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सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश रद्द किया, कहा-DM प्रमाणपत्र न देने पर टेंडर बोली अस्वीकार नहीं की जा सकती

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश रद्द किया; कहा, डीएम प्रमाणपत्र न होने पर टेंडर अस्वीकार नहीं किया जा सकता। मामला वापस भेजा गया।

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश रद्द किया, कहा-DM प्रमाणपत्र न देने पर टेंडर बोली अस्वीकार नहीं की जा सकती

सरकारी टेंडरों पर एक अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट का वह आदेश रद्द कर दिया जिसमें एक बोलीदाता की तकनीकी बोली इसलिए खारिज कर दी गई थी क्योंकि उसने ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा जारी “हैसियत प्रमाण पत्र” (solvency certificate) नहीं दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसा कोई प्रावधान टेंडर नोटिस में लिखा ही नहीं था, इसलिए बाद में इस शर्त को थोपना गलत है।

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पृष्ठभूमि

यह मामला कृषि उत्पन्न मंडी परिषद द्वारा 10 साल के लिए एक बैंक्वेट हॉल और टैरेस लॉन लीज़ पर देने के लिए जारी टेंडर से जुड़ा था। किम्बर्ली क्लब प्रा. लि. ने भी बोली लगाई थी, लेकिन तकनीकी मूल्यांकन के दौरान उसकी बोली यह कहते हुए खारिज कर दी गई कि उसका हैसियत प्रमाण पत्र एक निजी आर्किटेक्ट ने जारी किया था, न कि ज़िला मजिस्ट्रेट ने।

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कंपनी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया, यह दावा करते हुए कि वह सबसे ऊंची बोली लगाने वाली थी और उसने सभी शर्तों का पालन किया था। हालांकि हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और कहा कि वैध “हैसियत प्रमाण पत्र” केवल ज़िला मजिस्ट्रेट के कार्यालय से ही जारी हो सकता है।

न्यायालय के अवलोकन

अपील की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमल्या बागची की पीठ ने हाईकोर्ट की व्याख्या से असहमति जताई।

पीठ ने कहा कि टेंडर नोटिस (NIT) के क्लॉज़ 18 में सिर्फ यह उल्लेख था कि बोलीदाता को कम से कम ₹10 करोड़ का “हैसियत प्रमाण पत्र” देना होगा, लेकिन यह कहीं नहीं लिखा था कि यह प्रमाण पत्र ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा ही जारी किया जाए।

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पीठ ने कहा, “टेंडर की शर्तें स्पष्ट और निर्विवाद होनी चाहिए। यदि प्राधिकरण चाहता था कि यह प्रमाण पत्र ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा ही जारी हो, तो उसे यह बात साफ़ तौर पर लिखनी चाहिए थी।”

अदालत ने आगे कहा कि मंडी परिषद कोई सरकारी विभाग नहीं है जिस पर 2018 की उत्तर प्रदेश सरकार की वह अधिसूचना स्वतः लागू होती हो, जिसमें हैसियत प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया बताई गई थी। इसलिए परिषद बिना उसे टेंडर में शामिल किए यह नहीं मान सकती थी कि यह नियम लागू है।

पीठ ने यह भी कहा कि परिषद द्वारा बाद में दिया गया नया तर्क - कि मूल्यांकन प्रमाण पत्र में संपत्ति पर बंधक या देनदारी की जानकारी नहीं दी गई - पहली बार अदालत की कार्यवाही के दौरान ही उठाया गया, और यह अस्वीकृति का वास्तविक आधार नहीं था।

अदालत ने कहा, “किसी अस्वीकृति आदेश को उन्हीं कारणों पर टिके रहना चाहिए जो उसमें दर्ज हैं। बाद में नए कारण जोड़कर उसे सही नहीं ठहराया जा सकता।”

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निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि किम्बर्ली क्लब प्रा. लि. की तकनीकी बोली को खारिज करना टेंडर की अपनी ही शर्तों के विरुद्ध था। इसलिए अदालत ने यह अस्वीकृति रद्द कर दी और मामला दोबारा कृषि उत्पन्न मंडी परिषद को विचार के लिए भेज दिया।

परिषद को निर्देश दिया गया है कि वह कंपनी की तकनीकी बोली का पुनर्मूल्यांकन करे, यह जांचे कि उसके द्वारा जमा किया गया मूल्यांकन प्रमाण पत्र ₹10 करोड़ की न्यूनतम संपत्ति (बिना किसी बंधक के) की शर्त पूरी करता है या नहीं, और फिर तय करे कि शेष अनुबंध किम्बर्ली क्लब को दिया जाए या मौजूदा ठेकेदार को उचित बातचीत के बाद बनाए रखा जाए।

इन निर्देशों के साथ, अपील 31 अक्टूबर 2025 को निपटा दी गई।

Case: Kimberley Club Pvt. Ltd. vs Krishi Utpadan Mandi Parishad & Others

Court: Supreme Court of India

Bench: Justice Surya Kant and Justice Joymalya Bagchi

Citation: 2025 INSC 1276

Date of Judgment: October 31, 2025

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