कर्नाटक में हजारों शिक्षक अभ्यर्थियों को प्रभावित करने वाले एक अहम फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (16 अक्टूबर) को लीलावती एन. और अन्य बनाम कर्नाटक राज्य मामले में दायर अपीलों को खारिज कर दिया। ये अपीलें उस आदेश के खिलाफ थीं जिसमें कर्नाटक हाईकोर्ट ने विवाद को कर्नाटक राज्य प्रशासनिक अधिकरण (KSAT) के पास भेजने का निर्देश दिया था। विवाद 2022 की स्नातक प्राथमिक शिक्षक भर्ती प्रक्रिया से जुड़ा है, जिसमें विवाहित महिला अभ्यर्थियों को ओबीसी आरक्षण का लाभ इसलिए नहीं दिया गया क्योंकि उन्होंने अपने पतियों के बजाय अपने माता-पिता के नाम पर जाति प्रमाणपत्र प्रस्तुत किए थे।
पृष्ठभूमि
यह विवाद तब शुरू हुआ जब कर्नाटक सरकार ने कक्षा 6 से 8 तक के लिए 15,000 स्नातक प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती की घोषणा की। लिखित परीक्षा के बाद नवंबर 2022 में अस्थायी चयन सूची जारी की गई। कई विवाहित महिलाओं के नाम ओबीसी कोटे से हटाकर सामान्य श्रेणी में डाल दिए गए क्योंकि अधिकारियों ने उनके माता-पिता के नाम पर जारी जाति और आय प्रमाणपत्र स्वीकार नहीं किए।
कर्नाटक हाईकोर्ट की एकल पीठ ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि जाति जन्म से तय होती है और विवाह के बाद नहीं बदल सकती। अदालत ने सरकार को निर्देश दिया कि वह उम्मीदवारों के माता-पिता के प्रमाणपत्रों को स्वीकार करे। इस आदेश से चयन सूची में बड़े बदलाव हुए और पहले से चयनित कई अभ्यर्थी बाहर हो गए।
इसके बाद भारी विवाद छिड़ गया। राज्य सरकार ने इस फैसले को चुनौती दी और हाईकोर्ट की द्वैध पीठ (डिवीजन बेंच) ने एकल पीठ के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि यह मामला पहले KSAT में सुना जाना चाहिए।
अदालत के अवलोकन
सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति जे. के. महेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई शामिल थे, ने हाईकोर्ट की द्वैध पीठ से सहमति जताई। अदालत ने कहा कि भर्ती या सेवा संबंधी विवाद सबसे पहले प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के सामने रखे जाने चाहिए, न कि सीधे हाईकोर्ट में।
पीठ ने कहा, “संविधान पीठ ने एल. चंद्र कुमार बनाम भारत संघ के मामले में स्पष्ट किया है कि ऐसे मामलों में ट्रिब्यूनल प्रथम न्यायिक मंच (court of first instance) के रूप में कार्य करेंगे।” अदालत ने यह तर्क खारिज कर दिया कि यह मामला “असाधारण परिस्थितियों” वाला है जिसमें हाईकोर्ट को सीधे हस्तक्षेप करना चाहिए था।
पीठ ने यह भी कहा कि एकल पीठ द्वारा टी.के. रंगराजन बनाम तमिलनाडु सरकार के निर्णय पर भरोसा करना गलत था। अदालत ने कहा, “वह मामला हड़ताल पर गए दो लाख कर्मचारियों की सामूहिक बर्खास्तगी से जुड़ा था-जो इस तरह के व्यक्तिगत भर्ती विवाद से बिल्कुल अलग स्थिति थी।”
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल अस्थायी चयन सूची में नाम आना किसी उम्मीदवार को नियुक्ति का कानूनी अधिकार नहीं देता। “अस्थायी सूची पर कार्रवाई का निर्देश देना भ्रम की स्थिति पैदा करेगा,” न्यायमूर्तियों ने टिप्पणी की। अदालत ने यह भी कहा कि केवल मार्च 2023 की अंतिम चयन सूची ही प्रभावी रहेगी।
निर्णय
सभी अपीलों को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट की द्वैध पीठ ने सही तरीके से मामला KSAT को भेजा था। अदालत ने पहले जारी अपने सभी अंतरिम आदेशों को स्थायी बना दिया और निर्देश दिया कि 500 रिक्त पदों को KSAT के अंतिम निर्णय के अनुसार भरा जाए।
पीठ ने यह भी कहा कि ट्रिब्यूनल “संभव हो तो छह महीने के भीतर” इस मामले का निपटारा करे।
इसके साथ ही, कर्नाटक की शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में विवाहित महिलाओं की जाति स्थिति के मूल्यांकन से जुड़ा यह लंबा विवाद अब अंतिम निपटारे के लिए पूरी तरह KSAT के पास चला गया है।
Case Title: Leelavathi N. & Others vs. State of Karnataka & Others
Citation: 2025 INSC 1242
Date of Judgment: October 16, 2025