आज सुबह सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान अदालत ने एक ऐसा फैसला सुनाया जिसने पूरे कोर्टरूम का माहौल बदल दिया। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) का वह आदेश रद्द कर दिया जिसमें महाराष्ट्र की एक चीनी मिल कोपरगांव सहकारी साखर कारखाना लिमिटेड का बीमा दावा पूरी तरह से खारिज कर दिया गया था। यह दावा 2005 में उसके बॉयलर में हुए एक हादसे से जुड़ा था।
जस्टिस मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने साफ कहा कि बीमा कंपनी ने बहिष्करण खंड (Exclusion Clause) का गलत इस्तेमाल कर दावा ठुकराया। सुनवाई के दौरान कई बार ऐसा लगा कि जज बीमा कंपनी की दलीलों से संतुष्ट नहीं हैं। एक अवसर पर अदालत ने टिप्पणी की कि मामला “तथ्यों की बजाय ज़िम्मेदारी से बचने का प्रयास ज़्यादा लग रहा है।”
Background
यह विवाद लगभग बीस साल पहले शुरू हुआ था, जब शुगर फैक्ट्री के बॉयलर नंबर GT-23 में अचानक ज़ोरदार धमाका हुआ और दो ट्यूबें अपनी जगह से टूटकर बाहर आ गईं। उस समय बॉयलर पर ₹1.60 करोड़ तक का बीमा कवरेज था।
हालाँकि फैक्ट्री ने समय पर सूचना दे दी और कंपनी ने सर्वेयर भी नियुक्त कर दिया, लेकिन मात्र एक महीने में दावा यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि “धमाका नहीं हुआ, केवल ट्यूबें जंग और पुरानी उम्र के कारण ढीली होकर निकल गईं।” बीमा कंपनी ने दावा एक्सक्लूज़न क्लॉज़ 5 के तहत खारिज किया, जिसमें पुरानेपन और क्षरण से हुए नुकसान को कवर नहीं माना जाता।
राज्य उपभोक्ता आयोग ने इस दृष्टिकोण को नहीं माना। उसने पाया कि बॉयलर को भारतीय बॉयलर अधिनियम के तहत वैध फिटनेस प्रमाणपत्र मिला हुआ था। आयोग ने लगभग ₹49 लाख का मुआवज़ा दिया। लेकिन NCDRC ने इस आदेश को पलट दिया और दावा पूरी तरह खारिज कर दिया। इसी आदेश के खिलाफ वर्तमान अपीलें सुप्रीम कोर्ट में पहुँचीं।
Court’s Observations
सुनवाई शुरू होते ही पीठ ने बीमा कंपनी से पूछा कि उसने अपने लिखित जवाब में “धमाके” के दावे का खंडन आखिर किया ही क्यों नहीं। न्यायालय ने कहा कि बीमा कंपनी की पहले दिन की अस्वीकृति चिट्ठी में भी धमाके को नकारा नहीं गया था और केवल जंग और ढीले जोड़ों की बात की गई थी।
पीठ ने कहा-
“जब एक पंजीकृत और प्रमाणित बॉयलर अपने वैध अवधि के दौरान फटता है, तो बीमा कंपनी पर भारी दायित्व होता है कि वह साबित करे कि पहले से खामियाँ थीं और उन्हें छुपाया गया। यहाँ ऐसा कोई सबूत नहीं है।”
अदालत ने यह भी स्पष्ट कहा कि बीमा अनुबंध में सर्वोच्च सद्भावना दोनों पक्षों से अपेक्षित है। यदि बीमा कंपनी को बॉयलर की उम्र, ट्यूबों की स्थिति या रखरखाव रिकॉर्ड चाहिए था, तो उसे पॉलिसी जारी करने से पहले पूछना चाहिए था दुर्घटना के बाद नहीं।
एक और मुद्दा जिसने कोर्ट का ध्यान खींचा, वह था सर्वे रिपोर्टों का अचानक NCDRC के सामने “एक दशक बाद” प्रस्तुत होना। जस्टिस मिश्रा ने टिप्पणी की कि “इतनी देरी से लाई गई सामग्री को इस तरह casually स्वीकार नहीं किया जा सकता।”
सबसे महत्वपूर्ण अवलोकन तब आया जब कोर्ट ने कहा कि एक्सक्लूज़न क्लॉज़ 5 खुद यह अपवाद देता है कि यदि क्षति धमाके से हुई है, तो दावा अस्वीकृत नहीं किया जा सकता। और यहाँ धमाका होने के तथ्य का कभी गंभीरता से खंडन ही नहीं हुआ था।
Decision
अंततः सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट और निर्णायक आदेश दिया:
- NCDRC का आदेश पूरी तरह रद्द किया जाता है।
- दोनों अपीलें मुआवज़े की कटौती और वृद्धि से जुड़ी केवल मुआवज़े की राशि तय करने के लिए NCDRC को वापस भेजी जाती हैं।
- ज़िम्मेदारी, बहिष्करण क्लॉज़ आदि पर अब कोई पुनर्विचार नहीं होगा।
पीठ ने कहा-
“इन परिस्थितियों में दावा खारिज करना उचित नहीं था। बीमाकर्ता बिना किसी सबूत के बहिष्करण क्लॉज़ का सहारा नहीं ले सकता।”
फैसले के बाद शुगर फैक्ट्री के प्रतिनिधियों के चेहरे पर वर्षों बाद राहत के संकेत दिखे। अब मामला NCDRC में वापस जाएगा, लेकिन केवल इतना तय करने के लिए कि कंपनी को कितना मुआवज़ा मिलना चाहिए।
Case Title: Kopargaon Sahakari Sakhar Karkhana Ltd. vs. National Insurance Co. Ltd. & Anr.
Case Number: SLP (C) Nos. 1377–1378 of 2022)