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पटना हाईकोर्ट ने रेलवे सबोटाज वीडियो मामले में विभाग की छवि खराब करने के आरोपों के बीच यूट्यूबर मनीष कश्यप को अग्रिम जमानत दी

Vivek G.

रेलवे सबोटाज वीडियो मामले में पटना हाईकोर्ट ने मनीष कश्यप को अग्रिम जमानत दी, एफआईआर में आपराधिक नीयत स्पष्ट न दिखने पर राहत दी गई।

पटना हाईकोर्ट ने रेलवे सबोटाज वीडियो मामले में विभाग की छवि खराब करने के आरोपों के बीच यूट्यूबर मनीष कश्यप को अग्रिम जमानत दी

शनिवार सुबह भरी हुई अदालत में पटना हाईकोर्ट ने यूट्यूबर मनीष कश्यप को अग्रिम जमानत दे दी। कश्यप पर आरोप था कि उन्होंने रेलवे ट्रैक पर तोड़फोड़ जैसे हालात दिखाने वाला वीडियो फैलाया। सुनवाई बहुत लंबी नहीं चली, लेकिन माहौल में थोड़ी तनाव की झलक साफ दिख रही थी-मामले की संवेदनशीलता और पब्लिक ध्यान को देखते हुए यह स्वाभाविक भी था।

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Background (पृष्ठभूमि)

विवाद की शुरुआत तब हुई जब सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें रेलवे ट्रैक की फिश-प्लेट्स के बीच पत्थर रखे हुए दिखे। कश्यप ने यह वीडियो ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर शेयर किया और रेल मंत्रालय को टैग भी किया। लेकिन दर्ज एफआईआर में आरोप लगाया गया कि उन्होंने जानबूझकर भारतीय रेलवे की छवि खराब करने और अनावश्यक डर पैदा करने की कोशिश की।

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पुलिस ने उन पर भारत न्याय संहिता की कई धाराएं और आईटी एक्ट के प्रावधान लगाए, यह कहते हुए कि ऐसी पोस्ट से अफवाह फैल सकती है या जनता गुमराह हो सकती है। कश्यप की ओर से उनके वकील ने तर्क दिया कि वीडियो उन्हें सोशल मीडिया पर फॉरवर्ड मिला था और उन्होंने उसे बिना किसी बदलाव के अपलोड किया। उन्होंने यह भी कहा, “अगर उनका इरादा अफवाह फैलाने का होता तो वह सीधे मंत्रालय को टैग क्यों करते? वह अपने लाखों फेसबुक फॉलोअर्स पर इसे डाल सकते थे।” इस तर्क पर गैलरी में बैठे कुछ लोग हल्का-सा सिर हिलाते दिखे।

Court’s Observations (अदालत की टिप्पणियां)

जस्टिस चंद्र शेखर झा ने सुनवाई के दौरान मुख्य रूप से वीडियो पोस्ट करने के पीछे की नीयत पर ध्यान दिया। अदालत ने माना कि वीडियो में कोई बदलाव नहीं किया गया था और कश्यप ने उसे जैसे मिला, वैसे ही पोस्ट किया। “पीठ ने टिप्पणी की, ‘वीडियो को मूल रूप में पोस्ट करना और मंत्रालय को टैग करना जानकारी देने का उद्देश्य दिखाता है, गुमराह करने का नहीं,’”-इस टिप्पणी के बाद कोर्ट का माहौल कुछ हल्का होता दिखा।

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न्यायाधीश इस बात से भी पूरी तरह संतुष्ट नहीं दिखे कि एफआईआर में कोई ठोस आपराधिक नीयत साबित होती है। कश्यप द्वारा अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हवाला भी बहस के दौरान प्रभावी दिखा। हालांकि राज्य पक्ष, जिसकी ओर से एपीपी रीता वर्मा पेश हुईं, ने जमानत का विरोध किया, लेकिन अदालत दंड से ज्यादा सतर्कता की ओर झुकती दिखाई दी।

Decision (निर्णय)

सभी दलीलों पर विचार करने के बाद हाईकोर्ट ने मनीष कश्यप को अग्रिम जमानत प्रदान की। आदेश में कहा गया है कि अगर वो चार हफ्तों के भीतर गिरफ्तार होते हैं या आत्मसमर्पण करते हैं, तो ₹10,000 के निजी मुचलके और उतनी ही राशि के दो जमानतदारों पर उन्हें रिहा किया जाए।

मामले में कश्यप की ओर से अधिवक्ता देवाशीष गिरि पेश हुए। सुनवाई आदेश के बाद जल्दी ही समाप्त हो गई, और अदालत ने साफ कर दिया कि यह राहत केवल जमानत संबंधी शर्तों तक सीमित है और आरोपों के गुण-दोष पर कोई टिप्पणी नहीं है।

Case Title: Tirpurari Kumar Tiwari @ Manish Kashyap vs. State of Bihar

Court: Patna High Court

Judge: Justice Chandra Shekhar Jha

Matter: Anticipatory Bail Application

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