हें अंततः राहत मिल गई।

Read Hindi

पृष्ठभूमि

मामला 4 अक्टूबर 2015 का है। आरोप था कि सावरगांव की एक 11वीं कक्षा की लड़की के घर के बाहर दोनों आरोपी आए, उनमें से एक ने उसका दुपट्टा खींचा, उसके गले पर हाथ डाला और उसके छोटे भाई को भी पीटा। यह भी कहा गया कि आरोपी अंकित ने यह जानते हुए कि लड़की अनुसूचित जाति से है, उसे परेशान किया।

ट्रायल कोर्ट ने इन्हीं आधारों पर दोनों को विभिन्न धाराओं में दोषी ठहराया, और 2024 में हाई कोर्ट ने भी सज़ा बरकरार रखी। लेकिन आरोपियों का कहना था कि असल में पास के गणेश उत्सव पंडाल में हुई हल्की झड़प को बढ़ा-चढ़ाकर उनके खिलाफ मामला बना दिया गया।

अदालत की टिप्पणियाँ

सुनवाई के दौरान जज बार-बार गवाहों के बयानों में आए विरोधाभासों की ओर लौटते रहे। FIR में लिखा था कि अंकित पहले से ही दादू के साथ आया था, जबकि पीड़िता ने कोर्ट में कहा कि दादू ने उसे फ़ोन करके बुलाया।

bench ने कहा, “ऐसे विरोधाभास छोटे नहीं होते, ये पूरी कहानी की विश्वसनीयता पर असर डालते हैं।”

पीड़िता के भाई PW-2 का बयान भी अदालत को खटका। उसने कहा कि “कई लोग” घटना देख रहे थे, लेकिन पुलिस ने उनमे से एक भी प्रत्यक्षदर्शी को गवाही के लिए पेश नहीं किया। PW-2 ने यह भी कहा कि उसे किसी ने बताया कि घर में झगड़ा हो रहा है—जबकि पीड़िता ने कहा था कि उसकी ज़ोरदार चीख सुनकर भाई घर आया।

bench ने टिप्पणी की, “गणेश उत्सव में भीड़ मौजूद थी—फिर केवल भाई को ही चीख कैसे सुनाई दी और बाकी किसी को नहीं? यह कहानी स्वाभाविक नहीं लगती।”

चिकित्सकीय रिपोर्ट भी prosecution के दावे मजबूती से साबित नहीं कर पाई। डॉक्टर (PW-5) ने साफ कहा कि चोटें साधारण थीं और गिरने या घसीटे जाने से भी हो सकती थीं। वहीं जिस लकड़ी से मारने का दावा किया गया था, उसका कोई सबूत पेश नहीं किया गया।

एक महत्वपूर्ण मोड़ PW-4 के बयान से आया, जिसने बताया कि असली विवाद पंडाल की भीड़ में पैर पड़ जाने को लेकर शुरू हुआ था। prosecution ने उसे hostile घोषित कर दिया, मगर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि hostile गवाह की पूरी गवाही को नकारा नहीं जा सकता।

अदालत ने यह भी कहा कि पीड़िता या उसके भाई ने कभी यह नहीं कहा कि अपराध जाति-आधारित था, फिर भी हाई कोर्ट ने ऐसा मान लिया। bench ने इसे “perverse finding” कहा।

सभी बिंदुओं को ध्यान से देखते हुए कोर्ट ने कहा कि prosecution कहानी भरोसे लायक नहीं है और बचाव पक्ष की यह दलील अधिक संभावित लगती है कि यह मामला वास्तव में पंडाल में हुए झगड़े का परिणाम था।

Recommended