इस हफ्ते भारत के सर्वोच्च न्यायालय से आए एक महत्वपूर्ण आदेश में, दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन के पूर्व कंडक्टर अशोक कुमार दबस के कानूनी उत्तराधिकारियों को उनके रिटायरल लाभों की लड़ाई में आंशिक जीत मिली। पीठ ने ऐसा फैसला सुनाया जो सख्त सेवा नियमों और सामाजिक सुरक्षा अधिकारों के बीच एक संतुलन स्थापित करता हुआ नज़र आया।
पृष्ठभूमि
दबस वर्ष 1985 में निगम में शामिल हुए थे। लगभग तीन दशक बाद, परिवारिक परिस्थितियों का हवाला देते हुए उन्होंने 7 अगस्त 2014 को इस्तीफ़ा दे दिया, जिसे एक महीने बाद निगम ने स्वीकार भी कर लिया। अप्रैल 2015 में इस्तीफ़ा वापस लेने का अनुरोध किया गया, जिसे अस्वीकार कर दिया गया। जब उन्होंने पेंशन, ग्रेच्युटी, प्रोविडेंट फंड और लीव एनकैशमेंट की मांग रखी, तो निगम ने कहा कि इस्तीफ़े के कारण उन्हें केवल प्रोविडेंट फंड ही मिल सकता है, पेंशन के सभी अधिकार समाप्त हो जाते हैं।
उनकी मूल याचिका केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण, फिर दिल्ली हाईकोर्ट से भी खारिज हो चुकी थी। उनकी मृत्यु के बाद परिवार ने केस को सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचाया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि कर्मचारी ने 20 वर्ष से अधिक सेवा दी, जो सामान्यतः स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति पर पेंशन का हक देता है। लेकिन कोर्ट ने एक बेहद महत्वपूर्ण अंतर स्पष्ट किया:
“कर्मचारी द्वारा इस्तीफ़ा देने पर पूर्व सेवाकाल समाप्त मान लिया जाता है। अतः उसे पेंशन का अधिकार नहीं मिल सकता,” पीठ ने कहा और यह नियम 26 केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1972 पर आधारित है।
कोर्ट ने कहा कि इस्तीफ़ा और स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति को एक जैसा मान लेने से यह नियम निष्प्रभावी हो जाएगा।
सुनवाई के दौरान निगम ने दबस के अनुशासनात्मक रिकॉर्ड कई बार निलंबन और चेतावनियाँ का हवाला भी दिया कि इस्तीफ़ा भावुक निर्णय नहीं था। हालांकि यह बिंदु अंतिम परिणाम में निर्णायक नहीं बना।
ग्रेच्युटी पर फैसला
जहाँ अदालत ने साफ तौर पर परिवार के साथ सहानुभूति दिखाई, वह था ग्रेच्युटी का मुद्दा। अदालत ने कहा कि ग्रेच्युटी अधिनियम, 1972 की धारा 4 के अनुसार:
- इस्तीफ़ा देने पर भी
- 5 साल या अधिक लगातार सेवा होने पर
ग्रेच्युटी मिलनी चाहिए।
अदालत ने कहा कि जब तक सरकार द्वारा कोई छूट अधिसूचना नहीं है, “ग्रेच्युटी का दावा… इस्तीफ़े के बावजूद नकारा नहीं जा सकता।”
इससे परिवार को लंबे सेवा काल के आधार पर हक मिला है।
लीव एनकैशमेंट राहत
सुनवाई के दौरान ही निगम के वकील ने स्वीकार किया कि लीव एनकैशमेंट देय है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे रिकॉर्ड किया और परिवार को भुगतान का निर्देश दिया।
निर्णय
अपी़ल आंशिक रूप से स्वीकार की गई। सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया:
- पेंशन नहीं मिलेगी - इस्तीफ़ा देने पर पिछली सेवा समाप्त मानी जाती है
- ग्रेच्युटी अवश्य दी जाए - ग्रेच्युटी अधिनियम, 1972 के अनुसार
- लीव एनकैशमेंट जारी किया जाए
- 6% वार्षिक ब्याज इस्तीफ़ा तिथि से भुगतान तक
- छह सप्ताह में बकाया भुगतान किया जाए
Case Title:- Ashok Kumar Dabas vs. Delhi Transport Corporation
Case Type: Civil Appeal (arising out of SLP (C) No. 4818 of 2023)
Bench: Hon’ble Justice Rajesh Bindal & Hon’ble Justice Manmohan