आस्था, अभिव्यक्ति की आज़ादी और सोशल मीडिया से जुड़ा एक दिलचस्प मामला सोमवार को सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहाँ अदालत ने बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण को लेकर फेसबुक पोस्ट करने वाले एक युवक के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द करने से साफ इनकार कर दिया। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने दखल देने से मना करते हुए याचिकाकर्ता के वकील को चेताया-“हमसे कोई टिप्पणी मत बुलवाइए।”
पृष्ठभूमि
यह विवाद अगस्त 2020 में शुरू हुआ, जब मोहम्मद फैयाज़ मंसूरी, जो उस समय लॉ छात्र थे, के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। आरोप था कि उन्होंने अपने फेसबुक अकाउंट पर लिखा था-“बाबरी मस्जिद एक दिन फिर बनेगी, जैसे तुर्की की सोफिया मस्जिद बनी।”
मंसूरी के मुताबिक, इस पोस्ट पर एक अन्य व्यक्ति ने “समरीन बानो” नाम से फर्जी अकाउंट बनाकर हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की।
पुलिस ने मंसूरी पर कई गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया - भारतीय दंड संहिता की धारा 153A (विभाजन फैलाना), 292 (अश्लीलता), 505(2) (सार्वजनिक शरारत), 506 (धमकी देना), 509 (महिला की मर्यादा का अपमान), और साथ ही सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 के तहत (ऑनलाइन अश्लील सामग्री प्रकाशित करने) का आरोप लगाया गया।
इसके बाद लखीमपुर खीरी के जिला मजिस्ट्रेट ने मंसूरी को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत हिरासत में लेने का आदेश दे दिया - जो आमतौर पर सार्वजनिक व्यवस्था को खतरे में डालने वाले मामलों के लिए लगाया जाता है।
हालांकि सितंबर 2021 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस हिरासत आदेश को निरस्त कर दिया, यह कहते हुए कि यह कार्रवाई अनुचित थी।
इसके बावजूद, पुलिस द्वारा चार्जशीट दाखिल करने के बाद ट्रायल कोर्ट में मुकदमा चलता रहा। मंसूरी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में पूरा केस रद्द करने की मांग की, लेकिन इस साल सितंबर में हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए केवल मुकदमे की सुनवाई तेज़ी से करने का निर्देश दिया।
अदालत की टिप्पणियाँ
सुप्रीम कोर्ट में मंसूरी की ओर से वकील तल्हा अब्दुल रहमान पेश हुए। उन्होंने दलील दी कि उनके मुवक्किल का फेसबुक अकाउंट हैक हो गया था, और पोस्ट में कोई भड़काऊ या अश्लील सामग्री नहीं थी। “याचिकाकर्ता ने सिर्फ एक ऐतिहासिक तुलना की थी; आपत्तिजनक टिप्पणियाँ किसी और ने कीं, जिसकी जांच कभी नहीं हुई,” रहमान ने कहा।
लेकिन बेंच इससे संतुष्ट नहीं दिखी। जस्टिस सूर्यकांत ने पोस्ट को देखकर सख्त लहजे में कहा-
“हमने पोस्ट देख ली है, हमसे कोई टिप्पणी मत बुलवाइए।”
अदालत का रुख साफ था कि वह इस चरण पर कोई ऐसी राय नहीं देना चाहती जो ट्रायल कोर्ट की सुनवाई को प्रभावित करे। बेंच ने यह भी माना कि यह मामला अनुच्छेद 136 (विशेष अनुमति याचिका) के तहत हस्तक्षेप योग्य नहीं है।
फैसला
संक्षिप्त सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने विशेष अनुमति याचिका वापस लेने के रूप में खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को अपनी सभी दलीलें ट्रायल कोर्ट में रखने की छूट रहेगी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट इसमें दखल नहीं देगा।
आदेश में स्पष्ट रूप से लिखा गया-
“याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए सभी तर्कों पर विचार ट्रायल कोर्ट अपने गुण-दोष के आधार पर करेगा।”
इसका मतलब यह हुआ कि मंसूरी की कानूनी लड़ाई अब खत्म नहीं, बल्कि ट्रायल कोर्ट में जारी रहेगी। अब यह अदालत तय करेगी कि पांच साल पहले किया गया सोशल मीडिया पोस्ट अभिव्यक्ति की आज़ादी का हिस्सा था या नफरत फैलाने वाला अपराध।
Case: Mohd. Faiyyaz Mansuri vs The State of Uttar Pradesh & Anr.
SLP (Crl) No.: 16370/2025
Type of Case: Criminal - Social Media Post Controversy
Petitioner’s Argument:
- His Facebook account was hacked.
- The post was not inflammatory; the vulgar comment came from another person.
- No intent to promote enmity or disharmony.
Respondent: State of Uttar Pradesh
Date of Order: October 27, 2025










