एक अहम फैसले में, जिसने बीमा विवादों में “दुर्घटनावश आग” की व्याख्या को नया आकार दिया है, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ओरियन कॉनमर्क्स प्राइवेट लिमिटेड में 2010 में लगी आग “दुर्घटनावश” थी। कोर्ट ने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को आदेश दिया कि वह कंपनी को उसकी पॉलिसियों के तहत पूरा मुआवज़ा अदा करे। अदालत ने बीमा कंपनी की अपील को खारिज करते हुए कहा कि दावा अस्वीकार करने का आधार “रिकॉर्ड के विपरीत, मनमाना और विकृत” था।
पृष्ठभूमि
यह मामला 25 सितंबर 2010 को लगी आग से जुड़ा है, जिसने ओरियन कॉनमर्क्स के औद्योगिक यूनिट में तैयार और अधूरे चमड़े के उत्पादों, कच्चे माल और शो-रूम की वस्तुओं को नष्ट कर दिया था। कंपनी ने अपनी फायर इंश्योरेंस पॉलिसियों के तहत ₹3.3 करोड़ से अधिक का दावा किया।
लेकिन बीमा कंपनी ने दावा यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि आग “दुर्घटनावश” नहीं थी। उसके सर्वेयर ने “कई स्रोतों से आग लगने” का हवाला देकर संकेत दिया कि इसमें मानव हस्तक्षेप संभव है। राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) ने 2020 में ओरियन की शिकायत को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए बीमा कंपनी को ₹61.39 लाख और 9% ब्याज के साथ भुगतान का आदेश दिया। दोनों पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की-ओरियन ने पूरा मुआवज़ा मांगा और बीमा कंपनी ने मामला रद्द करने की मांग की।
कोर्ट की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें विस्तार से सुनीं। अदालत ने पहले फायर इंश्योरेंस के मूल सिद्धांतों को दोहराया कि बीमाकर्ता को आग से हुए नुकसान की भरपाई करनी होती है, “जब तक कि आग बीमाधारी द्वारा जानबूझकर नहीं लगाई गई हो।”
कोर्ट ने कहा, “आग लगने का सटीक कारण-चाहे वह शॉर्ट सर्किट हो या कुछ और महत्वपूर्ण नहीं है, बशर्ते कि दावेदार स्वयं आग लगाने वाला न हो।” अदालत ने न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम मुदित रोडवेज (2024) मामले का हवाला दिया।
पीठ ने अंतिम सर्वेयर की यह टिप्पणी कि आग “दुर्घटनावश नहीं” थी, को तर्कहीन बताया। “रिपोर्ट में यह कहीं नहीं बताया गया कि आग बीमाधारी ने लगाई या कि घटना बीमा पॉलिसी की अपवाद धाराओं में आती है,” न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा। “अतः यह मानना पड़ेगा कि घटना दुर्घटनावश थी।”
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि बीमा पॉलिसी में ‘FFF’-अर्थात् फर्नीचर, फिटिंग्स और फिक्सचर्स-का उल्लेख है, इसलिए इन मदों को अस्वीकार करना “स्पष्ट त्रुटि” थी।
पीठ ने कहा, “सर्वेयर के पास जब यह पूछा गया कि FFF का अर्थ क्या है, तो उसने टालमटोल वाले उत्तर दिए-यह बहुत कुछ बयान करता है।”
जहां तक स्टॉक लॉस का सवाल है, अदालत ने पाया कि ओरियन ने अपने नुकसान को साबित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य पेश किए-कॉस्ट शीट्स, स्टॉक स्टेटमेंट्स, प्रोडक्शन लॉग्स और ऑर्डर कैंसिलेशन दस्तावेज़। कोर्ट ने पाया कि सर्वेयर ने कंपनी द्वारा दिए गए 5,800 से अधिक पन्नों के दस्तावेजों की समीक्षा ही नहीं की।
प्रत्येक वस्तु के लिए ₹450 की समान कीमत तय करना-“चाहे वह चमड़े की बेल्ट हो या जैकेट,”-कोर्ट ने इसे “अत्यंत मनमाना और विकृत” बताया।
फैसला
अदालत ने यह निष्कर्ष निकाला कि ओरियन का दावा सही है और आग दुर्घटनावश थी, इसलिए बीमा कंपनी को पॉलिसी का पूरा भुगतान करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल इंश्योरेंस की अपील खारिज कर दी और ओरियन की अपील स्वीकार करते हुए केवल ब्याज दर में संशोधन किया। अब कंपनी को 6% वार्षिक ब्याज, घटना की तारीख से तीन महीने बाद से लेकर पूर्ण भुगतान तक देना होगा।
कोर्ट ने कहा, “फायर इंश्योरेंस पॉलिसी का उद्देश्य बीमाधारी को उसी वित्तीय स्थिति में वापस लाना है जो नुकसान से पहले थी, न कि उसे अन्यायपूर्ण अस्वीकृति से और कठिनाई में डालना।”
Case Title: Orion Conmerx Pvt. Ltd. vs. National Insurance Co. Ltd.
Case Type: Civil Appeal Nos. 3806 & 3855 of 2020
Court: Supreme Court of India
Bench: Justice Dipankar Datta and Justice Manmohan
Citation: 2025 INSC 1271
Date of Judgment: October 30, 2025












