चेक बाउंस मामलों में ट्रस्ट पर नहीं चलेगा मुकदमा, सिर्फ ट्रस्टी होंगे जिम्मेदार: सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

By Vivek G. • October 10, 2025

सुप्रीम कोर्ट ने कहा-ट्रस्ट एनआई एक्ट के तहत कानूनी व्यक्ति नहीं, चेक बाउंस मामलों में केवल ट्रस्टी होंगे जिम्मेदार।

गुरुवार को आए एक अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ट्रस्ट स्वयं कानूनी व्यक्ति नहीं है और इसलिए उस पर सीधे मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। ऐसे मामलों में केवल उसके ट्रस्टी या अधिकृत प्रतिनिधि ही अभियोजन के दायरे में आएंगे। यह फैसला शंकर पदम थापा बनाम विजयकुमार दिनेशचंद्र अग्रवाल (2025 INSC 1210) मामले में आया, जिसमें एक चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा जारी पाँच करोड़ रुपये का चेक बाउंस हो गया था। सवाल यह था - क्या ट्रस्ट को भी आरोपी बनाया जा सकता है?

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पृष्ठभूमि

यह मामला शिलांग स्थित विलियम कैरी यूनिवर्सिटी और ओरियन एजुकेशन ट्रस्ट के बीच हुए एक वित्तीय लेन-देन से जुड़ा है। यूनिवर्सिटी आर्थिक संकट में थी और 2017 में उसने अपने प्रबंधन को ओरियन ट्रस्ट को सौंपने का समझौता किया। ट्रस्ट के चेयरमैन विजयकुमार अग्रवाल ने इस संक्रमण प्रक्रिया के दौरान संपर्क कार्यों के लिए शंकर पदम थापा के नाम पर ₹5 करोड़ का चेक जारी किया।

लेकिन जब थापा ने चेक प्रस्तुत किया, तो वह “अपर्याप्त धनराशि” के कारण अस्वीकृत हो गया। इसके बाद थापा ने एनआई एक्ट की धारा 138 और 142 के तहत आपराधिक शिकायत दर्ज कराई। परंतु मेघालय हाईकोर्ट ने यह कहते हुए मामला खारिज कर दिया कि चूंकि ट्रस्ट को आरोपी नहीं बनाया गया था, इसलिए शिकायत टिकाऊ नहीं है।

इस आदेश को थापा ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

कोर्ट की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने हाईकोर्ट की व्याख्या से असहमति जताई। अदालत ने सवाल रखा - “क्या ट्रस्ट की ओर से जारी चेक के बाउंस होने पर उसके चेयरमैन या ट्रस्टी पर मुकदमा चल सकता है, बिना ट्रस्ट को आरोपी बनाए?”

कई उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का अध्ययन करने के बाद बेंच ने कहा कि ट्रस्ट एक कानूनी व्यक्ति नहीं है - उसकी अपनी कोई स्वतंत्र कानूनी पहचान नहीं होती और वह अपने नाम से मुकदमा न तो दायर कर सकता है, न ही उस पर मुकदमा चलाया जा सकता है। “ट्रस्ट,” कोर्ट ने समझाया, “सिर्फ संपत्ति से जुड़ा एक दायित्व है जो ट्रस्टी के माध्यम से काम करता है।”

कोर्ट ने प्रतिभा प्रतिष्ठान बनाम केनरा बैंक (2017) और के.पी. शिबु बनाम स्टेट ऑफ केरल (2019) जैसे मामलों का हवाला देते हुए कहा कि केवल ट्रस्टी ही ट्रस्ट से संबंधित मुकदमों के लिए कानूनी रूप से जिम्मेदार होते हैं।

अदालत ने उन उच्च न्यायालयों की राय को खारिज किया जिन्होंने ट्रस्ट को कंपनी या “एसोसिएशन ऑफ इंडिविजुअल्स” के समान माना था। न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने कहा - “हम उस तर्क को स्वीकार नहीं कर सकते जो ट्रस्ट को कंपनी के समान मानता है। ट्रस्ट की कोई स्वतंत्र कानूनी हैसियत नहीं होती और वह केवल अपने ट्रस्टियों के माध्यम से कार्य करता है।”

फैसले में कहा गया, “जब कोई चेक बाउंस होता है, तो एनआई एक्ट के तहत शिकायत उस ट्रस्टी के खिलाफ दर्ज की जा सकती है जिसने चेक पर हस्ताक्षर किए हों, ट्रस्ट को आरोपी बनाने की कोई जरूरत नहीं है।”

फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने थापा की अपील स्वीकार करते हुए मेघालय हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और आपराधिक कार्यवाही को फिर से शुरू करने का निर्देश दिया। अदालत ने यह भी कहा कि यह मामला 2019 से लंबित है, इसलिए निचली अदालत इसे शीघ्रता से निपटाए।

इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने उन सभी विरोधाभासी उच्च न्यायालयी निर्णयों को भी अमान्य घोषित कर दिया - जिनमें केरल, बॉम्बे, मद्रास, गुजरात और ओडिशा हाईकोर्ट शामिल हैं - जिन्होंने ट्रस्ट को कानूनी इकाई माना था।

बेंच ने अंत में स्पष्ट किया:

“ट्रस्ट कोई कानूनी इकाई या ‘ज्यूरिस्टिक पर्सन’ नहीं है। उसके behalf पर किए गए कार्यों के लिए केवल ट्रस्टी ही उत्तरदायी होंगे।”

इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने यह कानूनी स्थिति स्पष्ट कर दी कि एनआई एक्ट के तहत चेक बाउंस मामलों में केवल ट्रस्ट के प्रबंधक या ट्रस्टी पर मुकदमा चलाया जा सकता है - स्वयं ट्रस्ट पर नहीं।

Case Title: Sankar Padam Thapa v. Vijaykumar Dineshchandra Agarwal

Citation: 2025 INSC 1210

Case Type: Criminal Appeal (arising from SLP (Crl.) No. 4459 of 2023)

Date of Judgment: October 9, 2025

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