गुरुवार को भरे हुए न्यायालय में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया जो उत्तर भारत के पर्यावरण भविष्य को प्रभावित कर सकता है। दशकों पुराने गोदावर्मन वन मामले की सुनवाई करते हुए, मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अगुवाई वाली पीठ ने विस्तार से रोडमैप जारी किया कि अरावली पहाड़ियों की पहचान और सुरक्षा कैसे की जाए, खासकर दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में बढ़ते खनन दबाव के बीच।
कोर्ट का माहौल सख्त तो था, पर टकराव वाला नहीं-जज मानो यह संदेश दे रहे थे कि अब समय आ गया है कि अधिकारी इस नाजुक पारिस्थितिकी क्षेत्र में व्यवस्था लाएँ।
पृष्ठभूमि
सालों से अलग-अलग राज्यों ने अरावली श्रृंखला की अलग-अलग परिभाषाएँ अपनाईं, जिससे यह साफ़ समझ ही नहीं बन पाई कि कहाँ खनन की अनुमति है और कहाँ सख्त रोक होनी चाहिए। कोर्ट पहले भी यह मान चुकी थी कि यही भ्रम अवैध खनन, पर्यावरणीय क्षरण और रेगिस्तानीकरण के पूर्व की ओर बढ़ने का बड़ा कारण बन चुका है I
जनवरी और मई 2024 में अदालत ने एक बहु-सदस्यीय समिति-जिसमें MoEF&CC, राज्य वन सचिव, FSI और अन्य शामिल थे-को एकसमान परिभाषा तैयार करने को कहा था। यह रिपोर्ट आखिरकार अक्टूबर 2025 में सौंपी गई, जिसने आज के फैसले की नींव रखी।
कोर्ट की टिप्पणियाँ
सुनवाई के दौरान जजों ने बार-बार कहा कि अरावली सिर्फ एक और पर्वतमाला नहीं है-यह उत्तर भारत को रेगिस्तानीकरण से बचाने वाली “हरी दीवार” है। एक वक्त पर पीठ ने टिप्पणी की, “हम इस परिदृश्य को अब और हल्के में नहीं ले सकते।”
कोर्ट ने समिति द्वारा ऊँचाई और कंटूर मैपिंग के आधार पर अरावली की तकनीकी परिभाषा स्वीकार की, लेकिन साथ ही अमीकस क्यूरी की उस चिंता को भी महत्व दिया कि वैज्ञानिक सुरक्षा उपाय और मजबूत होने चाहिए, क्योंकि इस पर्वतमाला में प्राचीन भू-भाग, नाजुक एक्विफर, वन्यजीव गलियारे और करोड़ों वर्ष पुराने जंगल शामिल हैं I
पीठ ने कहा-“अरावली पृथ्वी की सबसे पुरानी भू-भौतिक संरचनाओं में से एक है, इसकी पारिस्थितिक महत्ता को खनन के आँकड़ों तक सीमित नहीं किया जा सकता।”
दिलचस्प बात यह रही कि अदालत ने मौजूदा कानूनी खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने से इंकार किया। जजों ने स्पष्ट किया कि ऐसी पाबंदियाँ अक्सर खनन को भूमिगत धकेल देती हैं, जिससे माफिया और अवैध उत्खनन पनपते हैं।
इसके बजाय कोर्ट ने वैज्ञानिक योजना पर जोर दिया: झारखंड के सरंडा जंगलों की तरह जिला-स्तरीय “सस्टेनेबल माइनिंग मैनेजमेंट प्लान” (MPSM) तैयार हो, जो यह बताए कि कौन-से क्षेत्र संरक्षण योग्य हैं और कहाँ टिकाऊ खनन संभव है। जजों को लगता था कि ऐसे वैज्ञानिक मानचित्रण के बिना कोई भी नियम जमीन पर टिक नहीं सकता।
फैसला
सुनवाई के अंत में सुप्रीम कोर्ट ने क्रमबद्ध निर्देश जारी किए:
- समिति द्वारा प्रस्तुत अरावली पहाड़ियों और रेंज की एकसमान परिभाषा को कोर्ट ने औपचारिक मंजूरी दी।
- मुख्य और “अविनाशी” (inviolate) पारिस्थितिक क्षेत्रों में खनन पर रोक रहेगी, सिवाय कुछ रणनीतिक और परमाणु खनिजों के जिन्हें कानून अनुमति देता है।
- MoEF&CC पूरे अरावली क्षेत्र-गुजरात से दिल्ली तक-के लिए ICFRE की तकनीकी सहायता से व्यापक MPSM तैयार करेगा।
- MPSM तैयार होने तक किसी भी नए खनन पट्टे को मंजूरी नहीं दी जा सकेगी।
- मौजूदा कानूनी खनन केवल समिति द्वारा सुझाए गए पर्यावरणीय मानकों के “सख्त अनुपालन” में ही जारी रह सकेगा।
- भविष्य में सभी खनन अनुमति केवल उन्हीं क्षेत्रों में मिलेगी जिन्हें MPSM “सस्टेनेबल” वर्ग में रखेगा।
इसी के साथ, अदालत ने यह स्पष्ट किया कि अरावली को पूरी तरह बंद नहीं किया जाएगा-पर अब खनन किसी धुंधले क्षेत्र में नहीं चलेगा। और जैसे ही कोर्ट उठी, मुख्य न्यायाधीश ने संकेत दिया कि भारत की सबसे प्राचीन पर्वतमालाओं में से एक का स्वास्थ्य अब इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकारें इस रोडमैप को कितनी गंभीरता से लागू करती हैं।
Case Title: In Re: Issue Relating to Definition of Aravali Hills and Ranges
Connected Case: In Re: T.N. Godavarman Thirumulpad vs. Union of India & Others
Case No.: I.A. No. 105701 of 2024 in Writ Petition (Civil) No. 202 of 1995
Case Type: Inherent/Original Jurisdiction – Environmental & Forest Conservation Matter
Court: Supreme Court of India
Bench:
- Hon’ble Chief Justice B.R. Gavai
- Justice K. Vinod Chandran
- Justice N.V. Anjaria ISSUE RELATING TO DEFINITION OF…
Decision Date: 20 November 2025