सुप्रीम कोर्ट में अनिल अंबानी–आरकॉम धोखाधड़ी पर अदालत-निगरानी जांच की मांग, हजारों करोड़ के कथित फंड डाइवर्जन पर गंभीर सवाल

By Vivek G. • November 17, 2025

सुप्रीम कोर्ट ने अनिल अंबानी–आरकॉम बैंक धोखाधड़ी मामले में केंद्र, CBI, ED और SBI से जांच की स्थिति पर जवाब मांगा; अदालत-निगरानी जांच पर निर्णय बाद में।

सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में जब यह याचिका आई, तो courtroom में काफी हलचल दिखी। एक जनहित याचिका (PIL) में आरोप लगाया गया कि आरकॉम–अनिल अंबानी बैंक लोन मामला वर्तमान जांच एजेंसियों की रिपोर्ट से कहीं बड़ा है। याचिकाकर्ता, पूर्व केंद्रीय सचिव ईएएस शर्मा, अदालत से आग्रह कर रहे थे कि इतने बड़े वित्तीय घोटाले की “पूरी और निर्भीक” जांच केवल सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में ही संभव है। जजों के रुख से साफ था कि वे इस मुद्दे को हल्के में लेने वाले नहीं हैं।

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पृष्ठभूमि

शर्मा की याचिका 2013 से 2017 के बीच ₹31,580 करोड़ के उन कर्ज़ों से जुड़ी है जो स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के नेतृत्व वाले बैंकों के समूह ने रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) और उसकी सहायक कंपनियों को दिए थे। याचिका के अनुसार, SBI द्वारा कराई गई फॉरेंसिक ऑडिट ने 2020 में ही कई चौंकाने वाले तथ्य सामने रखे थे-कर्ज़ की रकम को शेल कंपनियों के जरिए घुमाना, बंद बैंक खातों से लेनदेन दिखाना, और करोड़ों रुपये को इधर-उधर रूट करना।

लेकिन SBI ने अपनी शिकायत अगस्त 2025 में दर्ज कराई-लगभग पांच साल बाद। याचिका में कहा गया है कि “यह देरी सिर्फ देरी नहीं है; यह संदेह पैदा करती है।” याचिका में यह भी आरोप है कि CBI और ED केवल सतही जांच कर रहे हैं और बैंक अधिकारियों, नियामकों और ऑडिटर्स की भूमिका तक नहीं पहुंच रहे हैं।

अदालत में संक्षिप्त सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि बॉम्बे हाई कोर्ट भी अपने एक निर्णय में इसी तरह के पैटर्न की ओर इशारा कर चुका है। रिकॉर्ड पर रखे गए दस्तावेजों में कई शेल कंपनियों—जैसे नेटिज़न इंजीनियरिंग और कुंज बिहारी डेवलपर्स-के इस्तेमाल का दावा किया गया है, जिनके जरिए हजारों करोड़ रुपये सर्कुलर लेनदेन और फर्जी शेयर राइट-ऑफ के रूप में डाइवर्ट किए गए।

अदालत की टिप्पणियां

चीफ जस्टिस की अगुआई वाली पीठ कागज़ों को देखते हुए कई बार ठहर गई। एक जज ने टिप्पणी की, “अगर यह सब सही है, तो यह कोई साधारण बैंकिंग गलती नहीं है, बल्कि कुछ ज्यादा गंभीर है।”

दूसरे जज ने कहा कि अदालत “उन आरोपों को नजरअंदाज़ नहीं कर सकती, जिनमें फॉरेंसिक ऑडिट ने ही खातों की फर्जीबारी और अस्तित्वहीन बैंक लेनदेन की ओर इशारा किया है।”

याचिकाकर्ता के वकील ने मामले के पैमाने को स्पष्ट किया-मॉरीशस, साइप्रस और ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स के रास्ते फंड ट्रांसफर; नकारात्मक नेटवर्थ वाली कंपनियों को ₹16,000 करोड़ के इंटर-कॉरपोरेट लोन; और कई प्रमोटर-लिंक्ड कंपनियों में हजारों करोड़ रुपये की संदिग्ध मूवमेंट।

एक समय पर पीठ ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या ED और CBI ने बैंक अधिकारियों की भूमिका की जांच की है। ASG ने जवाब दिया कि “सभी पहलुओं की जांच की जा रही है,” लेकिन bench इससे पूरी तरह संतुष्ट नहीं दिखी। एक जज ने साफ कहा, “निष्पक्ष जांच का मतलब सिर्फ FIR की संख्या नहीं है; सवाल यह है कि क्या सही लोगों से पूछताछ हो रही है।”

निर्णय

दोनों पक्षों को संक्षेप में सुनने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, CBI, ED और SBI को नोटिस जारी किया। अदालत ने उनसे विस्तृत हलफ़नामे दाखिल करने को कहा है, जिनमें जांच की वर्तमान स्थिति, दायरा और गहराई का पूरा ब्योरा हो। अदालत ने कहा कि वह अदालत-निगरानी जांच पर निर्णय तभी लेगी जब सभी एजेंसियों के जवाब उसके सामने आ जाएंगे। फिलहाल, अदालत ने केवल जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं और इससे आगे कोई आदेश नहीं दिया है।

Case Title: EAS Sarma PIL Seeking SC-Monitored Probe Into Alleged RCOM–Anil Ambani Loan Fraud

Court: Supreme Court of India

Petitioner: EAS Sarma, former Government of India Secretary

Respondents: Union of India, CBI, ED, SBI

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