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राजस्थान उच्च न्यायालय ने राज्य भर में घातक दुर्घटनाओं की बढ़ती संख्या के बाद सड़क सुरक्षा पर स्वतः संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका शुरू की

Shivam Y.

राजस्थान उच्च न्यायालय ने सड़क दुर्घटनाओं में लगातार हो रही मौतों पर स्वतः संज्ञान लेते हुए राज्य और केंद्रीय प्राधिकारियों को 13 नवंबर, 2025 तक सुरक्षा उपायों पर रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया।

राजस्थान उच्च न्यायालय ने राज्य भर में घातक दुर्घटनाओं की बढ़ती संख्या के बाद सड़क सुरक्षा पर स्वतः संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका शुरू की

जोधपुर, 4 नवंबर - राजस्थान में बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए जोधपुर स्थित राजस्थान हाईकोर्ट ने मंगलवार को “सड़क और सार्वजनिक सुरक्षा के मुद्दे से निपटने के संबंध में” शीर्षक से एक स्वतः संज्ञान जनहित याचिका (Suo Motu PIL) दर्ज की।
न्यायमूर्ति डॉ. पुष्पेंद्र सिंह भाटी और न्यायमूर्ति अनूरूप सिंघी की खंडपीठ ने मानव जीवन की “बार-बार हो रही क्षति” पर गहरी चिंता जताई और कहा कि सार्वजनिक सुरक्षा के प्रति संस्थागत उदासीनता अब असहनीय हो चुकी है।

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यह कदम उस समय उठाया गया जब प्रमुख अखबारों - राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर और दैनिक नवज्योति - में प्रकाशित रिपोर्टों में खुलासा हुआ कि पिछले दो हफ्तों में लगभग 100 लोगों की सड़क हादसों में मौत हो चुकी है।

पृष्ठभूमि

यह मामला मूल रूप से एक ही दुर्घटना के संदर्भ में न्यायालय के संज्ञान में आया था, लेकिन हाल के हादसों की श्रृंखला को देखते हुए पीठ ने कहा कि अब यह केवल एक घटना नहीं, बल्कि एक व्यापक सामाजिक विफलता का संकेत है।

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पीठ ने टिप्पणी की -

“न्यायालय एक निष्क्रिय दर्शक बना नहीं रह सकता, जब ऐसे हादसे उचित सावधानी और नियमन से रोके जा सकते हैं, और फिर भी ये घटनाएँ संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए जीवन के मौलिक अधिकार को क्षीण कर रही हैं।”

न्यायालय ने कहा कि देश के मानव संसाधन पर भारी निवेश के बावजूद नागरिकों और प्राधिकरणों दोनों में सड़क अनुशासन और सुरक्षा व्यवस्था को लेकर “चौंकाने वाली असंवेदनशीलता” बनी हुई है।

आदेश में उद्धृत समाचार रिपोर्टों में भयावह घटनाओं का विवरण था - पलटी बसें, धधकते वाहन, और मलबे में फँसे लोग। चित्तौड़गढ़ की एक भीषण दुर्घटना में, एक ट्रेलर के बस से टकरा जाने से 14 लोगों की मौत हो गई, जिनमें बच्चे भी शामिल थे।

न्यायालय के अवलोकन

पीठ ने कहा कि मृत्यु तो अपरिहार्य है, लेकिन “असमय हुई मृत्यु से उत्पन्न पीड़ा न केवल परिवार के लिए अपूरणीय क्षति है, बल्कि राष्ट्र की सामूहिक शक्ति में भी सीधी कमी है।”

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न्यायमूर्ति भाटी ने टिप्पणी की कि यह मामला “किसी एक सड़क, एक वाहन या एक चालक का नहीं है - यह उस प्रणालीगत असफलता का दर्पण है जो सार्वजनिक सुरक्षा को राष्ट्रीय प्राथमिकता नहीं मानती।”

न्यायालय ने कहा -

“नियामक निकायों और आम नागरिकों की बढ़ती असंवेदनशीलता अब एक रोग बन चुकी है।”

पीठ ने राज्य प्राधिकरणों से आग्रह किया कि वे “उदासीनता की नींद से जागें।”

न्यायाधीशों ने यह भी कहा कि यद्यपि केवल एक जनहित याचिका इस समस्या का अंतिम समाधान नहीं हो सकती, परंतु यह “प्रशासन की चेतना को झकझोरने” के लिए आवश्यक है।

निर्देश और आगे की कार्यवाही

न्यायालय ने भारत संघ, राजस्थान सरकार और विभिन्न विभागों - स्वास्थ्य, परिवहन, लोक निर्माण, राजस्व और स्थानीय निकायों - को विस्तृत प्रारंभिक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। प्रत्येक विभाग को यह बताना होगा कि सड़क हादसों को रोकने और सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए उन्होंने क्या ठोस कदम उठाए हैं।

वरिष्ठ सरकारी अधिवक्ताओं जैसे श्री भारत व्यास (ASG), श्री राजेश पंवार (AAG), श्री एन.एस. राजपुरोहित (AAG), और श्री बी.एल. भाटी (AAG) को अपने-अपने विभागों का पक्ष रखने और 13 नवंबर 2025 तक रिपोर्ट दाखिल करने को कहा गया है।

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साथ ही, न्यायालय ने पाँच अमिकस क्यूरी (न्यायालय सहायकों) - श्री मणवेंद्र सिंह भाटी, श्री शीतल कुम्भाट, सुश्री अदिति मोड, सुश्री हेले पाठक, और सुश्री तान्या मेहता - को नियुक्त किया है ताकि वे न्यायालय को सहायतार्थ एक संयुक्त रिपोर्ट प्रस्तुत करें जिसमें सड़क और सार्वजनिक सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए ठोस सुझाव शामिल हों।

न्यायालय का निर्णय

अंत में, राजस्थान हाईकोर्ट ने इस मामले को स्वतः संज्ञान जनहित याचिका के रूप में पंजीकृत करने का आदेश दिया और अगली सुनवाई की तिथि 13 नवंबर 2025 निर्धारित की। न्यायालय ने संबंधित सभी अधिवक्ताओं और विभागों को आदेश की प्रति भेजने का निर्देश भी दिया।

लगभग 100 मृतकों के परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए न्यायाधीशों ने कहा कि अब यह मामला केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि “राष्ट्रीय चेतना का विषय” बन चुका है।

पीठ ने टिप्पणी की -

"पंद्रह दिनों में सौ जानों का जाना भाग्य की दुर्घटना नहीं, बल्कि सतर्कता की विफलता है। यह स्मरण दिलाता है कि जीवन का अधिकार केवल शब्दों में नहीं, बल्कि ठोस कार्यवाही में सुरक्षित होना चाहिए।”

Case Title: Suo Motu – In Re: Tackling the Issue of Road and Public Safety

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